संविधान का मजाक
17-Nov-2017 07:07 AM 1234888
राजस्थान के 10 संसदीय सचिवों पर तलवार लटक गई है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार में संसदीय सचिव बनाने का विरोध कर रही भाजपा की राजस्थान सरकार ने पिछले वर्ष जनवरी और दिसम्बर माह में 10 संसदीय सचिव बनाए। अब राजस्थान हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर वसुंधरा सरकार द्वारा बनाए गए संसदीय सचिवों को उनके पदों से हटाने की गुहार की गई है। अधिवक्ता दीपेश ओसवाल ने राज्य के मुख्य सचिव और कैबिनेट सचिवालय के प्रमुख सचिव को पक्षकार बनाते हुए दायर की गई जनहित याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के जुलाई, 2017 में बिमोलांगशु रॉय बनाम आसाम राज्य के मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार राज्य सरकार को संसदीय सचिव बनाने का अधिकार नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवाते हुए संसदीय सचिव नियुक्त करने की अधिसूचना को रद्द करवाते हुए 10 संसदीय सचिवों को उनके पद से हटाया जाए। वसुंधरा राजे सरकार में दो अलग-अलग अधिसूचनाओं के जरिए राज्य में 10 संसदीय सचिवों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के मंत्रिमंडलीय सचिवालय ने 18 जनवरी, 2016 को अधिसचूना जारी कर विधायक सुरेश रावत, जितेन्द्र गोठवाल, विश्वनाथ मेघवाल, लादूराम विश्नोई, एवं भैराराम को संसदीय सचिव बनाया था। इसके बाद 10 दिसम्बर, 2016 को एक अन्य अधिसूचना के माध्यम से शत्रुघन गौतम, ओमप्रकाश हूडला, कैलाश वर्मा, नरेन्द्र नागर, भीमा भाई डामोर को संसदीय सचिव नियुक्त किया। इधर कांग्रेस भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति का विरोध कर रही है। राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के सचेतक का कहना है कि सरकार ने पिछले विधानसभा सत्र में ही बहुमत के आधार पर संसदीय सचिवों को लाभ के पद से बाहर मानने वाला विधेयक पारित करवा लिया। हम संसदीय सचिव बनाए जाने के खिलाफ है। उल्लेखनीय है कि वसुंधरा राजे सरकार ने संसदीय सचिवों सहित विभिन्न निगमों एवं बोर्ड के चेयरमैन को लाभ के पद से बाहर निकालने को लेकर पिछले विधानसभा सत्र में राजस्थान निर्हरता निवारण विधेयक, 2017 पारित करवाया था। इस विधेयक के अनुसार कोई भी विधायक यदि इन पदों पर बैठता है तो उसे लाभ का पद मानते हुए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकेगा। लोकसेवकों को संरक्षण देने वाले बिल में किरकिरी झेलने वाली राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने एक बार फिर विवाद को जन्म दे दिया है। वसुंधरा सरकार ने विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए संसदीय सचिव को लाभ के पद से बाहर करने का बिल विधानसभा में पास करा लिया। गुपचुप तरीके से पास कराए गए इस बिल का कांग्रेस ने भी कोई विरोध नहीं किया। आपको बता दें कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार में संसदीय सचिव बनाए गए विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां कर रही हैं। राजस्थान विधानसभा निर्हरता निवारण विधेयक 2017 को विधानसभा में पास किया गया, जिसके अंतर्गत संसदीय सचिव, बोर्ड, निगम, प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या निदेशक पद पर बैठा कोई भी विधायक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है। बिल के अनुसार कोई भी विधायक इन पदों पर बैठे तो वो लाभ का पद नहीं कहलाएगा, इसके लिए सरकार ने चोर दरवाजा निकालकर इन पदों पर बैठे विधायकों के मानदेय और भत्ते हटा लिए हैं। संविधान के आर्टिकल 167 ए के मुताबिक मंत्रीपरिषद में विधायकों की कुल संख्या के 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, जबकि राजस्थान में पहले से ही पूरे 30 मंत्री है और सरकार ने ऊपर से 10 विधायकों को संसदीय सचिव बना रखा है। गौरतलब है कि कांग्रेस की गहलोत सरकार ने भी 10 से ज्यादा विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। बीजेपी के कद्दावर नेता और विधायक घनश्याम तिवारी का कहना है कि जब दिल्ली और असम के मुख्यमंत्री संसदीय सचिव को लाभ के पद से बाहर रखने के विधेयक नहीं पारित करवा सकते हैं तो हमारी मुख्यमंत्री में कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं। 28 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया था। कथनी और करनी में सामने आया अंतर साल 2012 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी। जिसने अपने 13 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। तब भाजपा की ओर से हाई कोर्ट में रिट लगाकर कहा गया था कि सरकार को संसदीय सचिव बनाने का अधिकार ही नहीं है। सरकार ने संविधान के उल्लंघन के साथ-साथ जनता के पैसे का भी दुरुपयोग किया है, लेकिन जैसे ही साल 2013 में भाजपा सत्ता पर काबिज हुई, उसने चुपचाप अपने आप को इस रिट से अलग कर लिया। क्योंकि अगर रिट वापस लेती तो सवाल उठते। रिट लगाने वाले कोर्ट में हाजिर ही नहीं हुए। जिससे रिट अपने आप ही खारिज हो गई। उसके बाद भाजपा ने भी अपने विधायकों को खुश करने के लिए 10 संसदीय सचिव बना डाले, लेकिन इस साल 26 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में साफ कर दिया कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव नियुक्त करने का कोई अधिकार ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद अब इस मामले में राजस्थान हाई कोर्ट में भी जनहित याचिका दायर हो चुकी है। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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