स्वच्छता का गंदा सच
07-Dec-2017 08:48 AM 1234840
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को हाथों-हाथ लेने वाले मप्र में उनकी स्वच्छ भारत योजना दम तोड़ रही है। आलम यह है कि अरबों रूपए फूंकने के बाद भी मप्र की आधी से अधिक आबादी खुले में शौच कर रही है। यानी प्रदेश के आधे घरों में शौचालय नहीं है। 2019 तक भारत को खुले में शौचमुक्त बनाने की योजना के तहत मप्र सरकार ने प्रदेश में लक्षित 90,03,900 शौचालय बनाने की कार्ययोजना बना ली है, लेकिन तीन साल में कोई उल्लेखनीय परिणाम सामने नहीं आया है। आलम यह है कि करीब 15 हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन साकार होता नजर नहीं आ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान को राज्य सरकार कितनी गंभीरता से ले रही है इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में सामने आया है। जबलपुर होईकोर्ट ने मध्यप्रदेश के पुलिस थानों में ही महिला शौचालय का न होना एक गंभीर मसला माना है। इसके संबंध में अभिवक्ता अमिताभ गुप्ता द्वारा जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इसे काफी गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने पुलिस थानों में महिला शौचालय न होने के मामले को लेकर गृह विभाग और डीजीपी को नोटिस जारी किया है और इस संबंध में चार हफ्तों के अंदर जवाब देने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि प्रदेश के ऐसे बहुत से पुलिस थाने हैं जिनमें महिला शौचालय की व्यवस्था नहीं है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए अमिताभ ने जनहित याचिका के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया है। 676 पुलिस थानों में महिला शौचालय नहीं स्वच्छ भारत अभियान को महिला सम्मान के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहा है। इसके लिए प्रदेशभर की सड़कों पर महिला सम्मान के नारे लिखे गए हैं, लेकिन प्रदेश में महिला सशक्तिकरण का दावा करने वाली शिवराज सरकार अभी तक पुलिस थानों में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट तक नहीं बना सकी है। आज भी प्रदेश के आधे से ज्यादा थानों में अलग महिला टॉयलेट नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 1,13,500 पुलिस बल है। वहीं प्रदेश में 1,061 पुलिस थाने हैं जबकि महिला थानों की संख्या 10 है। पुलिस बल में 10,360 महिला पुलिस कर्मी हैं, लेकिन उसके बाद भी महिला पुलिसकमियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है। प्रदेश के थानों और चौकियों में महिला टॉयलेट नहीं होने की वजह से सीएम शिवराज सिंह चौहान ने 19 मई 2015 को घोषणा कर एफआईआर दर्ज कराने के लिए आने वाली महिलाओं के लिए अलग से रूम की व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे। इस घोषणा के बाद पुलिस मुख्यालय ने महिला टॉयलेट को लेकर सभी विभागों से जानकारी मांगी। इस जानकारी में पता चला कि प्रदेश के आधे से ज्यादा थानों में महिला फरियादियों से अपराध के संबंध में विवेचना करने के लिए ना ही रूम है और ना ही अलग से कोई टॉयलेट की व्यवस्था है। जानकारी के अनुसार पूरे दो साल के बाद तमाम आंकड़े जुटाकर पुलिस मुख्यालय की प्लानिंग शाखा ने प्रदेश के 676 थानों में अलग से रूम और रूम के अंदर ही महिला टॉयलेट बनाने का प्रस्ताव गृह विभाग को भेजा था। प्रस्ताव में तीन फेस में रूम और टॉयलेट के निर्माण के लिए 4911 लाख का बजट मांगा गया, लेकिन हैरत की बात है कि स्वच्छ भारत अभियान में नंबर वन होने के बावजूद महिला पुलिस कर्मचारियों के लिए थानों और चौकियों में टॉयलेट तक की व्यवस्था नहीं है। प्रदेश के 1061 थानों में से सिर्फ 293 थानों में ही महिला टॉयलेट की व्यवस्था हैं। राजधानी भोपाल में ही कुल 42 थाने हैं, जिनमें महज छह ही ऐसे थाने हैं जहां महिला टॉयलेट हैं। ऐसे में ड्यूटी के दौरान महिला पुलिसकर्मियों और थानों में शिकायत और एफआईआर दर्ज कराने आने वाली महिलाओं को अक्सर परेशान और शर्मिंदा होना पड़ता है। इसी तरह इंदौर के 55 थानों में सिर्फ 17, जबलपुर के 36 थानों में से सिर्फ 13, ग्वालियर के 39 थानों में सिर्फ 9 और उज्जैन के 28 थानों में 8 में ही महिला पुलिसकर्मियों के लिए टॉयलेट हैं। हर साल की तरह इस साल भी पुलिस मुख्यालय में आयोजित महिला परामर्शदात्री की बैठक में महिला पुलिस कर्मचारियों द्वारा टॉयलेट के मुद्दे को उठाया गया। उन्होंने कहा, पुलिस कार्यालयों में तो टॉयलेट की व्यवस्था है, लेकिन पुलिस थानों और चौकियों में आज भी महिला टॉयलेट नहीं हैं। पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों ने दो साल की गहरी नींद के बाद सरकार को प्रस्ताव जरूर भेजा है, लेकिन ये प्रस्ताव गृह विभाग के पास बीते पांच महीनों से हरी झंडी के लिए पड़ा है। हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती शासन और प्रशासन भले ही कागजी कार्रवाई में जुटे हुए हैं, लेकिन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के थानों और चौकियों में महिला पुलिस अधिकारियों के लिए अलग से टॉयलेट से लेकर रिटायरिंग व ड्रेसिंग रूम सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव को कठघरे में रखने वाली जनहित याचिका को बेहद गंभीरता से लिया। इसी के साथ राज्य शासन, गृह सचिव व डीजीपी को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया गया। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता व न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने अपना पक्ष स्वयं रखा। उन्होंने दलील दी कि मध्यप्रदेश में एक हजार से अधिक पुलिस थाने व पुलिस चौकियां स्थापित हैं। यह बेहद आश्चर्यजनक और चिंता के योग्य तथ्य है कि प्राय: सभी थानों और चौकियों में पदस्थ महिला पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रसाधन के लिए पृथक से साफ-सुथरे टॉयलेट तक का अभाव है। अलग से बाथरूम और वॉशरूम जैसी सुविधाएं तो बहुत दूर की बात है। इसी तरह रिटायरिंग रूम और ड्रेसिंग रूम जैसी सुविधाएं तो महज कल्पना तक ही सीमित हैं। जबकि दूसरे राज्यों में महिला पुलिस के लिए इस तरह की सुविधाओं की ओर अपेक्षाकृत गंभीरता से ध्यान दिए जाने की जानकारी सामने आई है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदेश सरकार मध्यप्रदेश पुलिस की लेडी विंग के प्रति इस कदर उदासीन और लापरवाह कैसे हो सकती है? स्वच्छता की कागजी हकीकत प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए प्रदेश में शौचालय निर्माण का अभियान सरकारी आंकड़ों में तो सरपट दौड़ रहा है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश में अभियान कहीं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है, तो कहीं इच्छाशक्ति और जागरुकता के अभाव में दम तोड़ रहा है। आंकड़ों पर गौर करें तो 10 अक्टूबर तक वित्तीय वर्ष 17-18 के तहत मध्यप्रदेश 14 लाख 36 हजार 642 व्यक्तिगत शौचालय का निर्माण कराकर देश में दूसरे स्थान पर है। मध्यप्रदेश में खुले में शौच एक बड़ी समस्या है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2019 तक मध्यप्रदेश सरकार 1.22 करोड़ घरों में शौचालय बनाना चाहती है जिससे 52,000 गांव खुले में शौच से मुक्त हो सकें, लेकिन फिलहाल लगता है पैसों और सरकारी सोच में कमी से यह इरादा फाइलों में ही रह जाएगा। आलम यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को गंदा भारत मिशन बनाने में जनप्रतिनिधि ही डटे हुए हैं। मध्यप्रदेश के जिलों में 90 फीसदी से ज्यादा ऐसे जनप्रतिनिधि हैं, जिनके घरों में शौचालय ही नहीं है। जनप्रतिनिधियों के इस लोटा मोह का खुलासा खुद स्वच्छ भारत मिशन की सर्वे रिपोर्ट ने किया है। इन जनप्रतिनिधियों में पंच, उपसरपंच, सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत के सदस्य शामिल हैं। ऐसे में स्वच्छ भारत मिशन कैसे साकार होगा? राइट टू लाइफ का सीधा उल्लंघन भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को राइट टू लाइफ का मौलिक अधिकार दिया है। इसके बावजूद पुलिस विभाग से संबंधित विभिन्न प्रस्तावित और स्वीकृत योजनाओं में महिला टॉयलेट सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का जिक्र तक नहीं है। जनहित याचिका में विशेष रूप से एमपी नगर थाने का जिक्र करते हुए हाईकोर्ट को अवगत कराया गया कि राजधानी के हृदय-स्थल पर स्थापित इस थाने में पुरुष और महिला पुलिस के लिए एक अदद टॉयलेट है। इसमें प्रसाधन के लिए आते-जाते वक्त बेहद शर्मिंदगी की स्थिति निर्मित होना स्वाभाविक सी बात है। सरकार को भेजा गया प्रस्ताव प्रदेश के आधे से ज्यादा थानों में अलग महिला टॉयलेट नहीं होने का मामला अब तूल पकड़ चुका है। हाईकोर्ट की सक्रियता को देखते हुए सरकार भी सजग हुई है। उधर अब इस मामले में डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला ने संज्ञान लिया है। डीजीपी ने स्वीकार किया कि ये मूलभूत सुविधा है। सरकार को प्रस्ताव भेज दिया गया है। वित्तीय आवश्यकता की जरूरत है और जल्द ही इस समस्या से निपट लिया जाएगा। डीजीपी शुक्ला ने कहा कि हम प्रयास कर रहे हैं कि जल्द ही महिला पुलिसकर्मियों के लिए थाने में अलग से टॉयलेट बने। साथ ही फरियादी महिलाओं के लिए अलग से सुनवाई करने के लिए कमरा भी बनाएगी। इस कमरे में टॉयलेट से लेकर फीडिंग कैबिन भी होगा। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सरकार पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाने की तैयारी कर रही है। ऐसे में थानों में महिला शौचालयों का निर्माण आवश्यक हो गया है। -भोपाल से राजेश बोरकर
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^