भ्रष्टाचार के स्टॉपडेम
07-Dec-2017 06:47 AM 1234771
मप्र में वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए बनाए गए स्टॉपडेम में बड़ा भ्रष्टाचार सामने आया है। करीब आधा दर्जन जिलों में भ्रष्टाचार का मामला सामने आने के बाद अन्य जिलों में हुए निर्माण में भी भ्रष्टाचार की आशंका जताई जा रही है। फिलहाल 3,200 स्टॉपडेम के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। बताया जाता है कि मंडला, धार, सागर, सतना, रीवा में बने स्टॉपडेम में भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है। जिससे सरकार को करीब 400 करोड़ की चपत लगी है। उल्लेखनीय है कि वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए नदी-नालों में बनाए गए स्टॉपडेम एवं वाटरशेड संरचनाओं को देख ग्रामीणों ने उम्मीद लगाई थी कि इनमें वर्षा जल संरक्षित होने से उन्हें गर्मी में भी पानी मिलेगा। धरती रीचार्ज होगी और गांव पानीदार हो जाएंगे, लेकिन इनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। बीते सात साल में सरकार द्वारा धरती को रीचार्ज कर गांवों को पानीदार बनाने विभिन्न योजनाओं के तहत मंडला, धार, सागर, सतना, रीवा सहित कुछ अन्य जिलों में करीब 400 करोड़ रुपए खर्च कर 3,200 स्टॉपडेम बनवाए गए, लेकिन अब इनमें हुआ भ्रष्टाचार सामने आने लगा है। हालांकि इनके निर्माण में हुए भ्रष्टाचार एवं प्रशासनिक उपेक्षा के चलते जलसंरक्षण के नाम पर खर्च किए गए 400 करोड़ रुपए पानी में चले गए। भ्रष्टाचार की नींव पर खड़े ज्यादातर स्टॉपडेम पहली बारिश में ही बह गए। जो बचे हैं उनमें भ्रष्टाचार के इतने छेद हैं कि पूरे जतन के बाद भी इनमें चुल्लूभर पानी संरक्षित करना मुमकिन नहीं हो पा रहा है। मंडला जिले में जल संसाधन विभाग द्वारा नियम कायदों को ताक में रखकर बबेहा से पौंडी ग्राम के बीच महज 13 किलोमीटर की दूरी में 93 स्टॉप डेमों का निर्माण कराया गया है। सबसे खास बात यह है कि 93 में किसी भी एक स्टापडेम में जल संरक्षण के लिये गेट नहीं लगाए गए हैं। गेट नहीं लगाए जाने से किसान पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई में नहीं कर पा रहे हैं। बता दें कि जल संसाधन विभाग द्वारा अरबों की राशि खर्च कर हजारों छोटे बड़े स्टॉपडेम बनाकर जिले के बड़े रकबे को सिंचित करने का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि खेतों की सिंचाई के नाम पर स्टॉपडेम निर्माण कर विभाग द्वारा जमकर भ्रष्टाचार किया जाता है जिसका खामियाजा जिले के किसानों को भुगतना पड़ रहा है। नदी-नालों को रीचार्ज करने के नाम पर बनाए ज्यादातर स्टॉपडेम बनने के साथ ही जर्जर हो गए। किसी की दीवार पर दरार आ चुकी है तो किसी की नींव इतनी कमजोर थी कि उसे केकड़ों ने छलनी कर दिया। जो संरचनाएं पानी स्टॉक करने लायक बची भी हैं उनके गेट गायब हो चुके हैं। जल संरचनाओं की बदहाली का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 90 फीसदी वाटर शेड संरचनाएं एवं स्टापडेम खाली पड़े हैं। उल्लेखनीय है कि स्टॉपडेम के निर्माण प्रथम मंजूरी के आधार पर ही काम कराए गए। ठेकेदार को कार्य आदेश जारी करने के पूर्व कार्य की विस्तृत ड्राइंग व विस्तृत प्राक्कलन तैयार कर सक्षम अधिकारी से स्वीकृति प्राप्त किये बिना ही निर्माण किया। डीपीआर पर प्रदाय तकनीकी स्वीकृति के अनुसार अधिकांश कार्यस्थलों पर निर्माण कार्य नहीं किया गया। कार्य पूर्ण होने पर व्यय की गयी राशि व प्रशासकीय स्वीकृति/तकनीकी स्वीकृति की राशि में काफी अन्तर पाया गया। कुछ स्थानों पर तो प्रशासकीय स्वीकृति की राशि से आधी राशि में ही कार्य पूर्ण हो गया हैं। स्टापडेम के निर्माण हेतु तकनीकी स्वीकृति जारी की गई परन्तु बाद में स्थल पर स्टापडेम कम रपटा का निर्माण कर दिया गया। पानी सूखने के बाद जागा प्रशासन इस वर्ष कम बारिश होने के कारण सतना जिले में सूखे के हालात पैदा हो गए हैं। औसत की आधी बारिश होने के कारण नदी-तालाब खाली पड़े हैं। नवंबर में भी भू-जल स्तर 100 फीट नीचे चला गया है। इसके बावजूद वर्षा जल संरक्षण के लिए जिला प्रशासन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। सतना जिले के सूखाग्रस्त घोषित होने के बाद जब तक प्रशासन की नींद टूटी तब तक बरसाती नाले सूख चुके थे। आलम यह है कि प्रशासन के निर्देश पर अब आरईएस विभाग द्वारा जलसंरक्षण के लिए जिले में चिह्नित 368 स्टॉपडेम में कड़ी लगाकर उन्हें बंद करने की कार्ययोजना पर अमल किया जा रहा है। बरसाती नदी-नालों को रीचार्ज कर जिले की धरती को पानीदार बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा आवंटित राशि का जिले में जल संरचनाएं बनाने के नाम पर जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। आरईएस एवं जिला पंचायत के जिम्मेदारों की भूमिका निर्माण की खानापूर्ति कर बजट हजम करने तक सीमित रही। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिले में कुल कितने स्टॉपडेम एवं वाटर शेड संरचनाएं बनी हैं, इसकी जानकारी न तो जिला पंचायत के शाखा प्रभारी दे पा रहे हैं और न ही ग्रामीण विकास विभाग के इंजीनियर। -सिद्धार्थ पाण्डे
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