07-Dec-2017 08:43 AM
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राजस्थान कैडर के युवा आईपीएस देवाशीष देव की मौत के बाद बेहद ही मार्मिक दास्तान सामने आ रही है। सरकारी अनदेखी ने अंतत: उन्हें मौत के अंजाम तक पहुंचा दिया। तंगहाली में उनकी मौत तड़प-तड़प कर टुकड़ों में हुई। यहां तक कि अंतिम समय में ऐसी स्थिति हुई कि उनके पास इलाज तक के पैसे नहीं रह गये।
ऑक्सीजन सिलिंडर का चार्ज देना तक मुश्किल हो गया था। अंतत बीते 30 अक्टूबर को उनकी मौत हो गयी।
आईपीएस की मौत की वजहों का जो जिक्र सामने आ रहा है, वह बेहद ही मार्मिक है। कैसे एक युवा आईपीएस ड्यूटी के दौरान घायल होता है और 10 महीनों तक बेड पर पड़े रहने के बाद उनकी मौत हो जाती है। इलाज के 10 महीने के दौरान ऑन-ड्यूटी नहीं होने की वजह से उनका वेतन रोक दिया जाता है। घर में मां, पत्नी और सात साल की बेटी का निर्वहन कैसे हो। सारी जिम्मेदारी उन्हीं पर थी और वे 10 महीने से घायल बेड पर पड़े थे। सरकार द्वारा वेतन रोक दिए जाने के बाद घर की रोजी-रोटी से लेकर इलाज तक की समस्या पैदा हो गयी। यहां तक कि राज्य के आला अफसरों ने भी उनके दुख से कोई इत्तेफाक नहीं रखा। घायल अवस्था में सेवा देने में असक्षम एक इलाजरत आईपीएस का वेतन रोक देना कहीं से भी ना तो नैतिक है, ना मानवीय और ना सर्विस एथिक्स के पक्ष में। शुरू में राज्य के डीजी ने बचाव किया कि घायल आईपीएस का वेतन नहीं रुका है। उन्हें सारी सुविधाएं और हर संभव मदद मिल रही है। मगर जब आईपीएस देवाशीष के खाली खाते के ब्योरे को सार्वजानिक हुए तो डीजी ने चुप्पी साध ली। बताया जाता है कि उन्होंने वेतन ना मिलने वाली बात अपने कई साथियों को भी बताई थी। किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर अपना इलाज करा रहे थे। मौत से पहले के 4 महीनों से उनका वेतन बंद था। वित्तीय आपत्तियों से जूझते हुए एक दिलेर, साहसी और स्वाभिमानी पुलिस ऑफिसर को मौत ने जकड़ लिया। पर उनकी मौत ने सिस्टम पर अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं।
बता दें कि आईपीएस देवाशीष बिहार के नालंदा जिले के थे। राजस्थान में सत्ताधारी भाजपा के कार्यकर्ताओं से उलझना बड़ी बात है। उन्होंने साहस से यह काम भी किया था। कोटा शहर में अपनी दबंगता दिखा रहे एक भाजपा नेता को सरेआम थप्पड़ जड़ दिया था। देवाशीष का इसका खामियाजा कोटा से ट्रांसफर के रूप में भुगतना पड़ा था। बहरहाल एक युवा आईपीएस की ऐसी तड़प-तड़प कर हुई मौत ने सत्ता पर बेहद ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही उन आला पुलिस अफसरों को भी घृणा के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है, जो सत्ता की जुबान बोलने लग जाते हैं। उनके ही रंग में रंग जाते हैं।
राजस्थान पुलिस अकादमी जयपुर में उपनिदेशक युवा आईपीएस देवाशीष की मौत के दूसरे दिन सोशल मीडिया पर वायरल एक खत ने प्रदेश पुलिस के अफसरों में खलबली मचा दी। यह पत्र जम्मू-कश्मीर के आईपीएस और डीआईजी (होमगार्ड) बसंत कुमार रथ ने राजस्थान के डीजीपी अजीत सिंह शेखावत को लिखा है। उन्होंने आरपीए के निदेशक राजीव दासोत पर देवाशीष के वेतन रोके जाने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। इसके अलावा सिस्टम पर भी परिवार को सहयोग नहीं जाने की शिकायत की गई है। यह पत्र वायरल होने से एडीजी दासोत की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई है। हालांकि, डीजीपी के दखल के बाद करीब बीस दिन पहले ही देवाशीष को वेतन जारी किया गया था, लेकिन अब उनके देहांत के बाद यह पत्र लीक होने से मामला गरमा गया है। उधर, दासोत का कहना है कि आईपीएस रथ की ओर से लगाए गए आरोप निराधार हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए संबंधित उच्च अधिकारियों को लिखा भी जाएगा।
पत्र में यह कहा गया है कि जम्मू कश्मीर पुलिस की ओर से तो देवाशीष के परिवार को 50 हजार रु. की सहायता के लिए आर्थिक सहयोग जारी किया गया, लेकिन राजस्थान पुलिस की ओर से उन्हें बीमारी के दौरान एक कर्मचारी तक नहीं दिया गया। आरपीए के निदेशक राजीव दासोत ने देवाशीष का वेतन भी रोक लिया। इस दौरान उनका परिवार आर्थिक संकट से जूझता रहा। अब मामले का खुलासा होने के बाद प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में अफसर सिस्टम को कोस रहे हैं।
महकमें की संवेदनहीनता
2013 बैच के आईपीएस देवाशीष देव ब्रह्मा मंदिर की गद्दी के विवाद के चलते पुष्कर गए थे। 13 जनवरी को कुर्सी टूटने के कारण सिर के बल 6 फीट नीचे गिर गए थे। इस दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। इसके बाद से ही उनका इलाज चल रहा था। अब उनकी मौत ने सरकार और पुलिस के आला महकमे की संवेदनहीनता की प्रचंड झलक दिखलाई है। एक पुलिसकर्मी ड्यूटी के दौरान घायल होता है और उसका वेतन रोक दिया जाता है। उसे इस हद तक आर्थिक रूप से मजबूर किया जाता है कि
उसकी सांसें रुक जायें, वह बेमौत और असमय ही मर जाये। ऐसे में कौन अफसर सरकार के प्रति निष्ठा दिखाकर जान जोखिम में डालेगा।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी