07-Dec-2017 08:15 AM
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मप्र में पंद्रह साल बाद कांग्रेस को सत्ता में वापसी की उम्मीद दिख रही है, लेकिन उसकी इस उम्मीद पर उसके अपने ही पानी फेरते दिख रहे हैं। ऐसे में आलाकमान कोई भी रिश्क लेना नहीं चाहता है। इसलिए फैसला किया गया है कि पार्टी में अब बड़े निर्णय आलाकमान की छांव में होंगे। दरअसल प्रदेश प्रभारी बनने के बाद दीपक बावरिया ने अपने चंद दौरों में प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी का जो मंजर देखा है उससे वे आहत हैं। बावरिया को समझ में आ गया कि मध्यप्रदेश में बैठकर कांग्रेस का कुछ नहीं हो सकता। यहां नेताओं की जिंदाबाद के आगे कांग्रेस का कुछ नहीं बनेगा। लिहाजा अब मध्यप्रदेश कांग्रेस के फैसले वैसे ही दिल्ली में आलाकमान की छांव में होंगे, जैसे पहले होते रहे हैं।
प्रदेश के आने वाले चुनावी साल में अब कांग्रेसियों को फिर अपना क्षेत्र छोड़कर दिल्ली में अपना कीमती समय और पैसा बर्बाद करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यूं भी कांग्रेसियों को लगता है कि उनके किए से कुछ होने वाला नहीं है। जो भी करना है, जनता को ही करना है। अब अगर जनता शिवराज सिंह चौहान या भाजपा से नाराज होगी तो जाएगी कहां? प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की इसी सोच ने पार्टी के पन्द्रह साल विपक्ष के खाते में दर्ज करवा दिए जिसकी आमतौर पर कांग्रेस को कभी आदत नहीं रही। महेश जोशी लाख कहें कि मध्यप्रदेश के फैसले भोपाल में ही बैठकर लो, लेकिन कांग्रेस में ऐसा रिवाज ही नहीं है।
कांग्रेस में तो तयशुदा फैसले भी आलाकमान की मुहर लग कर लिए जाते हैं। कांग्रेस का एक ऐसा ही राजनीतिक वाकया याद आ रहा है। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1998 में दूसरी बार चुनाव जीता था। तय था कि मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को ही बनना है। प्रणब मुखर्जी आलाकमान के पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद थे। दो घंटे बैठक चली। प्रणब मुखर्जी बाहर आए तो पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछे। उन्होंने जवाब दिया, मैं अपनी रिपोर्ट आलाकमान को दूंगा। उन्होंने सोनिया गांधी से बात की। बाद में पत्रकारों को बताया गया कि कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी ने सर्वसम्मति से दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है। हालांकि यह वो दौर था जब कांग्रेस केन्द्र में तो कमजोर थी ही उसका आलाकमान भी उतना ही कमजोर था। सोनिया गांधी तब राजनीति में आईं हीं थी और कुछ समय पहले ही सीताराम केसरी को हटा कर उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था। शायद, इसलिए ही प्रदेश में दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपने दोनों टर्म पूरे किए। वरना कांग्रेस आलाकमान जब भी शक्तिशाली रहा है उसने क्षेत्रीय क्षत्रपों को ताश के पत्तों की तरह ही फेंटा है। दिग्विजय सिंह, विलासराव देशमुख, अशोक गेहलोत से लेकर तरुण गोगोई तक कांग्रेस के जितने भी मुख्यमंत्रियों ने अपने एक या उससे ज्यादा कार्यकाल पूरे किए हैं तो केवल इसलिए कि आलाकमान के तौर पर सोनिया के सामने आने के बाद से ही कांग्रेस केन्द्र में लगातार कमजोर रही है। 1985 से 89 कांग्रेस आलाकमान के शक्तिशाली होने का आखिरी दौर था।
कांग्रेस की दिक्कत ही यह है कि वो जमीन से जुड़कर फैसले लेने की बजाय दिल्ली में ही अपनी राजनीति करती है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को दिल्ली ही भाती है। भोपाल तो उनका अस्थायी ठिकाना है। बिना दिल्ली मेें मजबूत हुए पार्टी में मजबूत होना मुश्किल है। जो दिल्ली में मजबूत है, जमीन पर उसकी मजबूती जरूरी नहीं है। सुरेश पचौरी इसका कांग्रेस में बड़ा उदाहरण हो सकते हैं। वे दिल्ली में बरसों बरस मजबूत रहे, लेकिन मध्यप्रदेश में जब भी उन्होंने अपनी जमीन खोजनी चाही, हमेशा नतीजा सिफर ही निकला।
कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया इस मायने में थोड़ा अलग हैं। दोनों की कम से कम अपने इलाकों में जमीन भी मजबूत है और दिल्ली तो खैर उनकी है ही। पूरे मध्यप्रदेश में जिसकी जमीन मजबूत है, वो दिग्विजय सिंह इस समय नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। यह अभी रहस्य ही है कि दिल्ली में उनकी पूछ परख कम हुई है या वाकई दिग्विजय सिंह के ही अनुरोध पर सोनिया गांधी ने उन्हें नर्मदा परिक्रमा के लिए पार्टी के कामों से छुट्टी दी हुई है। तो अब कांग्रेसियों को तैयार रहना चाहिए। उनका अगला साल कितना दिल्ली में बीतेगा और कितना मध्यप्रदेश में, इसे सिर्फ दिल्ली वाले ही जानते हैं। उधर प्रदेश में लगातार चौथी पारी के लिए भाजपा अपना वार रूम बनाकर काम में जुट गई है। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान की चिंता और बढ़ गई है।
कांग्रेस का नया चुनावी फार्मूला मंडलम
भाजपा दफ्तर में चुनावी प्रबंधन कार्यालय शुरू होने के बाद कांग्रेस ने संगठन को नए सिरे से मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है। इसी के तहत नई व्यवस्था में पांच बूथ की जिम्मेदारी एक नेता को सौंपे जाने पर विचार किया जा रहा है। पांच बूथ की यह इकाई मंडलमÓ कहलाएगी। यह व्यवस्था प्रदेश में कांग्रेस के 565 संगठनात्मक ब्लॉक में लागू की जाना है। मंडलमÓ बनाए जाने की पहल कांग्रेस महासचिव व प्रदेश के नए प्रभारी बने दीपक बावरिया की है। उन्होंने शुरुआती प्रदेश का दौरा करने के बाद संगठनात्मक ढांचे में फेरबदल की योजना तैयार की है, जिसके अनुसार निचले स्तर पर पार्टी की पकड़ को मजबूत करना है। इससे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम मिल सकेंगे। नई व्यवस्था के अनुसार गठित होने वाले मंडलमÓ विधानसभा क्षेत्र तक ही सीमित होंगे। इसमें मौजूदा ब्लॉक की संख्या 565 से बढ़कर 750 के करीब हो जाएगी। फिलहाल कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा काफी पुराना है जिसके अनुसार ब्लॉक अध्यक्ष के पास ही बूथ की जिम्मेदारी होती है।
-भोपाल से अरविंद नारद