07-Dec-2017 09:10 AM
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मप्र में रेत के अवैध खनन से सरकार को हर साल अरबों रुपए की चपत लगती है, साथ ही नदियों का भरपूर दोहन होता है। इसको देखते हुए सरकार ने नई रेत नीति घोषित की है, लेकिन इसके साथ ही इसके प्रावधानों पर सवाल उठने लगे हैं। खनिज साधन विभाग ने अभी इसे सार्वजनिक नहीं किया है पर तय नियमों से यह साफ है कि नई नीति से पंचायतों में गैंगवार होंगे। साथ ही एक-दूसरे को खुश करने के चक्कर में अवैध खनन भी बढ़ेगा।
दरअसल सरकार ने अपनी नई रेत नीति में छत्तीसगढ़ की रेत नीति को मॉडल बनाया है। जबकि आलम यह है कि खुद छत्तीसगढ़ में पंचायतों की स्थिति बिगडऩे से निकायों से अधिकार वापस लेने की बात हो रही है। इधर रेत नीति को लेकर सरकार अपने फायदे गिना रही है जिसमें रेत सस्ती होने से लेकर रोजगार मिलने तक के दावे शामिल हैं। सरकार का दावा है कि अगर पंचायत में गड़Þबड़ होगी तो गांव के विरोधी गुट के लोग शिकायत करेंगे। रेत की मात्रा का आंकलन करने के लिए हर साल अलग-अलग एक्सपर्ट से आंकलन कराया जाएगा। पुलिस या किसी अन्य तरह की जांच न होने और टीपी जारी न होने से रेत के दाम कम होंगे जिसका फायदा जनता को होगा।
सरकार का मत है कि रेत खनन के लिए 125 रुपये प्रति घन मीटर की दर निर्धारित की गई है। अब रेत खरीद ऑनलाइन करनी होगी। कियोस्क में राशि जमा करने के बाद रेत खरीदने के इच्छुक व्यक्ति को स्लिप मिलेगी, जिसे वह पंचायत में दिखाकर रेत हासिल कर सकता है। नई नीति के तहत प्रदेश की 821 रेत की खदानों का नियंत्रण ग्राम पंचायतों और स्थानीय निकायों को सौंपा जायेगा। ज्ञातव्य है कि प्रदेश की 1266 रेत खदानों में से 445 खदानें नीलामी के जरिये पहले ही आवंटित की जा चुकी हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि नई नीति के मुताबिक जिन खदानों के ठेके पहले हो चुके हैं और नई नीति में तय दर के मुताबिक कारोबार करने में खुद को अक्षम पा रहे हैं वे अपना ठेका सरेंडर कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि जिन जिलों में 20 से अधिक रेत खदान होंगी वहां रेत प्रबंधक की नियुक्ति की जायेगी। पंचायतों को रेत से मिलने वाली राशि का अलग से हिसाब-किताब रखना होगा।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना ने मध्यप्रदेश सरकार की नई रेत उत्खनन नीति पर प्रश्न उठाते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि अचानक ऐसी क्या आवश्यकता पड़ी कि नौ सौ चुहे खाने के बाद बिल्ली हज पर चलीÓÓ जैसी कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है। विगत 12 वर्षो से बड़ी-बड़ी पोकलैण्ड मशीनों से समस्त नियमों कानूनों को धज्जियॉ बिखेरकर भाजपा मंत्रियों, नेताओं और उनके रिश्तेदारों द्वारा अवैध उत्खनन कर दोनों हाथों से रेत को लूटने के बाद एक ऐसी नीति बनाई गई है जो निश्चत रूप से असफल सिद्ध होगी। इसके पीछे एक मात्र कारण है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के चेहरे पर अवैध उत्खनन की जो कालिक लगी है उसे साफ करने का असफल प्रयास किया जा रहा है। शासन की यह रेत उत्खनन नीति भी भावांतर की तरह भयावह सिद्ध होगी। सक्सेना का कहना है कि इस नीति में उत्खनन का अधिकार प्रदान करने की शक्ति ग्राम पंचायतों को दी गई है जिनके पास ना तो आवश्यक अमला है और ना ही रेत उत्खनन के मापदण्डों के अनुसार खनन की विशेषज्ञता, ऐसे में खनन माफिया एवं ठेकेदार जिन पर अभी तक खनिज एवं पर्यावरण विभाग का अंकुश था, अब वह निद्वन्द होकर रेत का मनमाने ढंग से उत्खनन कर एक ओर जहॉ शासन को करोड़ों रूपये की रायल्टी का चूना लगाऐंगे वहीं नदियों के पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचाएंगे, क्योंकि जब प्रदेश का खनिज एवं पुलिस विभाग भी मिलकर अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगा सके थे तब एक अदना सरपंच किस प्रकार रेत माफिया से मुकाबला कर सकेगा, ऐसे में राज्य शासन की इस नई रेत उत्खनन नीति से जहॉ राजस्व का भारी नुकसान होगा वहीं रेत माफिया की आपसी प्रतिद्वन्दिता से प्रदेश की कानून व्यवस्था भी छिन्न भिन्न हो जावेगी।
नदियों में बढ़ेगा अवैध खनन
रेत खनन को लेकर बनाई गई नई नीति में ही गफलत होने से अवैध खनन रुकने की संभावना नहीं है। बल्कि, विंध्य क्षेत्र की नदियों में रेत निकालने का काम जरूर चालू हो जाएगा। दरअसल, नई रेत खनन नीति में रॉयल्टी जमा करने के बाद व्यक्ति को जो ऑनलाइन मांग पत्र जारी होगा, उसके चार घंटे के भीतर खदान से रेत उठानी होगी। साथ ही उस वाहन का नंबर भी देना होगा जिससे वह रेत ले जाएगा। यदि कहीं सरपंच आपूर्तिकर्ता से सांठगांठ कर रेत का अवैध खनन करता है तो उसे रोकने के उपाय नीति में नहीं हैं। सड़क पर रेत परिवहन करते डंपरों की जांच भी नहीं होगी। इन दो नियमों के कारण माना जा रहा है कि अवैध खनन पर लगाम नहीं लगेगी। दूसरी ओर अनुमति देने का अधिकार ग्राम पंचायत को होगा। लिहाजा, हर नदी पर अनुमति सामान्य रूप से मिल जाएगी।
- श्याम सिंह सिकरवार