बेटियों के गुनहगार!
17-Nov-2017 06:28 AM 1234973
मप्र में पिछले 14 साल से एक ही राग सुनने को मिल रहा है... बीतेगी काली रात जरा सब्र तो करो, बदलेंगे ये हालात जरा सब्र तो करो। सरकार के इस आव्हान पर प्रदेश की साढ़े सात करोड़ आबादी काली रात ढलने, हालात बदलने का इंतजार कर रही है। इंतजार के साथ-साथ जनता कानून व्यवस्था की लचर स्थिति के कारण अपराधियों का शिकार बन रही है। आलम यह है कि यहां तथाकथित तौर पर चुस्त और दुरुस्त पुलिस है, अदालत है, सरकार है, महिला संरक्षण और उत्थान के तमाम संसाधन हैं फिर भी यहां सरेराह लाडलियों का चीर हरण हो रहा है। 31 अक्टूबर की रात को राजधानी भोपाल में आईएएस बनने का ख्वाब देख रही 19 वर्षीय युवती के साथ जिस तरह चार दरिंदों ने बेरहमी से दुष्कर्म किया और उसके बाद पुलिस ने पीडि़ता के साथ लापरवाही दिखाई उससे अब प्रदेश की वादियों में नारा बुलंद होने लगा है कि बेटियों के लिए महफूज नहीं भारत का दिल, पुलिस भी हुई बेरहम, अब आना न इस प्रदेश लाडो। मध्य प्रदेश में बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने से लेकर महिला सशक्तिकरण के लिए लाडली लक्ष्मी योजना, लाडो योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना तो संचालित हो रही है, साथ में युवतियों को आत्मसुरक्षा के लिए सक्षम बनने हेतु शौर्या दल बनाए जा रहे हैं, मगर महिला अपराधों को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वे कई सवाल खड़े करते हैं। कन्या पूजन एवं स्त्री को देवी के रूप में पूजने वाले देश में एक बार फिर मानवता को शर्मसार करने वाली घटना भोपाल में उस समय घटी, जब भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन से मात्र 100 मीटर की दूरी पर चार दरिंदों ने मध्यप्रदेश पुलिस में नौकरी करने वाली मां और केन्द्रीय पुलिस बल में कार्यरत पिता की साहसी बिटिया ने जमकर संघर्ष किया, लेकिन नरपिशाच का रूप अख्तियार कर लेने वाले आरोपियों ने उसकी अस्मत को तार-तार कर दिया। चार आरोपियों ने उसे जमकर नोंचा और छह मर्तबा उसके साथ दुष्कर्म किया। पुलिस का अमानवीय व्यवहार इस बिटिया के साथ दुष्कर्म की वारदात के बाद देशभक्ति, जनसेवा के नारे को बुलंद करने का दावा करने वाली मध्यप्रदेश पुलिस में बैठे अदने से लेकर आला अफसरों ने जिस तरह का रवैया अख्तियार किया वह दुष्कर्म से ज्यादा दर्दनाक रहा। थाना-दर-थाना पीडि़ता और उसके परिजन भटकते रहे। रिपोर्ट लिखने में 24 घंटों से ज्यादा का वक्त पुलिस ने लगाया। महिला हितैषी होने का दंभ भरने वाली मध्यप्रदेश सरकार और हर बिटिया को अपनी भांजी और माताओं को बहिन बताने के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दावों पर कालिख पोतकर रख दी। रेलवे पुलिस की एसपी अनिता मालवीय घटना को लेकर शर्मनाक ढंग से न्यूज चैनल कैमरों के सामने हंसी-ठिठौली करती नजर आईं। पीडि़ता और उसके माता-पिता, घटना के अगले दिन सुबह से लेकर देर रात तक रेलवे थाना, एमपी नगर और हबीबगंज पुलिस स्टेशनों के चक्कर लगाते रहे। पीडि़ता और उसके परिजनों के अनुसार पुलिस ऐसे पेश आ रही थी जैसे कसूर उनका हो। दनादन शर्मसार करने वाले सवाल दागे गए। एक थाना प्रभारी ने तो घटना को संदेहास्पद करार देते हुए यहां तक कह दिया कि, कहानी फिल्मी लग रही है।Ó बहरहाल, पुलिस की पोल खुलते ही एएसआई से लेकर टीआई, सीएसपी से लेकर एसपी और डीआईजी से लेकर आईजी और डीजीपी तक के रवैये पर सवाल खड़े हुए। इसके बाद सरकार एक्शन में आई। मुख्यमंत्री ने घटना के तीसरे दिन तीन थाना प्रभारियों और एक एएसआई को संस्पैंड किया। सीएसपी को हटाया। एसपी रेल पद से अनिता मालवीय और भोपाल के आईजी योगेश चौधरी की विदाई हुई। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे पुलिस की कार्यप्रणाली सुधर जाएगी? सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है कि रेप मामलों में रिपोर्ट लिखने में कोताही करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 166 (क) में एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान है। रिपोर्ट लिखने में आनाकानी का आरोप सिद्ध होने पर दोषियों को कम से कम छह महीने और अधिकतम दो साल कठोर कारावास एवं जुर्माने का प्रावधान इस धारा में है। बहुत स्पष्ट है, रिपोर्ट लिखने में देरी और आनाकानी करने वाले पुलिस वाले भी इस बात के जानकार रहे होंगे, लेकिन उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी कथित तौर पर सीधी-सीधी अनदेखी करने में भी कोई गुरेज नहीं किया। माता-पिता जब पीडि़ता को लेकर हबीबगंज थाने पहुंचे, तो उसकी रिपोर्ट लिखने और फौरी तौर पर मानसिक व चिकित्सकीय सहायता पहुंचाने के बजाय उन्हें क्षेत्र का हवाला देकर दूसरे थाने भेजा गया और फिर वहां से तीसरे थाने। इस तरह रात दस बजे से लेकर अगले दिन सुबह आठ बजे तक यह पीडि़त परिवार राजधानी भोपाल की सड़कों पर भटकता रहा। जब पीडि़ता ने एक दरिंदे गोलू उर्फ बिहारी को पहचान लिया और उसके माता-पिता ने स्वयं पकड़कर उसे पुलिस को सौंपा, तभी पुलिस ने कुछ करने की सोची। उसके बाद गोलू उर्फ बिहारी रमेश उर्फ राजू मेहरा, अमर उर्फ गुल्टू और राजेश उर्फ चेतराम के खिलाफ मामला दर्ज किया था। देशभर के लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि पीडि़ता के माता-पिता, दोनों मध्य प्रदेश पुलिस में कार्यरत हैं। समझा जा सकता है कि दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले आम लोगों के साथ पुलिस का रवैया कैसा हो सकता है! यह घटना विभागीय वफादारी तथा मानवता के नैतिक मूल्यों, दोनों के आधार पर बहुत ही शर्मनाक है, जो सत्ता में बैठे लोगों को यह सोचने पर मजबूर करने के लिए काफी है कि सामूहिक बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में भी पुलिसकर्मियों का ऐसा संवेदनहीन तथा अमानवीय व्यवहार देखने में आता है। कठोर कानून होने के बावजूद अगर ये अपराध कम होने के बजाय बढ़ते जा रहे हैं, तो इसकी एक वजह पुलिस का अमानवीय और संवेदनहीन रवैया भी है। निर्भया कांड के बाद गठित जस्टिस वर्मा कमेटी ने महिलाओं के प्रति अपराध रोकने के लिए मुख्य रूप से आठ सुझाव दिए थे। वर्मा कमेटी के सुझावों के अनुसार, नागरिकों की मूलभूत सुरक्षा, उनके सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए कोई भी पुलिस अधिकारी क्षेत्र या अन्य कारणों से अपराधों की सूचना लेने से मना नहीं कर सकता। इसके विरुद्ध आचरण करने वाले कर्मी के खिलाफ तत्काल प्रभाव से कार्यवाही के रूप में सेवा समाप्ति तथा दो वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है। तो क्या मध्य प्रदेश सरकार उपरोक्त कानूून के अनुसार एक सख्त संदेश देने के उद्देश्य से संबंधित पुलिसकर्मियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करेगी या केवल संकेतात्मक निलंबन करके ही अपने कर्तव्य से मुक्ति पा लेगी। लापरवाहियों का पिटारा राजधानी में शासन-प्रशासन की नाक के नीचे हुए गैंगरेप के बाद पुलिस और प्रशासन की लापरवाही के बाद मेडिकल रिपोर्ट में भी लापरवाही ने सबको चौंका दिया है। इस रिपोर्ट में महिला डाक्टर ने लिखा कि सबकुछ सहमति से हुआ है। भोपाल में महिलाओं के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सुल्तानिया अस्पताल में दो महिला डॉक्टरों खुशबू गजभिए और संयुक्ता ने कुछ ऐसा कर दिया, जो किसी भी सभ्य नागरिक को शर्म से लेकर आक्रोश से भर देने की क्षमता रखता है। उन्होंने रेप पीडि़ता का मेडिकल परीक्षण किया। रिपोर्ट दी कि उसके साथ सहमति से सैक्स किया गया था। कहने को तो यह गलती अब सुधार ली गई है। नई रिपोर्ट में सहमति से सैक्सÓ के स्थान पर सामूहिक बलात्कारÓ कर दिया गया है, लेकिन क्या इतना भर हो जाने से सब ठीक हो जाएगा? जरा कल्पना कीजिए कि पहली रिपोर्ट आने के बाद पीडि़ता के दिल पर क्या बीती होगी। क्या उसे नहीं लगा होगा कि एक बार फिर वह सार्वजनिक रूप से ज्यादती की शिकार हो गई! ठीक वैसे ही, जैसे रेप की वारदात के बाद उसके साथ पुलिस और जीआरपी के अमले ने व्यवहार किया था। इससे पहले दुष्कर्मियों को पकडऩे में भी पुलिस की लापरवाही सामने आई। रेल एसपी अनीता मालवीय ने सभी चार आरोपियों को गिरफ्तार करने का दावा किया। दरअसल, उन्होंने चार नहीं बल्कि तीन ही आरोपियों को गिरफ्तार किया था। चौथा व्यक्ति राजेश उर्फ राजू राजपूत बेगुनाह था जिसे आरोपी समझकर पकड़ा गया था। पुलिस में गुटबाजी मप्र में भले ही पुलिसकर्मियों का कोई यूनियन नहीं है, लेकिन इनमें गुटबाजी जमकर है। आलम यह है कि एक ही जिले के थानों में एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास होते रहते हैं। भोपाल सामूहिक दुष्कर्म में पहले सीमा को लेकर केस लिखने में आनाकानी, फिर युवती की मेडिकल रिपोर्ट का सार्वजनिक होना पुलिस की गुटबाजी का ही परिणाम है। यही नहीं गैंगरेप मामले में एफआईआर दर्ज नहीं करने को लेकर पद से हटाई गई एसपी रेल अनीता मालवीय ने एडीजी रेल जीपी सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने एसीएस होम, पीएस होम और डीजीपी से शिकायत की है। अनीता मालवीय ने शिकायत में लिखा है कि जीआरपी बीना में पदस्थ रहा निरीक्षक प्रकाश सेन पर मोबाइल चोरों से सांठगांठ का आरोप लगा था। इस संबंध में पीडि़त महिला ने सीएम हेल्पलाइन में प्रकाश सेन की शिकायत की थी। शिकायत की जांच उन्होंने एसपी रेल रहते करवाई, जिसमें आरोप सही पाए गए। इसके चलते प्रकाश सेन को सस्पेंड कर दिया गया। मालवीय का आरोप है कि प्रकाश सेन के सस्पेंड होने के बाद से जीपी सिंह उन्हें तरह-तरह से प्रताडि़त कर रहे थे। अपने अधिनस्थों से उनके खिलाफ झूठी शिकायतें करवा रहे हैं। पुलिस सुधार कब? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्ष 2006 में उच्चतम न्यायालय तथा 2013 में वर्मा आयोग की सिफारिशों के बावजूद अभी तक देश में पुलिस सुधार लागू नहीं हुए हैं। इन सुधारों के लागू न होने के कारण देश की पुलिस नागरिकों की सुरक्षा, स्वतंत्रता तथा सामाजिक मूल्यों की रक्षा करने में विफल होती नजर आ रही है। पुलिस में नियुक्ति, प्रमोशन तथा तबादलों पर प्रदेश सरकारों का नियंत्रण होने के कारण अक्सर सत्ताधारी दल के कैडर प्रदेश में अपनी मर्जी से पुलिस को चलाते हैं, जिसके उदाहरण अक्सर देखने में देश के हर हिस्से से आते हैं। देश में महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानूनों की कमी नहीं है, लेकिन उनका ठीक तरह से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। हमें शीघ्र ऐसा वातावरण बनाना चाहिए, जिससे महिलाओं के साथ होने वाले अपराध रोके जा सकें। महिला अपराधों को रोकने के लिए सरकारी तंत्र के साथ समाज का सहयोग भी जरूरी है। पूर्व आईपीएस वीएन राय कहते हैं कि न पुलिस की रणनीतिक प्राथमिकताएं आधुनिक जीवन मूल्यों के अनुसार बदल पायी हैं और न उनका सामंती रवैया। पिछले दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आगामी पांच वर्षों में पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर पच्चीस हजार करोड़ खर्च करने का ऐलान किया था। हालांकि इस व्यय का अधिकांश हथियारों की खरीद और नयी बटालियनें खड़ी करने में किया जाएगा, न कि संवेदी पुलिस बनाने में। बालिका हितैषी योजनाओं के कारण देश और दुनिया में पहचान बना चुके मध्य प्रदेश में बालिकाएं और महिलाएं देश में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। इस बात का खुलासा नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट करती है। महिलाओं के लिए असुरक्षित टाप टेन शहरों में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल छठवें स्थान पर हैं। जबकि ग्वालियर आठवें पायदान पर। यह हम नहीं, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट कह रही है। जिसमें राज्य के इन दोनों शहरों को महिलाओं के लिए असुरक्षित करार दिया है। देश के 53 शहरों में महिलाओं के साथ ज्यादती की घटनाओं में प्रदेश के चार शहर भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर शामिल हैं। देश में सर्वाधिक बलात्कार के मामले 1893 दिल्ली में हुए। इसके बाद मुंबई में 712, जयपुर में 279, पुणे में 266, जोधपुर में 152, भोपाल में 133, फरीदाबाद में 128, ग्वालियर में 115, हैदाराबाद में 113 और बैंगलुरू में 112 घटनाएं घटी। जबलपुर में 83 और इंदौर में 76 मामले हुए। पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच कहती हैं कि महिला हितों की रक्षा के लिए योजनाएं और कानून बनाना सबसे आसान है, लेकिन नतीजे तभी आते हैं, जब उनका क्रियान्वयन ठीक से हो। रेड कैटेगरी में मध्यप्रदेश जेंडर वलनरेबिलिटी इंडेक्स (जीवीआई) रिपोर्ट में 25वें स्थान पर आए मप्र की स्थिति सिर्फ पांच राज्यों से ही बेहतर है। हालांकि यूपी, दिल्ली, बिहार, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश के साथ मप्र को रेड केटेगरी में रखा गया है। वहीं पड़ोसी छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान समेत 24 राज्यों की स्थिति मप्र से बेहतर है। 30 फीसदी महिलाओं की शादी उनकी लीगल ऐज यानी 18 वर्ष से पहले हो जाती है। 33 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं। 94.4 फीसदी पीडि़त लड़कियां जिन्होंने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट के तहत पुलिस में केस दर्ज कराए, अपराधी को वे पहले से अच्छी तरह से जानती थीं। नाबालिग बच्चियों के साथ यौन अपराध करने वालों में रिश्तेदार, परिजन, नजदीकी मित्र या फिर पड़ोसी पाए गए हैं। यहां रोज लुटती है 12 की आबरू महिला सुरक्षा और सुशासन का दावा करने वाली भाजपा सरकार के सूबे में रोज करीब 12 महिलाओं की इज्जत लूट ली जाती है। यह मप्र सरकार का आंकड़ा है। इसी साल फरवरी में विधानसभा में कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत के एक सवाल के लिखित जवाब में गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ठाकुर ने यह चौंका देने वाला आंकड़ा पेश किया, लेकिन कई घटनाएं ऐसी हैं जो आज भी लोगों के दिलो-दिमाग से उतर नहीं रही हैं। 31 अगस्त 2016 भोपाल के बरखेड़ी इलाके में अंडर ब्रिज के पास झाडिय़ों में एक मासूम बालिका को बलात्कार कर फेंका गया था। ऐशबाग और जहांगीराबाद की पुलिस सीमा विवाद को लेकर उलझ गई। इस पर लोगों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। जहां अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह चंदेल ने अभिभावक बन बच्ची का मेडिकल करवाया। 26 फरवरी, 2017 को जबलपुर में केजी में पढऩे वाली 5 साल की एक बच्ची के साथ स्कूल में कक्षा 6वीं में पढऩे वाले 12 वर्षीय छात्र ने बाथरूम में ले जाकर रेप की वारदात को अंजाम दिया। 28 फरवरी, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी के भोपाल के कोलार एरिया में 3 साल की बच्ची से रेप का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस मामले में पुलिस ने एक स्कूल के डायरेक्टर के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो कानून के तहत केस दर्ज किया। इनके अलावा कई अन्य मामले हैं जो हमारे समाज को शर्मसार करते हैं। महिला आयोग ने डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सिफारिश की उधर राज्य महिला आयोग ने युवती की मेडिकल रिपोर्ट बनाने वाली डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सिफारिश की है। आयोग में आयोजित बेंच में गैंगरेप में गलत मेडिकल रिपोर्ट देने के मामले में सुल्तानिया के अधीक्षक पीपरे और मेडिकल रिपोर्ट जारी करने वाली रेसिडेंट मेडिकल ऑफिसर (आरएमओ) खुशबू और सीनियर रेसीडेंट संयोगिता को तलब किया था। आयोग की अध्यक्ष लता वानखेड़े इनको फटकार लगाते हुए कहा कि आप इतने संवेदनशील मामले में गलत मेडिकल रिपोर्ट कैसे दे सकती हैं। आप भी महिला हैं। आपकी रिपोर्ट से एक बेटी कितनी आहत हुई है, आपको इसका अंदाजा भी नहीं है। इससे पीडि़ता ही नहीं, बल्कि देश की हर महिला आहत हुई है। आपके माफी मांगने से और गलती स्वीकार करने से अपराध कम नहीं हो जाता। आयोग ने शासन से दोनों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सिफारिश की है। आयोग ने इस मामले में गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. एमसी सोनगरा, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुरभि पोरवाल, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरुणा कुमार को भी जिम्मेदार माना है। आयोग का मानना है कि रिपोर्ट जारी करते समय सभी को उसे चैक करना था। आयोग ने पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि ज्यादती जैसे संवेदनशील मामले की मेडिकल रिपोर्ट एक आरएमओ के भरोसे कैसे छोड़ी जा सकती है। आयोग ने इस मामले में डीन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। वहशियों को हर हाल में मिले फांसी दरिंदगी की शिकार युवती की हिम्मत आज कई लड़कियों के लिए संबल बन गई है। जिस तरह पीडि़ता ने अपराधियों को पकड़वाने से लेकर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मोर्चा खोले रही शहर ने उसे शक्ति नाम दिया है। शक्ति का कहना है कि वहशियों को हर हाल में फांसी की सजा होनी चाहिए। वह कहती है कि किसी भी लड़की के साथ ऐसी घटना दोबारा न हो इसके लिए दोषियों को फांसी होनी ही चाहिए। शक्ति का कहना है कि वह दोषियों को फांसी दिलवाने के लिए अपनी कोशिश जारी रखेगी। वहीं मीडिया से बातचीत करते हुए वह इस बात पर दुख भी व्यक्त करती है कि पुलिस भी अपराधियों से कम नहीं है। जिस तरह मुझे थाने दर थाने भटकने को मजबूर किया गया वह भी बड़ा अपराध है। वह कहती है कि किसी भी लड़की या महिला के साथ गलत काम करने वालों के खिलाफ तत्काल सख्त कदम उठाना चाहिए। वर्ना ऐसी वारदातें होती रहेंगी। उधर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों ने दोषियों को फांसी दिलाने की मांग की है। उधर शहर में रोजाना धरना-प्रदर्शन और रैली निकालकर बलात्कारियों को फांसी देने की मांग की जा रही है। भारत और विदेशों में बलात्कार की सजा निस्संदेह बलात्कार घोर अपराध है और भारत के लिए आज एक बड़ी चिंता का विषय भी है। कठोर दंड वाले नए कानून और फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना के बावजूद भी इन अपराधों पर रोकथाम नहीं हो पा रही है। भारत के कानून में बलात्कारियों को दी जाने वाली सजा, अन्य देशों में दी जाने वाली सजा को देखते हुए, कमजोर है। वास्तव में वर्ष 2013 से पहले बलात्कार को एक बड़ा अपराध नहीं माना जाता था। उस समय बलात्कार करने वाले अपराधी को अधिक से अधिक सात साल के कारावास की सजा दी जा सकता थी। यह तब होता था जब अपराधी को गिरफ्तार कर लिया जाता था और वह दोषी साबित हो जाता था। निर्भया की घटना के बाद, संसद ने बलात्कार विरोधी विधेयक पारित किया है, जिसमें अब एक बलात्कार की सजा आजीवन कारावास और एक से अधिक मामलों की सजा मौत है। वहीं विभिन्न देशों में बलात्कार के अपराधियों को दी जाने वाली सजा अत्यंत कठोर है। सऊदी अरब एक इस्लामी देश होने के नाते, सऊदी अरब की कानून व्यवस्था शरिया-इस्लामी कानून पर आधारित है। यहां बलात्कार के अपराध में अपराधी का सिर सभी के सामने काट दिया जाता है। चीन : चीन में भी बलात्कारी को दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई जाती है। इस सजा में - रीढ़ की हड्डी (गर्दन) पर एक गोली मारकर दोषी को मौत के घाट उतार दिया जाता है। उत्तर कोरिया : उत्तर कोरिया में बलात्कारी को सिर या किसी भी नाजुक अंग में गोली मार दी जाती है। अफगानिस्तान : अफगानिस्तान में बलात्कार करने वाले को फांसी पर लटकाया जाता है या सिर में गोली मारकर सजा दी जाती है।
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