07-Dec-2017 07:00 AM
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मप्र में सियासत, कार्पोरेट, अफसरशाही की मिलीभगत से विकास के कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। इस कारण कभी जेट्रोफा लगाने, कभी उद्योग लगाने तो कभी सेज प्रोजेक्ट (स्पेशल इकोनॉमिक जोन) के नाम पर सरकारी जमीनों की बंदरबांट तो की ही जा रही है साथ ही किसानों की जमीनों को भी हड़पा जा रहा है, लेकिन आज तक न तो जेट्रोफा से एक बूंद भी बायोफ्यूल निकला, न ही आशा के अनुरूप उद्योग स्थापित हुए और न ही सेज आकार ले सकी।
सेज के नाम पर कार्पोरेट घराने और अफसर ऐश कर रहे हैं, जबकि नौकरी की आस में अपनी बेशकीमती जमीन देने वाले किसान बेहाल हैं। वर्तमान समय में छिंदवाड़ा का सौंसर क्षेत्र सियासत, कार्पोरेट और अफसरशाही के चंगुल में कराह रहा है। इस क्षेत्र की बदहाली की जुलाई 2007 में उस समय शुरू हो गई जब यहां सेज की मंजूरी मिली थी। जानकारी के अनुसार छिंदवाड़ा के सांसद कमलनाथ ने जिले में उद्योग स्थापित कर विकास करने महाराष्ट्र के चार उद्योगपतियों को आमंत्रित किया था। जिसमें मनोज शंकरलाल मंत्री, कमल किशन अग्रवाल, संजय अग्रवाल और महेश अग्रवाल शामिल है। यह खेल सेज प्रोजेक्ट के डायरेक्टरों ने छिंदवाड़ा प्लस डेव्हलपमेंट कंपनी के नाम पर खेला है। इधर ट्रायफेक से लेकर दिल्ली पर्यावरण कार्यालय में इस सेज प्रोजेक्ट की कोई जानकारी नहीं है। इस खेल की मुख्य भूमिका में हल्दीराम के मालिक सहित तीन और अन्य उद्योगपति शामिल है। जिन्होंने राजनीतिक और अधिकारियों की मिली भगत से इस कार्य को अंजाम दिया है। इसमें छिंदवाड़ा के दो कलेक्टरों चौधरी और जेके जैन की भूमिका संदेहास्पद रही।
दरअसल विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) अधिनियम जून 2005 में लाया गया था और इसे फरवरी 2006 से लागू किया गया। नीति को वर्ष 2006 में बहुत ही प्रचार-प्रसार के साथ शुरू किया गया। उस समय अर्थव्यवस्था की विकास दर तेज थी और वैश्विक निवेशक भारत को एक विश्वसनीय निवेश स्थल के रूप में देख रहे थे। सेज की शुरुआत इस वादे के साथ की गई कि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निवेशकों को आकर्षक कर प्रोत्साहन दिए जाएंगे। मप्र के छिंदवाड़ा जिले के सौंसर क्षेत्र को जुलाई 2007 में सेज घोषित किया गया। सेज प्रोजेक्ट के तहत छिंदवाड़ा प्लस कंपनी ने 27 अक्टूबर 2007 को राज्य सरकार से करारनामा किया था। सरकार की ओर से 2 हजार हेक्टेयर भूमि खरीदने की अनुमति प्रदान की गई। इस स्वीकृति के आधार ट्रायफेक व छिंदवाड़ा प्लस कंपनी के बीच करारनामा हुआ। इस आधार पर मुख्यमंत्री की अपेक्षा समिति ने निर्णय लेते हुए भूअर्जन के आदेश जारी किए। जिसमें 2002 के पुनर्वास नीति के अनुसार सुविधाएं दी जाएं। इस कारण कंपनी को शासन द्वारा स्टांप ड्यूटी में छूट दी गई। इसके तहत कंपनी को सेज के प्रावधानों के तहत क्षेत्र को विकसित करना था। इसके बाद प्रदेश सरकार की अनुमति पर 22 सितम्बर 2008 को 1487.076 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण किए जाने की मंजूरी मिल गई। इस तरह कंपनी ने 2006 से लेकर 2015 तक कुल 3 हजार 487 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण की। शासन से भी 242 हेक्टेयर शासकीय भूमि प्रदान की गई है। इसके अलावा वन विभाग ने भी सेज के लिए भूमि दी है। इस पूरे काम को नियंत्रण करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की टायफेक समिति जिम्मेदार रहती है। आज 10 साल बीत गए, किंतु इस प्रोजेक्ट के तहत एक कमरा तक नहीं बनाया गया है। सेज कानून नियम के मुताबिक 2005 के अनुसार 3 साल में विकास कार्य करना थे। हर 6 महीने में विकास कार्य की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजना थी। आज 10 साल बाद भी वहां विकास के नाम पर कुछ क्षेत्र में बस बाऊंड्री वॉल खड़ी की गई है।
यही नहीं कंपनी की मांग पर सरकार ने जुलाई 2016 में गोड़ीभदौरा में किसानों की 247.45 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने की कार्यवाही की। दरअसल, भू-अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 एवं भूमि अर्जन अधिनियम 1894 के तहत सरकार को यह भू-अर्जन किया था। भू-अर्जन नीति के अनुसार, भू-अर्जन अधिकारी यानी कलेक्टर को उक्त इसके तहत धारा 24 में लिखा है भूमि की 100 फीसदी कीमत कंपनी से एडवांस में लेकर सरकारी खजाने में जमा करनी थी। उसके बाद जमीन का अधिग्रहण किया जाना था, लेकिन छिंदवाड़ा कलेक्टर ने भू-अधिग्रहण नियम का पालन नहीं किया और किसानों से जमीन लेकर कंपनी को अवार्ड पारित कर दिया। अब कंपनी जमीन की कीमत देने में आनाकानी कर रही है।
स्थिति यह है की इस समूह को बार-बार नोटिस देकर कलेक्टर ने इस जमीन की कीमत चुकाने के निर्देश दिए। इसके बाद भी सरकार के पास राशि जमा नहीं कराई गई। यही नहीं अब जब कलेक्टर ने नोटिस जारी कर जमीन की राशि का भुगतान करने को कहा तो कंपनी प्रबंधन ने अब कलेक्टर को जवाब दिया है कि वे किसानों की उक्त जमीन नहीं लेना चाहते।
अब सरकार के सामने दोहरा संकट आ गया है। एक तो सेज का काम आगे नहीं बढ़ पाया है, दूसरा किसानों में भी आक्रोश है। इसी बीच 3 अक्टूबर को कैबिनेट ने मेसर्स छिंदवाड़ा प्लस डेवलपर्स लिमिटेड को 28.484 हेक्टेयर भूमि वन विभाग को अंतरित किये जाने की छूट प्रदान करने का निर्णय ले लिया। कैबिनेट द्वारा मेसर्स छिंदवाड़ा प्लस डेवलपर्स लिमिटेड को छंदवाड़ा तहसील सौंसर में सेज की स्थापना के लिये भूमि रकबा 54.354 हेक्टेयर को वर्ष 2010-11 की कलेक्टर गाइड लाइन के आधार पर संगणित प्रीमियम राशि 1 करोड़ 94 लाख 54 हजार 830 रुपए तथा उस पर 7.5 प्रतिशत की दर से वार्षिक भू-भाटक 14 लाख 59 हजार 112 रुपए प्रति वर्ष लेकर आवंटित करने का निर्णय भी लिया गया।
सरकार के इस निर्णय से छिंदवाड़ा के उन किसानों में आक्रोश है जिनकी भूमि कंपनी ने झांसा देकर पूर्व में खरीद ली है और अभी तक विकास कार्य शुरू भी नहीं हुआ है। किसान नंदकिशोर ढोबले ने बताया कि शासन ने करारनामे के आधार पर कंपनी को भू-अर्जन करने स्टाम्प ड्यूटी में छूट प्रदान की थी। कंपनी ने करारनामे के नियमों का पालन नहीं करते हुए प्राइवेट बातचीत के आधार पर जमीन खरीदी। 2007 से लेकर 2012 तक हजारों एकड़ जमीन खरीद ली। जिसमें उपपंजीयक कार्यालय सौंसर ने स्टांप ड्यूटी में छूट प्रदान की। भूमि खरीदने के दौरान कलेक्टर गाइड लाइन के अनुसार मुआवजा प्रदान नहीं किया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि सेज क्षेत्र घोषित होने के बाद कंपनी ने सावंगा, सतनूर ग्राम पंचायत में किसी प्रकार की अधिसूचना जाहिर नहीं की। इतना ही नहीं ग्राम सभा में किसी प्रकार का कोई भी प्रस्ताव नहीं लाया गया। वह कहते हैं कि कंपनी के लोगों ने किसानों में डर पैदा करने के लिए फर्जी अधिसूचना जाहिर करवा दी। इस डर से किसानों नेे अपनी जमीन औने पौने दाम में बेच डाली। 10 साल कालंबा समय बीत जाने के बाद भी आज तक एक फैक्ट्री क्या एक दीवार भी खड़ी नहीं हो पाई। इससे गांव में बेरोजगारी फैल गई है। गांव के युवक, युवती और किसान पलायन कर रहे है। हालात यह है कि पचास फीसदी आबादी पलायन कर चुकी है। किसानों ने सभी पहलुओं को लेकर जांच करने की मांग की है।
वह कहते हैं कि इस कंपनी के माध्यम से बड़े बड़े दलालों को सक्रिय किया। इन दलालों ने गांवों में धूमकर किसानों को बरगलाया। उन्हें विकास के सपने दिखाए। इतना ही नहीं किसानों के प्रत्येक घर के नौजवानों को नौकरी देन का लुभावना वादा भी किया। इन दलालों ने प्राइवेट बातचीत के आधार पर झांसे में लेकर किसानों से औने पौने दाम में 8 गांव की 35 सौ खरीदी ली। दस साल बीत जाने के बाद भी कोई विकास कार्य शुरू नहीं किया गया। इस पूरे खेल में अभी जो बातें सामने आई है। उससे यह अंदाज लगाया जा रहा है कि यह पूरा षड्यंत्र सिर्फ और सिर्फ जमीन खरीदने के लिए खेला गया है। वह कहते हैं कि सौंसर क्षेत्र में सेज के नाम पर किसानों से जमीन ली गई है लेकिन उसका उपयोग अब तक नहीं किया गया है। छिंदवाड़ा प्लस कंपनी ने प्राइवेट बातचीत के आधार पर 80 फीसदी जमीन का भूअर्जन किया है। जो सेज कानून की गाइड लाइन का उल्लंघन है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिला शासन प्रशासन को खबर होने के बाद भी कंपनी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। जबकि किसानों ने साफ कहा है डरा धमकाकर जमीन ली गई है।
वह कहते हैं कि कंपनी को एमओयू के तहत लगभग दो हजार एकड़ जमीन भूअर्जन के लिए स्वीकृत मिली थी। किंतु अधिकारियों की सांठ-गांठ से दो बार में 8 हजार 500 एकड़ जमीन स्वीकृत कर ली गई। इसी तरह तीन साल में काम शुरू करना था, लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से 10 साल बाद भी काम शुरू नहीं हो पाया है।
21 में से 16 सेज बंद
मेक इन एमपीÓ को बढ़ावा देने के दावे करने वाली प्रदेश सरकार की बातों में कितना दम है, इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां सेज के 21 प्रोजेक्ट में से सिर्फ दो ही शुरू हो सके हैं। यही नहीं प्रदेश में अनुमति प्राप्त प्रोजेक्ट में से मात्र 9.5 फीसदी ही शुरू हुए, वहीं 76 फीसदी बंद हो गए हैं। एसईजेड विकास आयुक्त कार्यालय के अफसरों का कहना है निर्यातकों की बेरुखी और टैक्स के चलते प्रदेश के कुल 21 सेज में से 16 बंद हो गए हैं। प्रदेश में 10 नोटिफाइड सेज में से चार प्रोजेक्ट बंद हो गए हैं। इन्हें विकसित करने की समयावधि भी समाप्त हो चुकी है। इन्होंने इसे बढ़ाने के लिए आवेदन भी नहीं किया है। इनमें पाश्र्वनाथ डेवलपर का इंदौर में बनने वाला सेज भी शामिल है। आईटी सेक्टर का ये सेज 30.98 हेक्टेयर क्षेत्र में बनाना था। इसी प्रकार महू के पास पांडा गांव में 11.9 हेक्टेयर में बनने वाला मेडिकैप्स का सेज प्रोजेक्ट भी बंद हो चुका है। अन्य बड़े प्रोजेक्टों में हिंडाल्को का 111.8 हेक्टेयर में सिंगरौली प्रोजेक्ट, एकेवीएन जबलपुर के खनन और कृषि सेक्टर के दो सेज प्रोजेक्ट शामिल हैं। सेज प्रोजेक्ट का प्रस्ताव देकर नÓ करने वाली कंपनियों में इंदौर आने वाला जूम डेवलपर का मल्टी प्रोडक्ट सेज, मान इंडस्ट्री का मालवा आईटी पार्क, क्रीसेंट रियलिटी का आईटी सेज व ग्वालियर में प्रस्तावित मल्टी प्रोडक्ट सेज, राइटर्स एंड पब्लिशर्स का छिंदवाड़ा सेज, रुचि रियलिटी और एग्रो वेब का आईटी सेज ठंडे बस्ते में चले गए हैं।
जेट्रोफा की खेती के नाम पर 20 हजार हेक्टेयर की बंदरबांट
प्रदेश में बायोफ्यूल बनाने के लिए जेट्रोफा की खेती के नाम पर प्राइवेट कंपनियों ने 20 हजार हेक्टेयर सरकारी जमीन हड़प ली है। सरकार ने ये जमीन बायो डीजल के उत्पादन के लिए दो साल के लाइसेंस पर दी थी। मगर सरकार को इस बात की परवाह ही नहीं है कि बायो डीजल का उत्पादन हो भी रहा है या नहीं। किसी भी कंपनी ने जेट्रोफा का उत्पादन कर उसके बीज से बायो डीजल नहीं बनाया। यह मामला 2012 में विधानसभा में भी उठ चुका है। तत्कालीन राजस्व मंत्री ने जानकारी देते हुए बताया था कि इंदौर संभाग में मेसर्स मिशन बायोफ्यूल्स प्रालि. को जिला झाबुआ में 2000 हेक्टेयर, मेसर्स डेंजी एग्रो टेक प्रालि. मुंबई को झाबुआ में 2000 हेक्टेयर, मेसर्स इंडिया आयल कारपोरेशन नई दिल्ली को झाबुआ में 2000 हेक्टेयर, मेसर्स ग्रेट गेलन लिमिटेड इंदौर को बड़वानी में 2000 हेक्टेयर पड़त भूमि दो साल के लिए नि:शुल्क दी गई थी। इनके अलावा रुचि सोया इंडस्ट्रीज मुंबई, सुदामा टेक्नालाजी लिमिटेड इंदौर, मैग्नम आर्गेनाइजर प्राइवेट लिमिटेड बड़ौदा, मेसर्स बायोफ्यूल प्रालि. मुंबई, मेसर्स इंडिया बायोफ्यूल दिल्ली एवं केएस आयल मुरैना के कब्जे में दो-दो हजार हेक्टेयर, एमआईजीआर नेचुरल्स मेरठ के पास 1005 हेक्टेयर व चिन्नौनी चंबल आर्गेनिक्स गुडग़ांव के कब्जे में 968 हेक्टेयर सरकारी जमीन है। इन कंपनियों को अशोकनगर, बड़वानी, छतरपुर, मुरैना एवं झाबुआ में रतनजोत की खेती व बायो डीजल का उत्पादन करना था।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स में फूंके करोड़ों, निवेश का सपना स्वाह
मध्यप्रदेश में निवेश के लिए बड़ी-बड़ी ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट, रोड शो और विदेश दौरों के बाद भी प्रदेश में निवेश के हालात बद से बदतर है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना ने प्रदेश में अब तक हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट पर पलटवार करते हुए कहा कि सरकार ने समिट के नाम पर अब तक करोड़ों रूपये स्वागत-सत्कार, इंवेंट मेनेजमेंट के नाम पर फूंकने के बावजूद भी कंपनियों से किये गये करार और निवेश का सपना स्वाह हो चुका है। अब तक 11 बार इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर बड़ी कंपनियों से करार हुए। जिसमें रिलायंस ने 34 हजार करोड़, बिड़ला समूह ने 20 हजार करोड़, निटेक्स लिमिटेड दो हजार करोड़, प्राक्टर एंड गेंबल ने 11 सौ करोड़, मायलान लेव 700 करोड़, ल्यूपिन इंडिया 380 करोड़, एस्सार समूह ने 4 हजार 500 सौ करोड़, हेटिच कंपनी ने 400 करोड़, आईटीसी लिमिटेड ने 600 करोड़, मयूर यूनिकोटर्स ने 200 करोड़, अजंता फार्मा ने 400 करोड़, वर्धमान 780 करोड़, सागर मैन्युफेक्चरिंग ने 965 करोड़, रूसान फार्मा ने 700 करोड़, एवगॉल लिमिटेड ने 230 करोड़ तथा छिंदवाड़ा एसईजेड आदि कंपनी ने 2500 करोड़ रूपयों के निवेश का वादा किया था, किन्तु एक भी कपंनी ने अपने एमओयू को मूर्तरूप नहीं दिया है।