07-Dec-2017 08:08 AM
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सरकार ने पूरक पोषण आहार की नई नीति तो जारी कर दी, लेकिन इसके क्रियान्वयन की अब तक तैयारी नहीं है। जिन स्व-सहायता समूहों व महिला मंडलों को ये काम सौंपा जा रहा है, वे केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन की शर्त ही पूरी नहीं करते हैं। प्रदेश में 50 हजार से ज्यादा समूह एवं मंडल हैं, लेकिन किसी के भी पास पोषण आहार तैयार करने के लिए अत्याधुनिक कारखाना नहीं है। जबकि
गाइड लाइन की पहली शर्त ही यही है। ऐसे में यह गली बनी रहेगी कि नाम स्व-सहायता समूहों का होगा और काम ठेकेदार करेंगे। यानी नई पूरक पोषण आहार नीति में भी कंपनी राज कायम रहेगा।
पोषण आहार की जिम्मेदारी स्व-सहायता समूह व महिला मंडलों को सौंपने का निर्णय लेने में राज्य सरकार को पूरा एक साल लग गया। अक्टूबर 2016 में सरकार ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया था। पहले से तय था कि काम समूह व मंडलों को देना है और यह भी तय था कि केंद्र और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन करना है। फिर भी सरकार ने समय रहते समूह और मंडलों की कार्यक्षमता का आंकलन तक नहीं कराया। यह भी नहीं देखा गया कि कितने समूहों के पास अत्याधुनिक कारखाने है। गाइड लाइन की एक शर्त पोषण आहार के उत्पादन में कम से कम मानव हस्तक्षेप रखना भी है। पोषण आहार व्यवस्था के जानकारों का कहना है कि नई व्यवस्था में नाम समूह और मंडलों का होगा, लेकिन असल में काम ठेकेदार ही करेंगे। वे बताते हैं कि अब समूह टेंडर प्रक्रिया में शामिल होंगे। ठेकेदारों के कारखानों को लीज पर लेना दिखाया जाएगा। इस आधार पर ठेका मिलेगा और फिर इन्हीं कारखानों में पोषण आहार तैयार कर सप्लाई किया जाएगा। इसके बदले समूह और मंडल के सदस्यों को कारखाने में नौकरी मिल जाएगी।
जानकार बताते हैं कि ठेकेदारों ने समूह व मंडलों के पोषण आहार निर्माण में फेल होने की आशंका का हल पहले से निकालकर रखा है। ज्यादातर ठेकेदारों ने पांच से 15 समूहों को मिलाकर फेडरेशन तैयार कर लिए हैं, जिनका पंजीयन भी हो चुका है। उल्लेखनीय है कि कैबिनेट ने नीति को मंजूरी देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि समूह काम करने में अक्षम हुए तो दूसरे विकल्पों पर विचार किया जाएगा।
पोषण आहार वितरण का काम कंपनियों से लेकर स्व-सहायता समूहों को देने के लिए राज्य सरकार ने नई नीति तो बना ली, लेकिन उसे लागू करने में अभी चार माह का समय लग सकता है। महिला एवं बाल विकास विभाग टेंडर की प्रक्रिया बनाएगा, इसमें स्व-सहायता समूहों को दो में से एक विकल्प दिया जा सकता है। बताया जा रहा है कि राज्य सरकार स्व-सहायता समूहों से रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल या एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट बुलाएगी। इससे समूहों की क्षमता का आंकलन होगा। फिर पोषण आहार सप्लाई के काम के प्रति गंभीर समूहों की छंटनी होगी। इसके लिए भी मापदंड तय होंगे। विभाग इस बात की भी कोशिश करेगा कि ज्यादा से ज्यादा महिला स्व-सहायता समूहों को यह काम दिया जाए, लेकिन सरकार की तमाम कोशिश के बाद यह बात तो तय है कि पूरक पोषण आहार व्यवस्था में महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक बार फिर ठेकेदारों के लिए रास्ता खोल दिया है। अत्याधुनिक प्लांट में आहार तैयार कराने की शर्त के कारण स्व. सहायता समूह कंपनियों की शरण में ही जाएंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पोषण आहार की गुणवत्ता कायम रह पाएगी।
समूह नहीं कर सकते शर्ते पूरी
पोषण आहार तैयार करने वाले प्लांट में न्यूनतम मानव हस्तक्षेप और बोनाफाइड मैनुफैक्चरर की शर्त दिक्कत खड़ी कर सकती है। ऐसा अत्याधुनिक प्लांट में ही संभव है। जिनकी लागत करोड़ों रुपए है। जबकि महिला मंडल, स्व-सहायता समूह और छोटी संस्थाओं के पास छोटे कारखाने लगाने के लिए भी पूंजी नहीं है। उधर, अफसरों का तर्क है कि नई व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार की गाइड लाइन के तहत प्रस्तावित की गई है। नई व्यवस्था में प्रदेशभर का एकजाई टेंडर नहीं होगा। बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर टेंडर निकाले जाएंगे। ताकि क्षेत्रीय स्व-सहायता समूह, महिला मंडल और छोटी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ सके। महिला एवं बाल विकास विभाग ने पूरक पोषण आहार खरीदी के लिए टेंडर की शर्तें तय कर ली हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार ने समूहों के लिए रास्ता भले ही खोला हो लेकिन वर्चस्व कंपनियों का ही रहेगा।
- विकास दुबे