01-Jan-2018 09:40 AM
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छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भारतीय जनता पार्टी की रणनीति साफ कर दी है। करीब एक साल बाद होने वाला यह चुनाव दो टूक विकास के मोर्चे पर लड़ा जाएगा। जाहिर है कि यही वह मोर्चा है जहां विपक्ष के पास अपने को साबित करने के लिए कुछ नहीं होगा, सिवाय रमन सरकार पर इल्जाम लगाने के। राजनीति के मंझे खिलाड़ी रमन सिंह इस बात को बेहतर समझते हैं कि आज की तारीख में केवल इल्जाम लगाकर कोई दल भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकता। यही वजह है कि मुख्यमंत्री की चिंता अब विपक्ष नहीं, वह घोषणाएं हैं जो स्वयं रमन सरकार ने की हैं और जिन्हें अभी पूर्ण होना है।
गुजरात फतह के बाद भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भले ही संतोष का अनुभव करें लेकिन यह बात स्पष्ट है कि अगले वर्ष छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की राज्य इकाइयों पर दबाव कुछ और बढ़ गया है। विगत 14 वर्षों से शासन कर रहे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास अपना मुख्यमंत्री पद बचाने, बशर्ते वह बच जाये तथा लगातार चौथी बार भाजपा को सत्ता में लाने के लिए महज 10 महीने शेष हैं। इन 10 महीनों में उन्हें कुछ ऐसा करिश्मा कर दिखाना है जिससे सत्ता विरोधी लहर जो जोर-शोर से चली आ रही है, दब जाए तथा राज्य के मतदाता एक बार फिर भाजपा के पक्ष में फैसला करें, लेकिन सवाल है गुजरात में नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने 22 वर्षीय सत्ता विरोधी लहर को शांत कर दिया था जो मुख्यत: मोदी के चमत्कारिक नेतृत्व व लोक-लुभावन भाषणों की वजह से संभव हुआ था पर रमन सिंह नरेंद्र मोदी नहीं है अलबत्ता उनका व्यक्तित्व भी बेजोड़ है और सार्वजनिक सभाओं में खासकर ग्रामीण अंचलों में उनकी बतकही भी लोगों को लुभाती है। पर यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि गुजरात में नरेंद्र मोदी के अलावा विकास का अपना मॉडल है जिसकी पूरे देश में लगभग दो दशकों से चर्चा होती रही है, जबकि छत्तीसगढ़ में पीडीएस सिस्टम के अलावा ऐसा कुछ नहीं है जो देश भर में चर्चित हो, बल्कि राज्य में विकास मूलत: शहर केन्द्रित है। शहरी विकास का यह मॉडल राज्य की गरीबी दूर नहीं कर सका है।
राज्य के 52 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे है। नीति आयोग की राजधानी रायपुर में 17 नवंबर 2017 को हुई बैठक में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई कि छत्तीसगढ़ में शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार व पोषण के क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरुरत है। आयोग के अध्यक्ष राजीव कुमार का कहना था कि बस्तर में बहुत ज्यादा काम करने की जरुरत है। स्पष्ट है नीति आयोग रमन सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं है।
खैर, यह तो एक बात हुई। गरीबी और गरीब एक शाश्वस्त सत्य है जिसका चुनाव की राजनीति से कोई सरोकार नहीं। इंदिरा गांधी ने जरूर गरीबी हटाओ नारा दिया था जिसे दोहराने की जरूरत वर्तमान राजनीति में नहीं है। विकास योजनाओं से गरीबी यदि घट भी रही है तो उसकी रफ्तार बहुत ही सुस्त है। छत्तीसगढ़ भी इससे परे नहीं है। बहरहाल मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के सामने आगामी चुनाव जीतने ढेरों चुनौतियां है। पहली चुनौती है कांगे्रस से जो पिछले कुछ महीनों से विशेषकर भूपेश बघेल के नेतृत्व सम्हालने के बाद आक्रामक है और जोर-शोर से जनहित एवं जनसमस्याओं से संबंधित मुद्दे उठाते रही है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि तमाम अंतर विरोधों, भयंकर गुटबाजी, प्रत्याशियों का गलत चयन एवं भीतरघात के बावजूद पिछले तीन विधानसभा चुनावों में कांगे्रस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी तथा मुकाबला कभी एक तरफा नहीं होने दिया। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने हैं।
किसी भी राज्य की तुलना में हम 10 कदम आगे
राज्य की सत्ता में तीन सफल पारियों के बाद चौथी की तैयारी में जुटे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को जितना भरोसा जनता पर है, उतना ही अपने काम पर। तभी तो वे कहते हैं-आप 10 साल के विकास के आंकड़े उठा लीजिए, और उसके आधार पर छत्तीसगढ़ की देश के किसी भी राज्य से तुलना करिए, मैं दावा करता हूं कि छत्तीसगढ़ दस कदम आगे मिलेगा। मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव की पिच पर 20-20 खेलने के इरादे से उतरने वाली रमन इलेवन का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को नए तेवर-कलेवर के साथ मैदान में आना होगा। केवल आरोपों की गेंदबाजी से कुछ नहीं होने वाला। जनता को यह बताना होगा कि आप क्या कर रहे हैं और क्या कर सकते हैं और बेशक, इस मामले में रमन सरकार की झोली में बहुत कुछ है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला