07-Dec-2017 08:24 AM
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तथाकथित तौर पर राम मंदिर विवाद अब अंतिम पड़ाव पर है। उम्मीद की जा रही है कि इस साल के अंत तक सर्वोच्च न्यायालय विवाद को सुलझा लेगा। मजे की बात तो ये है कि आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर भी इस बहती गंगा में उतर चुके हैं और कोर्ट के बाहर विवाद को सुलझाने के लिए आगे आ रहे हैं। शिया वक्फ बोर्ड प्रमुख वसीम रिजवी की तरह श्रीश्री रविशंकर भी बाहरी हैं और अब अचानक से राम जन्मभूमि विवाद में बिना फीस के वकील बनने में लग गए हैं। हालांकि उनकी तरफ से विवाद का निपटारा करने की पहल को बीजेपी उसी गर्मजोशी से अपना रही है जैसे शिया वक्फ बोर्ड की पहल को अपनाया था।
शिया वक्फ बोर्ड मस्जिद पर दावा इस तर्क के साथ कर रही है कि क्योंकि 40 के दशक में ही लोअर कोर्ट ने मस्जिद पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का हक होने से मना कर दिया था। तो जाहिर है कि मस्जिद शिया वक्फ बोर्ड के हिस्से में जाएगी। वैसे रिजवी भी कोई दूध के धुले नहीं हैं। बाबरी मुद्दे में मध्यस्थता करने के पहले वो समाजवादी पार्टी आजम खान के करीबी रहे हैं और आजम खान, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव सरकार की कैबिनेट का प्रमुख हिस्सा रहे हैं। प्रमुख शिया मौलाना काल्बे जावाद ने रिजवी पर वक्फ बोर्ड में आर्थिक अनियमितता का आरोप लगाया था। साथ ही इस मामले में राज्य सरकार द्वारा सीबीआई जांच भी शुरू करवा दी। ये जांच अभी भी चल ही रही है। वहीं श्रीश्री रविशंकर की इस पहल से न तो विश्व हिन्दू परिषद् और न ही निर्मोही अखाड़ा प्रभावित हुआ हैं। इसके पहले भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी भी मामले की सुनवाई में तेजी लाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं।
आर्ट ऑफ लीविंग संस्थापक रविशंकर और भाजपा के बीच की निकटता साथ ही बीजेपी और शिया वक्फ बोर्ड के बीच की दोस्ती को देखकर किसी को भी शक हो जाएगा। इनके बीच के नए बने ये रिश्ते दाल काली होने का संकेत दे रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अयोध्या के मुद्दे को फिर से हवा देने के पीछे बीजेपी की मंशा निकट के विधानसभा चुनावों और उत्तरप्रदेश में हो रहे निकाय चुनावों में जीत हासिल करना है। एक तरफ जहां मुस्लिम नेताओं ने कह दिया है कि अगर कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ जाता है तो वो बाबरी मस्जिद पर अपना दावा छोड़ देंगे, लेकिन वहीं हिन्दू नेताओं ने साफ कर दिया है कि चाहे कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में हो या फिर खिलाफ, राम मंदिर वहीं बनेगा। कोर्ट के आदेश के बाद मुसलमानों के पास अपना दावा छोडऩे का एक कारण होगा। वहीं दूसरी ओर कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने पर काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। ये दोनों ही मंदिर विश्व हिन्दू परिषद् के एजेंडे में सालों से हैं। एक तरफ जहां भाजपा नेता इन तीर्थस्थानों पर बात करने से बचते हैं तो वहीं इनके सहयोगी अपनी मांगों को सामने रखने में बिल्कुल नहीं हिचकते। ऐसे में भाजपा द्वारा कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने की जल्दबाजी पर शक होना लाजमी है।
किसी ने नहीं दिया भाव
अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद को सुलझाने की आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की कोशिशों पर इस मामले के पक्षकार न तो इसे लेकर बहुत गंभीर हैं और न ही उन्हें इस प्रयास से कुछ हासिल होने की उम्मीद दिख रही है। राम जन्मभूमि के अंदर रामलला विराजमान की ओर से पक्षकार त्रिलोकी नाथ पांडेय का कहना है कि अब जबकि पांच दिसंबर से सुप्रीम कोर्ट में मामले की अंतिम सुनवाई शुरू होने जा रही है तो ऐसे में अब कोर्ट के बाहर सुलह की कोशिशों का कोई मतलब नहीं है। वहीं मस्जिद एक्शन कमेटी के चेयरमैन जफरयाब जिलानी कहते हैं कि इस पहल में कितनी गंभीरता है ये सबको पता है, इसका न तो कोई नतीजा निकलना है और न ही नतीजे के मकसद से ये सब हो ही रहा है।
-ऋतेन्द्र माथुर