18-May-2013 06:52 AM
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पाकिस्तान के कोर्ट लखपत कारागाह में 26 अप्रैल की सुबह जब सरबजीत सिंह लहुलुहान पड़ा था उस वक्त उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। जेल में उसे सुनियोजित तरीके से मारा गया। मारने से

पहले उसकी सेल से उसे बाहर निकाला गया। बाहर निकालने वाले वे पुलिस वाले ही थे, जिन्हें हिंदुस्तान से नफरत करने की घुट्टी बचपन से पिलाई गई है। सरबजीत की मौत हो जाए यह व्यवस्था पूरी तरह जेल में कर दी गई थी, जरदारी प्रशासन द्वारा जिसे किसी ने यह गारंटी दी थी कि अजमल कसाब की तरह सरबजीत भी हिंदुस्तान की दुखती रग है। दुखती रग को दबाया जाएगा तो दुश्मन तिलमिला जाएगा और इधर मुल्क में सरबजीत की हत्या का फायदा सत्तासीन दल को मिलेगा। पाकिस्तान नफरत से जन्मा देश है नफरत का सैलाब वहां इस कदर फैला हुआ है कि वे अपने आप से नफरत करते हैं। बलूच सिंधियों को नहीं सहन करते, सिंधी पंजाबियों को बर्दाश्त नहीं करते, पंजाबी पूर्वी मुसलमानों को बर्दाश्त नहीं करते और आम जनता मुजाहिदीनों यानी कि हिंदुस्तान से गए मुसलमानों को बर्दाश्त नहीं करती। नफरत और नफरत इसके सिवा वहां की सियासत में भी कुछ खास नहीं है, लेकिन इस नफरत के बीच अंसार बर्नी जैसे लोग भी हैं जो मानव अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। बर्नी से सरबजीत को बहुत उम्मीदें थी और सच पूछा जाए तो 2008 में जब पीपीपी की सरकार ने सरबजीत की फांसी पर अनिश्चितकालीन रोक लगाई थी उस वक्त भी बर्नी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। लेकिन इन्ही बर्नी पर सरबजीत की बहन ने रिश्वतखोरी का आरोप लगाया है यह आरोप सच है या गलत इसका खुलासा शायद ही हो सके, पर इतना तय है कि पाकिस्तान में खदबदाते नफरत के लावे के बीच किसी दया या इंसानियत की उम्मीद करना सूरज की रोशनी में दिन के तारों को गिनने के समान है।
भारत और पाकिस्तान दोनों देश विभाजन के बाद से ही एक-दूसरे को लेकर शंका से घिरे रहते हैं। यह भी सच है कि आईएसआई और अन्य खुफिया एजेंसियां अपने जासूस तैनात करती हैं। भारत भी पाकिस्तान की जासूसी करता है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। किंतु सरबजीत सिंह के विषय में आज तक सही तथ्यात्मक और बिंदुवार जानकारी सामने नहीं आ पाई। सरबजीत का मामला भावनात्मक रूप से ज्यादा अपीलिंग था इसीलिए मीडिया में भी इसे बढ़-चढ़कर प्रस्तुत किया गया। किंतु पाकिस्तान की जेल में असंख्य सरबजीत हैं। जिनमें से कुछ तो बिल्कुल ही निर्दोष हैं पर वे शत्रु देश में अपनी अंतिम सांसों का इंतजार कर रहे हैं। उनकी लड़ाई लडऩे के लिए तो बर्नी जैसे मानव अधिकारवादी भी नहीं हैं। सरबजीत मीडिया की सुर्खियों के कारण पाकिस्तान में भारत का हाईप्रोफाइल जासूस घोषित किया गया था। इसी कारण जब भारत ने अजमल कसाब को फांसी पर लटकाया था तो आशंका व्यक्त की जा रही थी कि पाकिस्तान के कट्टरपंथी-जिनकी तादाद वहां की जनसंख्या में 80 प्रतिशत तक है, सरबजीत को सजा-ए-मौत दे सकते हैं। यह आशंका सच साबित हुई। आतंकी कसाब की फांसी से तिलमिलाएं कट्टर पंथियों ने सुनियोजित तरीके से सरबजीत को कैदियों के मार्फत ही मौत की नींद सुला दिया। पाकिस्तान के मानव अधिकार आयोग ने सरबजीत के ऊपर हुए हमले को आपसी रंजिश का नतीजा माना है, असल में देखा जाए तो यह राजनीतिक हत्या है। जानबूझकर सरबजीत को कसाब की फांसी के बाद मारा गया। भारत को यह संदेश देने के लिए कि कसाब का बदला लिया जा सकता है। बदले का यह खेल अब शुरू हो चुका है। जम्मू की कोर्ट बलावल जेल में पाकिस्तानी कैदी सना उल्लाह पर हमला करके उसे मौत के मुंह में पहुंचा दिया गया है। यह हमला सरबजीत की मौत की प्रतिक्रिया था, इस बात का खुलासा नहीं हो सका है। खास बात यह है कि इस हमले के बाद पाकिस्तानी हाईकमिश्नर ने अपने अधिकारियों को सनाउल्लाह से मिलने की इजाजत देने का कहा था। ऐसा पहली बार देखने में आया कि किसी आतंकवादी घटना में लिप्त व्यक्ति को पाकिस्तान ने अपना नागरिक मानते हुए उससे मिलने की इजाजत मांगी है, बल्कि उसका शव भी हवाई हजाज से ले जाया गया और राजकीय सम्मान से दफनाया गया। वरना पाकिस्तान का यह चरित्र रहा है कि वह आतंकवादियों के शव लेने से ही इनकार कर देता है। आतंकवादी तो आतंकवादी वह अपने सैनिकों के भी शव नहीं लेता। जो उसकी सीमाओं के लिए लड़ते हैं। कारगिल युद्ध के समय इसका उदाहरण देखने को मिला है। पर सवाल वही है कि अब भारत का क्या रुख रहेगा। क्योंकि सरबजीत पर हमले के बाद भारतीय अधिकारियों को उससे मिलने की इजाजत नहीं दी गई थी। सरबजीत की बहन ने आरोप लगाया कि जिस अस्पताल में सरबजीत भर्ती था वहां के डॉक्टरों और नर्सों ने उनका उपहास किया उनका माखौल उड़ाया। वे शायद यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि सरबजीत तो मर चुका है आप लाश को देखने आए हैं। जिस तरह का हमला उस जेल में 26 अप्रैल को हुआ था उसके बाद बचने की उम्मीद वैसे भी कम थी। उस पर पाकिस्तान में स्वास्थ्य सेवाएं बाबा आदम के जमाने की है और एक भारतीय कैदी को भला कहां उच्च स्तरीय इलाज दिया जा सकता है। सच्चाई तो यह है कि जेल में उन हत्यारों ने ही सरबजीत को मौत के घाट उतार दिया था। उसके बाद छह दिनों तक उसके शव को वेंटिलेटर पर रख पाकिस्तान ने जो नाटक किया वह दुनिया को दिखाने के लिए था कि देखो हम शत्रु देश के जासूस की भी इतनी हिफाजत कर रहे हैं और भारत कसाब को फांसी दे देता है कुछ माह पूर्व जब पाकिस्तान में लाहौर हाईकोर्ट में 32 भारतीय कैदियों को रिहा किया था तब भी यही प्रचार किया गया था उनमें से दो महिलाएं थी। पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सिद्ध करना चाहता है कि वह भारत से परेशान है और इसीलिए बार-बार भारत को नीचा दिखाने की कोशिश करता है। लेकिन भारत की शांति प्रियता अब कायरता में तब्दील हो चुकी है। सरबजीत का मामला तो बहुत बाद में आया है इससे पहले कंधार विमान अपहरण कांड से लेकर मुंबई हमलों तक पाकिस्तान के प्रति भारत ने जो ढुलमुल रवैया अपनाया उसी के चलते भारतीय सेना को मन मसोस कर रहना पड़ रहा है। विडम्बना की बात यह है कि एक तरफ चीन घात लगाए बैठा है और दूसरी तरफ पाकिस्तान भारत को चुनौती दे रहा है। ऐसे हालात में कोई कठोर विदेश नीति अपनाने की आवश्यकता है पर विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को पाकिस्तानी हुक्मरानों के साथ भोजन करने में ज्यादा मजा आता है। पिछले वर्ष जनवरी भारत और पाकिस्तान ने 21 मई 2008 को हुए एक समझौते के तहत एक-दूसरे की जेल में सजा काट रहे दोनों देशों के कैदियों की सूची का आदान प्रदान किया था उस वक्त दोनों देशों ने कहा था कि वे इन कैदियों को उचित न्याय देंगे और उनकी हिफाजत करेंगे लेकिन अब पाकिस्तान ने इस विश्वास को तोड़ दिया है। उसकी विश्वसनीयता पहले से ही संदेहास्पद थी और अब सरबजीत के मामले में विश्वसनीयता और भी कम पड़ी है। इससे पहले सैनिकों के सर काटकर पाकिस्तान ने बर्बरता का परिचय दिया था। सरबजीत के शव से भी उसका दिल और किडनी गायब पाई गई है। दुख की बात तो यह है कि सरबजीत की शहादत पर गंदी राजनीति की जा रही है। भारत और पाकिस्तान दोनों जगह मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर सरबजीत के शव के साथ राजनीति की गई। पाकिस्तान में सरबजीत के शव को लेने गए विशेष विमान को अकारण दो घंटे रोका गया। भारत में राजनेताओं ने संवेदनाएं प्रकट करने में आसुओं के झड़ी लगा दी, लेकिन असली समस्या वैसी की वैसी ही है। दुश्मन हमारी आंख पर तेजाब फेक रहा है और हम अपने आपको बचाने में लगे हैं। दुश्मन को जवाब देने में हमें शर्म आती है। सरबजीत निर्दोष था उसके ऊपर आरोप सिद्ध नहीं हो पा रहा था क्योंकि कोई सबूत ही नहीं थे जो सबूत थे वे बचकाने थे। देखा जाए तो सरबजीत की हत्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने सुनियोजित तरीके से करवाई। सरबजीत पंजाब के उस इलाके से संबंध रखते थे जो उग्रवाद के दौर में पंजाब के सबसे ज्यादा प्रभावित था। तरनतारन जिला पंजाब में उग्रवाद का एक गढ़ रहा। लेकिन उग्रवाद के साथ-साथ इस इलाके की गरीबी ने भी लोगों को परेशान रखा है। जिस समय सरबजीत पाकिस्तान में गिरफ्तार हुआ उस समय तरनतारन जिला उग्रवाद का गढ़ था। इसका गांव भिखीविंड भी उग्रवादियों का गढ़ था। लेकिन सरबजीत ने इन सारे राष्ट्रविरोधियों की गतिविधियों में शामिल होने के बजाए अपने मजदूरी से ही जीवनयापन किया। एक दिन उसकी किस्मत खराब थी। खेत में काम करते हुए पाकिस्तानी सीमा में चला गया और पकड़ा गया। इस तरह की घटनाएं पाकिस्तानी सीमा पर अक्सर घटती हैं। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उसकी किस्मत काफी ज्यादा खराब है। उसे पाकिस्तानी अथारिटी ने उन बम धमाकों का आरोपी बना दिया जिससे उसे कोई लेना देना नहीं था। उसे लाहौर और फैसलाबाद में 29 जुलाई 1990 हुए बम धमाकों का आरोपी बनाया गया। उसे मौत की सजा सुनाई गई। इस केस को जज ने समझने की कोशिश नहीं की। फर्जी गवाहों के आधार पर बिना सबूत, बिना सही चार्जशीट पेश किए पाकिस्तानी मिलिट्री इंटेलिजेंस, पुलिस और न्यायपालिका के गठजोड़ ने उसे मौत की सजा दे दी। लेकिन सरबजीत के केस के पूरा घटनाक्रम दिलचस्प है, क्योंकि इस केस में एक कैरेक्टर मनजीत सिंह भी आता है। मनजीत सिंह कैरेक्टर इसलिए दिलचस्प है कि मनजीत सिंह पाकिस्तानी अथारिटी एफआईआर में आरोपी है। दरसअल आरोपी मनजीत सिंह अभी भी सलामत है और मजे में है। दो साल पहले एक ठगी के मामले में हरियाणा पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। पाकिस्तानी अथारिटी के दर्ज एफआईआर में आरोपी मनजीत सिंह पर आरोप है कि वो इंडियन इंटेलिजेंस एजेंसियों का एजेंट बनकर काफी लंबे समय पाकिस्तान में रहा। सरबजीत के वकील ने इन सारे तथ्यों को क्रमवार तरीके से पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में पेश भी किया। सरबजीत के वकील के अनुसार मनजीत सिंह धमाके के वक्त पाकिस्तान में था और धमाके के बाद पाकिस्तान से सुरक्षित निकल गया था। क्योंकि उसकी पकड़ पाकिस्तान अथारिटी में भी खूब थी। मनजीत सिंह ने एक पाकिस्तानी अधिकारी की बहन से शादी भी की थी। पाकिस्तान में रहने के दौरान वो पाकिस्तानी हाई सोसायटी के लोगों के साथ लगातार उठता बैठता था।
सरबजीत के वकील अवैश शेख ने जब सरबजीत के केस को अपने हाथ में लिया तो सिलसिलेवार तरीके से इस पूरे मामले को कोर्ट के सामने रख साबित कर दिया था कि बम धमाके का वास्तविक आरोपी मनजीत सिंह अभी भी जिंदा है। वो समय-समय पर इंग्लैंड, कनाडा और भारत में देखा गया। अवैश शेख ने कोर्ट में तमाम सबूत रख यह साबित किया कि जिस सरबजीत सिंह को मनजीत सिंह बनाकर पाकिस्तान कोर्ट में पेश किया गया वो सरबजीत सिंह पुत्र महंगा सिंह नहीं है,जिसे पाकिस्तानी अथारिटी में एफआईआर में दिखाया गया। सरबजीत सिंह के पिता का नाम सुलखान सिंह था। इसका पूरा सबूत पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट को दिखाया गया। लेकिल पाकिस्तान इएस सच को नकारता रहा और सरबजीत की लाश ही भारत आ सकी।
सुनील सिंह