ब्रांड मोदी का जोखिम
07-Dec-2017 08:50 AM 1234920
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी बरकरार है। एक अमेरिकी थिंक टैंक के सर्वे की माने तो पीएम मोदी भारतीय राजनीति में अब भी सबसे लोकप्रिय हस्ती हैं। यह देश और भाजपा के लिए गौरव की बात है, लेकिन जिस तरह भाजपा मोदीमय होती जा रही है उससे पार्टी के सामने एक बड़ा संकट खड़ा होता जा रहा है। वह संकट है ब्रांड मोदी का। यानी आज देशभर में ब्रांड मोदी का जादू चल रहा है, लेकिन जिस दिन यह जादू उतार पर होगा उस दिन भजपा का क्या होगा। आलम यह है कि अब तो हर जगह भाजपा मोदी नाम को भुनाने में लगी हुई है। हिमाचल प्रदेश के बाद अब गुजरात में भी जिस तरह मोदी-मोदी हो रहा है उससे भाजपा उत्साहित है, लेकिन जब परिणाम विपरीत होंगे तो क्या होगा। ब्रांड मोदी की झलक इन दिनों गुजरात में हर ओर देखने को मिल रही है। पार्क हो, मॉल हो, बाजार हो या सड़क हर जगह बीजेपी के कार्यकर्ता, ब्रांड मोदी को बेचने में जुटे हंै। बीजेपी के पास बेचने के लिए शायद यही ब्रांड है और कुछ नहीं। ये लोग सुबह के वक्त सैर पर निकले लोगों, या योग करने आने वालों और छात्रों से बातचीत की कोशिश करते हंै। अगर कोई बात करने को राजी हो गया, तो वो उसे मोदी के संदेश सुनाने की कोशिश करते हंै। ये संदेश वो एक टैबलेट के जरिए सुनाते हंै। इसमें मोदी गुजरात के लोगों से अपने लिए वोट मांगते हैं। पहले मोदी की उन तस्वीरों का मोंटाज आता है, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे। फिर उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद की तस्वीरें आती हैं। आखिर में गुजराती में जज्बाती अपील की जाती है कि मोदी का हाथ मजबूत करना है। ये कार्यकर्ता उन हजारों बीजेपी कार्यकर्ताओं में से हंै, जो लोगों को मोदी का संदेश सुनाते हैं। इन्हीं के जरिए बीजेपी गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में जुटी है। पार्टी के कार्यकर्ताओं की पूरी फौज, घर-घर, बगीचे-बगीचे, मॉल से मॉल तक अपने नेता के नाम पर प्रचार कर रही है और ये तैयारी चुनावी मैदान में मोदी के उतरने के पहले की है, जब वो चुनावी जंग की अगुवाई करेंगे। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के प्रति नाराजगी की वजह से पार्टी ने कार्यकर्ताओं को नई गाइडलाइन जारी की है। उन्हें लोगों की भीड़ से दूर रहने को कहा गया है। कार्यकर्ताओं को कहा गया है कि वो एक-दो लोगों से अकेले में मिलें। रिहाइशी इलाकों में जाएं। शहरी सोसायटियों में जाएं। सोसायटी में वो स्थानीय पदाधिकारियों के साथ ही जाएं। उन्हें कहा गया है कि लोग जीएसटी और नोटबंदी के खिलाफ बोलें तो विनम्रता से मानें कि कुछ कमियां रह गई हैं। आखिर में वो मोदी को समर्थन देने की अपील करें। उनसे कहें कि अगर गुजरातियों ने ही मोदी का साथ छोड़ दिया तो वो देश के बाकी लोगों से कैसे समर्थन मांगेंगे? फिर कार्यकर्ताओं को लोगों से एक सवाल पूछने को भी कहा गया है। सवाल ये कि अगर आप घोड़े की सवारी करते वक्त गिर जाएंगे, तो क्या गधे की सवारी करने लगेंगे? गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस बार घर-घर जाकर प्रचार को मजबूर हुई है। यही इस चुनाव की सबसे बड़ी खबर है। पिछले दो दशकों से पार्टी आराम से मोदी के नाम पर चुनाव लड़ती और आसानी से जीतती आई थी। चुनावी हवाबाजी ज्यादा होती थी, लेकिन इस बार पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को जमीन पर उतारने को मजबूर हुई है। बीजेपी को अपनी रणनीति क्यों बदलनी पड़ी, इसकी कई वजहें हैं। पहली बात तो ये कि मोदी के बाद जिनके हाथ गुजरात की डोर आई, वो उनकी विरासत को आगे नहीं बढ़ा सके। मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रमणीकलाल रूपानी की इस चुनाव में कोई हैसियत नहीं। उन्हें मोदी का वारिस कम और जीत के मजे लेने वाला ज्यादा कहा जाता है। राज्य बीजेपी में नेताओं के बीच लड़ाई में वो एक खेमे के नेता भर माने जाते हैं। मोदी की बराबरी की तो खैर बात ही नहीं, उन्हें तो ढंग से राज्य का मुख्यमंत्री भी नहीं माना जाता। दूसरी बड़ी वजह ये है कि कारोबारी, किसान, पाटीदार, दलित और युवा बीजेपी से नाराज हैं। पिछले कई सालों में पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि ये लोग अपनी गुजराती पहचान से ऊपर उठकर वोट करने को राजी दिख रहे हैं। वो अपनी समस्याओं के बारे में बात कर रहे हैं। वो गुजराती से ज्यादा अपने-अपने समुदायों की बातें और उनकी दिक्कतों के बारे में बातें कर रहे हैं। ये नाराजगी राहुल गांधी के चुनाव प्रचार में दिखती है। राहुल की रैलियों में काफी भीड़ जुट रही है। कई जगह तो लोगों ने बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने तक से रोक दिया। आज से कुछ महीनों पहले तक ये बात सोचना भी मुमकिन नहीं था। मगर आज मोदी के गढ़ में लोग राहुल गांधी को सुनना चाहते हैं। बहुत से गांवों और शहरी बस्तियों में लोगों ने बैनर लगाकर बीजेपी को अपने यहां से दूर रहने की चेतावनी तक दे डाली है। कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जब बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लोगों ने खदेड़ दिया। उन्हें बोलने नहीं दिया। अब बीजेपी को उम्मीद है कि लोगों से निजी तौर पर बात करके, उनकी शिकायतें दूर करके, अकेले में अपनी गलतियां मान कर वो वोटर को अपने लिए वोट करने के लिए मना लेगी। बड़ी रैलियों में अभी भी पार्टी उसी जुमलेबाजी से काम चला रही है, जिनके दम पर वो चुनाव जीतती आ रही थी, लेकिन जमीनी स्तर पर पार्टी मोदी को लेकर लोगों के जज्बात भुनाने में जुटी है। बीजेपी को उम्मीद है कि इस रणनीति से वो अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहेगी। बीजेपी को लगता है कि घर-घर जाकर लोगों से बात करना उसके लिए बड़ी कामयाबी लाएगा। वजह ये कि जमीनी स्तर पर कांग्रेस के पास इस रणनीति के मुकाबले कुछ नहीं है। अपनी जमीनी रणनीति को कामयाब बनाने के लिए बीजेपी ने कई केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा है, जो घर-घर जाकर लोगों से मिल रहे हैं। इसके अलावा बीजेपी सोशल मीडिया पर मैं हूं विकास, मैं हूं गुजरात और मोदी हैं ना जैसे अभियान भी चला रही है। बहुत से लोगों को लगता है कि बीजेपी की ये रणनीति चुनाव जिताने में कारगर साबित होगी। लोगों को ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि आम गुजराती, मोदी को अपने राज्य के गौरव और पहचान के तौर पर देखता है। उनकी कामयाबी से खुद को जोड़ता है। ऐसे में गुजरात के लोग अपने प्रधानमंत्री को नीचा दिखाएंगे, इसकी उम्मीद कम लगती है। लेकिन मोदी का नाम बार-बार भुनाने की बीजेपी की रणनीति में बड़ा जोखिम भी है। अगर बीजेपी हारती है, तो ये मोदी के खिलाफ वोट माना जाएगा। उन्हें गुजराती अस्मिता से जोड़कर देखने के दावे को भी चोट पहुंचेगी। पार्टी को तो इससे जबरदस्त सदमा लग सकता है। अगर ऐसा होता है तो लंगूर और तोते तो अहमदाबाद के लॉ गार्डेन में उधम मचाते रहेंगे। लेकिन उनकी आवाज से मुकाबला कर रही नई आवाज जरूर खामोश हो जाएगी। मोदी बनाम 29 पार्टियों का मुकाबला! अभी अगले लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल का समय बाकी है और उससे पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन विपक्ष ने अभी से 2019 के चुनाव का एजेंडा तय कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी नेता डेरेक ओ ब्रायन का मानना है कि अगला लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी एक पार्टी या किसी एक नेता के खिलाफ नहीं लड़ेंगे, बल्कि 29 पार्टियों के खिलाफ लड़ेंगे। उन्होंने विपक्ष की 29 पार्टियों का मुकाबला भाजपा और नरेंद्र मोदी के साथ बताया है। अगली लड़ाई अलग-अलग राज्यों में, अलग-अलग मुद्दों पर, प्रादेशिक क्षत्रपों के साथ लड़ी जाएगी। वर्तमान में सबसे अहम राजनीतिक व्यक्तित्व इस सर्वे के मुताबिक भारत की वर्तमान स्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्ति हैं। इस सर्वे का आधार सरकारी की नीतियां और रणनीतियां हैं जिससे उद्योगों के कारोबार और वाणिज्य पर असर पड़ता है। इसके मुताबिक वर्तमान माहौल में देश को जो आशावादी और स्पष्ट विजन का वातावरण उपलब्ध कराया गया है उससे कॉर्पोरेट जगत के लिये आने वाले 30 साल की बुनियाद मजबूत हो चुकी है। मई में प्रकाशित टाइम्स नाउ-वोटर्स मूड रिसर्च (वीएमआर) के सर्वे में लोकप्रियता के मामले में 60 प्रतिशत वोट पीएम मोदी को मिले हैं। यानी लोकप्रियता के मसले पर वो टॉप पर हैं और कोई दूसरा राजनेता उनके आस-पास भी फटकने की स्थिति में नहीं है। सर्वे की सबसे बड़ी बात यही है कि इसमें लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को देश में अब तक का सबसे अच्छा पीएम चुना है। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि देश की जनता तीन साल के बाद भी मोदी सरकार के कामकाज से कितनी खुश है। क्योंकि तीन साल बाद पीएम और सरकार की लोकप्रियता में और बढ़ोत्तरी हो गई है। यानी 2014 के आम चुनाव के समय जो देश में मोदी लहर थी, उसमें तीन साल बाद भारी बढ़ोत्तरी ही हुई है। -इन्द्र कुमार
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