जख्म अभी भरे नहीं
07-Dec-2017 08:56 AM 1234869
मप्र की राजधानी भोपाल में 33 साल पहले 3 दिसंबर का सूरज हजारों मौतों का मातम करता हुआ उदित हुआ था। इस शहर में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी को तीन दशक से अधिक समय बीत गया लेकिन उससे मिले जख्म आज भी हरे हैं। यह लोगों के अवचेतन मन में पैठ किए हुए ऐसे जख्म हैं जो पीछा नहीं छोड़ते। उस समय युवा रहे लोग अब बूढ़े हो चले हैं लेकिन गैस त्रासदी के खौफनाक अनुभव मन में बैठकर उनकी उम्र के साथ सफर करते रहे हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 33 वर्ष पहले हुई दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी का असर अब भी बरकरार है। यूनियन कार्बाइड संयंत्र के आसपास की हर बस्ती इस बात की गवाही दे रही है कि यहां बचपन पर संकट बना हुआ है, यहां बीमारियां उनके जीवन को दीमक की तरह चट कर रही हैं। अभी तक दर्द झेलने को मजबूर लोग अब से 33 वर्ष पहले यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से रिसी जहरीली गैस ने भोपाल के हजारों परिवारों को ऐसे जख्म दिए जो आज भी हरे हैं। हर उम्र वर्ग के लोग बीमारियों का दंश झेल रहे हैं, इनमें वे बच्चे भी हैं जिनके माता-पिता हादसे के समय या तो बच्चे थे या उनका हादसे के बाद जन्म हुआ। सुदामा नगर में रहने वाले शमशाद कुरैशी के तीन वर्ष का बेटा ताहा जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। उसने अभी जिंदगी का मतलब भी नहीं जाना है और उसे मौत का डर सताने लगा है। ताहा की तिल्ली (स्प्लीन) बढ़ गई है, ब्लड कैंसर है और इलाज पर हर माह दो हजार रुपये से ज्यादा की दवाएं लग जाती हैं। करौंद में रहने वाला हर्ष चल फिर नहीं पाता है। वह अन्य बच्चों की तरह दौडऩा चाहता है, मगर चल फिर नहीं सकता है। हर्ष के पिता शंकर कहते हैं, 30 वर्ष पहले रिसी जहरीली गैस ने उनके बच्चे का बचपन छीन लिया है। वे बताते हैं कि सिर्फ हर्ष ऐसा नहीं है बल्कि उस जैसे हजारों बच्चे हैं जो खुशहाल जीवन नहीं जी पा रहे है। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार बताते हैं कि यूनियन कार्बाइड से रिसी गैस ने जन्मजात बीमारियां दी हैं। जहरीली गैस ने गुर्दे, फेफड़े, आंख की बीमारी के अलावा त्वचा के रोग दिए हैं। हजारों बच्चे अपाहिज पैदा हुए हैं। वहीं भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एण्ड एक्शन की प्रमुख रचना ढींगरा कहती हैं कि हजारों बच्चे बीमारियों की जद में हैं। उनकी बीमारी की वजह गैस का असर भी है। मगर अब तक ऐसा कोई शोध नहीं हुआ है जो यह बता सके कि बच्चों की बीमारी की मूल वजह क्या है। इडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डॉ. नालोक बनर्जी का कहना है कि भोपाल में गैस के असर के चलते बच्चों में जन्मजात बीमारियां और विकलांगता आ रही है इस तरह का न तो कोई शोध हुआ है और न ही इस तरह के प्रमाण ही सामने आए हैं। लिहाजा बच्चों की बीमारी और विकलांगता को गैस के असर से नहीं जोड़ा जा सकता है। भोपाल में रिसी गैस के असर को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि यूनियन कार्बाइड के करीब बनी बस्तियों में पैदा होने वाले बीमार बच्चों की संख्या किसी और इलाकों से कहीं ज्यादा नजर आती है। पीडि़त लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि विभिन्न सरकारों ने उन्हें इस त्रासदी के दंश से निकालने के लिए बड़े-बड़े वादे किए लेकिन समाधान किसी ने नहीं किया। परिसर में अभी भी जहरीला कचरा यूनियन कार्बाइड परिसर में अभी भी जहरीला कचरा पसरा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार अभी तक कचरे के निस्तार की कोई व्यवस्था नहीं कर पाई है। इस कारण आज भी आसपास के क्षेत्रों में इसका जहर फैलता रहता है। इस जहर का असर यह है कि गैस प्रभावित इलाकों के निवासियों में गुर्दे, गले और फेंफड़े के कैंसर बाकी इलाकों की तुलना में 10 गुना ज्यादा हैं। इसका खुलासा संभावना ट्रस्ट द्वारा किए गए शोध के प्रारंभिक नतीजों से हुआ है। गैस प्रभावित हादसे की रात इसलिए नहीं भूला पाए हैं, क्योंकि उन्हें जो बीमारियां मिली हैं, उसे वे आज भी भुगत रहे हैं। गैस प्रभावित बस्तियों में पहुंचते ही विकलांग बच्चे, हाफते युवाओं से लेकर बुजुर्गो को देखते ही उनकी स्थिति का अंदाजा लग जाता है। -अक्स ब्यूरो
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