अधर में विकास
01-Jan-2018 09:38 AM 1234815
सूखे की गंभीर समस्या से कई सालों से जूझ रहे बुंदेलखंड अंचल को इस संकट से उबारने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया बुंदेलखंड पैकेज प्रदेश में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। पैकेज के तहत मिली राशि में से 80 फीसदी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। इस पैकेज के तहत शुरू किए गए तमाम काम अनियमितता, घटिया निर्माण आदि को लेकर कई तरह के विवादों के कारण चर्चा में रहा है। इस पैकेज में विभिन्न विभागों के अफसरों की मनमानी के चलते आवंटित किए गए बजट से अधिक राशि खर्च कर दी गई। अब केन्द्र से मिलने वाली राशि को देने से इंकार कर दिया गया है, लिहाजा इस पैकेज को लेकर राज्य सरकार के सामने नई समस्या खड़ी हो गई है। दरअसल केंद्र सरकार ने पैकेज के तहत बकाया 359 करोड़ रुपए मध्यप्रदेश को देने से इनकार कर दिया है। इसके पीछे नीति आयोग ने तर्क दिया है कि योजना समाप्त हो चुकी है, लिहाजा राज्य के पास जो फंड है उससे संबंधित विभागों की बकाया राशि का भुगतान किया जाए। उधर, विभागों ने केंद्र से राशि मिलने की आस में स्वीकृत राशि से ज्यादा खर्च कर दिया है। अब इस राशि की पूर्ति कहां से की जाए, इसको लेकर राज्य योजना आयोग पसोपेश में है। केंद्र सरकार ने 2009 में बुंदेलखंड पैकेज लागू किया था। इसके तहत मध्यप्रदेश को 31 मार्च 2016 तक 3 हजार 226 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। 31 मार्च 2017 तक इसमें से 2 हजार 867 करोड़ रुपए मप्र को मिल गए थे। शेष 359 करोड़ रुपए रह गए थे उधर, राज्य ने पैकेज के तहत स्वीकृत हुए कामों पर 2 हजार 984 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। कुछ काम चल रहे हैं तो कुछ पूरे होने वाले हैं पर राशि के अभाव में भुगतान न होने से संकट खड़ा हो गया है। इसे देखते हुए राज्य योजना आयोग ने 5 दिसंबर को बकाया राशि देने के लिए नीति आयोग को पत्र लिखा था। आयोग के अधिकारियों ने बताया कि पैकेज के तहत कामों को पूरा करने के लिए राज्य के विभागों ने अपने बजट से पैसे खर्च कर दिए हैं। इससे विभागों का आंतरिक वित्तीय प्रबंधन गडबड़ाने लगा है। पैकेज के तहत केंद्र सरकार ने इस अंचल के रहवासी इलाकों में पेयजल व्यवस्था के लिए अलग से सौ करोड़ रुपए दिए थे। इस राशि से कई गांवों में नल-जल योजनाएं शुरू की गईं। जिनमें जमकर अनियमितता हुई। मुख्य तकनीकी परीक्षक की जांच में यह बात प्रमाणित हुई। वहीं, गोदाम सहित अन्य निर्माण कार्यों की गुणवत्ता को लेकर जमकर शिकायतें हुई हैं। इसी तरह कुछ बांध तो पहली बारिश को ही नहीं झेल पाए और उनके तटबंध टूट गए थे। राज्य के दमोह जिले में कई गड़बडिय़ां सामने आई थी। हटा कृषि उपज मंडी में कृषक विश्राम गृह, केंटीन, किसान सूचना केंद्र, एग्रीकल्चर वर्कशॉप, शौचालय, गार्ड रूम व दुकानें बनाई गईं हैं। बटियागढ़ कृषि उपज मंडी में ट्राली शेड, कवर्ड ऑक्शन प्लेटफार्म, दुकानें मशीनरी वर्कशॉप, कार्यालय भवन, कृषक विश्राम गृह बनाया गया। खड़ेरी में किसान सूचना केंद्र, दुकानें, कृषि मशीनरी वर्कशॉप, गार्डरूम, बीज भंडारण केंद्र का निर्माण किया गया। दमोह में सुलभ शौचालय छोड़कर शेष संरचना का उपयोग किया जा रहा है। पथरिया सुलभ शौचालय, फार्मर रेस्ट हाउस दुकानें, एग्रीकल्चर वर्कशॉप व गार्डरूम शामिल है। जबेरा में सुलभ कॉम्प्लेक्स, सूचना केंद्र, रेस्ट हाऊस, पोस्ट ऑफिस बिल्डिंग बनाया गया। दमोह स्थित किल्लाई गांव में स्थित मंडी में चौकीदार क्वार्टर व गार्ड रूम का निर्माण कराया गया है। जिनमें भ्रष्टाचार सामने आया है। जांच प्रतिवेदन सामान्य प्रशासन विभाग में जमा बुंदेलखंड विशेष पैकेज के अंतर्गत भारत सरकार ने मप्र शासन को सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया व पन्ना जिलों के विकास के लिए 3860 करोड़ रुपए की राशि दी गई थी। जिसमें विभिन्न विभागों द्वारा कार्य कराए गए हैं। इसी कड़ी में 574.50 करोड़ की राशि कृषि विभाग को दी गई थी। उक्त राशि से मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड द्वारा 242.5772 तथा वेयर हाउसिंग व लॉजिस्टिक्स कार्पोरेशन भोपाल ने 169.7028 करोड़, राज्य सहकारी विपणन संघ ने 57.6471 करोड़ की राशि से उक्त तीन संस्थाओं द्वारा 67 स्थानों पर मंडिया तथा 27 स्थानों पर हाट बाजारों के निर्माण कार्य कराए गए थे। उक्त निर्माण कार्यों में हुई तकनीकी अनियमितताओं को लेकर समाजसेवी पवन घुवारा द्वारा हाईकोर्ट में जांच के लिए रिट पिटीसन लगाई थी। जिसके आधार पर मप्र शासन ने मुख्य तकनीकी परीक्षक सतर्कता विभाग के मुख्य तकनीकी विजिलेंस अधिकारी आरके मेहरा से जांच कराई है। विजिलेंस अधिकारी ने 1180 पेजों का जांच प्रतिवेदन सामान्य प्रशासन विभाग में जमा कर दिया है। सामान्य प्रशासन विभाग ने कार्रवाई के लिए कृषि विभाग को निर्देश दिए हैं। जांच में पाई गई गड़बडिय़ों में कुछ कार्यों के डीपीआर अपूर्ण व त्रुटिपूर्ण बनाए गए हैं। जिसके लिए कन्सल्टेंट द्वारा अनुबंधानुसार कार्य नहीं करना पाया गया है। -सिद्धार्थ पाण्डे
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