15-Jun-2013 07:07 AM
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सीएजी (कैग) प्रमुख विनोद राय के सेवानिवृत्त होने से सरकार ने राहत की सांस ली है। राय के रहते हुए कैग ने जितने घोटाले उजागर किए उतने इससे पहले कभी देखने में नहीं आए। यहां तक कि

बाद में कुछ कांगे्रसियों ने तो राय पर भाजपा से जनदीकी का आरोप भी लगा दिए। अब देखना है कि नए काग शशिकांत शर्मा कितने प्रभावी साबित होंगे।
शशि कान्त ने ऐसे समय में कार्यभार सम्हाला है जब सीएजी की वजह से सरकार में समुद्र मंथन की नौबत आ गयी। विनोद राय की निर्भीक कार्यशैली को देख कर लोगों की अपेक्षाएं शशि कान्त से भी वैसी ही रहेंगी और लोग यह आशा करेंगे शर्मा, विनोद राय की तरह सरकारी दबाब में आये बिना कार्य करें, ना कि सरकार के विदूषक या चीअर लीडर बन कर। इकनोमिक टाइम्स ने लिखा था कि शर्मा सीएजी और सरकार के बीच शान्ति की खोज करेंगे, अगर ऐसा हुआ तो सीएजी एक मजबूत संस्था ना रह कर, लुंज पुंज संस्था का रूप ले लेगी जो सरकार के काले कारनामों को उजागर करने में विफल रहेगी। सीएजी सरकार और उसके विभागों में हो रही धांधलियों और भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक सस्था है। इसकी गरिमा और स्वामिभान को बरकरार कोई मजबूत प्रमुख ही रख सकता है जो बिना किसी भय और पक्षपात के काम करे। ऐसा विनोद राय ने करके दिखाया। संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों को वेतन भारतीय समेकित निधि से मिलता है और उन्हें हटाने के लिए सरकार को संसद का सामना करना पड़ता है। अत: सीएजी प्रमुख को हटाना आसान नहीं है। अगर होता तो अब तक तो कांग्रेस विनोद राय को खा पी के हजम कर गयी होती। एक समय था जब टीएन शेषन ने चुनाव आयोग का प्रमुख होते हुए दिखा दिया था कि चुनाव आयुक्त क्या कर सकता है। शेषन ने निर्भय हो कर काम करने के लिए मार्ग दर्शन किया था जिसे उनके बाद केवल लिंगदोह निभा सके। देखना यह है कि क्या शशि कान्त शर्मा विनोद राय के पद चिन्हों पर चल पाएंगे या चलना चाहेंगे, जिससे लोग शर्मा को याद रखें और विनोद राय को भूल जाएँ। कांग्रेस ने विनोद राय को दबाने की बहुत कोशिश की और उन्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब वो शशि कान्त को पहले ही दिन से दबाने की कोशिश करेंगे और यह शर्मा पर निर्भर करेगा कि वो सरकार एवं कांग्रेस के दबाब को झेलना पसंद करेंगे या जनता की खून पसीने की कमाई में हो रहे भ्रष्टाचार को बे-पर्दा करना पसंद करेंगे। इंडस्ट्रियल फाइनैंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (आईएफसीआई) के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ अतुल राय को पूर्व कैग प्रमुख विनोद राय से दोस्ती महंगी पड़ी। खबर है कि अतुल राय ने सरकार के प्रेशर में आईएफसीआई के मैनेजिंग डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस बात की चर्चा पहले से ही थी कि विनोद राय के रिटायर होते ही अतुल राय का भी पत्ता साफ कर दिया जाएगा। अतुल राय ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप दिया।
इसके पहले विनोद राय और अतुल राय ने वित्त मंत्रालय में साथ काम किया था। कैग प्रमुख बनने के पहले विनोद राय वित्त मंत्रालय में जॉइंट सेक्रेटरी थे। वहीं अतुल राय डायरेक्टर थे और विनोद राय को रिपोर्ट करते थे। अतुल राय ने 2007 में आईएफसीआई जॉइन किया था। 2012 में इन्हें उसके बोर्ड में नियुक्ति मिली। यदि राय से इस्तीफा नहीं लिया जाता तो इनका कार्यकाल 2017 में खत्म होता। वित्त मंत्रालय के अधिकारी साफ तौर पर कहते थे कि अतुल राय को कैग प्रमुख विनोद राय के हटते ही इस्तीफा देना होगा। वास्तव में वित्त मंत्रालय ने दो साल पहले पहली बार जब अतुल राय की नियुक्ति के लिए इशू जारी किया था तब कैग की रिपोर्ट से यूपीए सरकार परेशान थी। टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन और कोलगेट के साथ ऑइल-गैस अप्रूवल में अनियमितता पर कैग की रिपोर्ट आ चुकी थी। बाद में सरकार ने आईएफसीआई के ज्यादातर स्टेक अपने कब्जे में ले लिया। कुछ ही हफ्तों में सरकार ने एक बार फिर से बोर्ड का गठन किया लेकिन एमडी और सीईओ पद में कोई बदलाव नहीं किया था।
शशिकांत शर्मा की नियुक्ति को भारत की मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने कॉनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मामला बताया है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि शशिकांत शर्मा खुद कई रक्षा सौदों की खरीद में शामिल रहे हैं। साल 1976 बैच के बिहार काडर के आईएएस शर्मा इस पद पर तैनाती से ठीक पहले रक्षा सचिव थे। शर्मा को विनोद राय से जो कुछ विरासत में मिला है, उनमें ऑगस्टा वैस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदे की ऑडिट रिपोर्ट भी शामिल है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली कहते हैं, क्या वो इस रिपोर्ट को खुद ऑडिट करेंगे? क्या यह उचित होगा? सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका भी दायर की गई है, जिस पर कोर्ट जुलाई में सुनवाई करेगा। अगर सीएजी न नियुक्त होते तो 60 साल के शर्मा रक्षा, वित्त, प्रशासन समेत कई विभागों में काम करने के बाद जुलाई में रिटायर हो जाते। मुरादाबाद में 1952 में जन्मे शशिकांत शर्मा ने बीएससी के बाद राजनीति विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। बिहार में कई जिलों में नौकरी के बाद 1992 में वे दिल्ली आ गए। यहीं सरकारी नौकरी के दौरान 1997 में शर्मा ने इंग्लैंड के यॉर्क विश्वविद्यालय से एडमिनिस्ट्रेशन साइंस एंड डेवेलपमेंट प्रॉब्लम्स में मास्टर्स की डिग्री ली। साल 2003 में वे रक्षा मंत्रालय आए और 2011 में वित्त मंत्रालय पहुंचे। शर्मा के पूर्ववर्ती विनोद राय ने भारत की 153 साल बूढ़ी सबसे बड़ी ऑडिट संस्था को सुर्खियों में ला दिया था। विनोद राय के कार्यकाल में सीएजी का कार्यालय सुर्खियों में बना रहा। राय के कार्यकाल में देश में कई बड़े विवाद सामे आए। सीएजी ने 76 पेज की अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में नियम-कायदे की अनदेखी की गई। रिपोर्ट के कारण तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा को इस्तीफा देना पड़ा और 2011 में उन्हें जेल भेज दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद नौ कंपनियों को बांटे गए 122 लाइसेंस भी रद्द कर दिए।
धर्मेन्द्र कथूरिया