पानी का पैसा पानी में
01-Dec-2017 05:57 AM 1235017
प्रदेश में विकास कार्यों के लिए सरकार को बजट की जरूरत है। इसको देखते विगत महीनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह ने सख्ती दिखाई तो राजस्व विभाग का खजाना भरने लगा। वैसी ही सख्ती अब जल संसाधन विभाग में भी जरूरी है। दरअसल इस विभाग के अफसर भी बकाया राशि वसूलने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। आलम यह है कि विभाग की लापरवाही के कारण विभिन्न कंपनियों पर करीब 2412 करोड़ रुपए के पानी का बिल बकाया है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में सूखे के चलते किसान हितैषी सरकार ने किसानों के लिए सिंचाई के पानी में कटौती जरूर कर दी है, लेकिन उद्योगपतियों एवं निजी बिजली कम्पनियों को बांधों का भरपूर पानी दिया है, लेकिन पानी का पैसा वसूलने मेंं विभाग ने कोई रुचि नहीं दिखाई है। जल संसाधन विभाग के अनुसार 5 नवंबर 2017 की स्थिति में 71 उद्योगों पर 782 करोड़ एवं निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों पर 1407 करोड़ की देनदारियां हैं। जिसमें रिलायंस, जेपी, बिड़ला समेत देश के जाने-माने औद्योगिक समूह एवं एस्सार, हिंडाल्को, सांसन जैसी बिजली कंपनियों भी शामिल हैं। एलके बिड़ला समूह के ऑरियंट पेपर मिल नागदा पर सबसे ज्यादा 683 करोड़ रुपए का पानी का बिल बकाया है। यह मामला हाईकोर्ट में है, लेकिन प्रबंधन दूसरी इकाई के नाम से सोन नदी से बराबर मात्रा में पानी ले रहा है। वहीं नगरीय निकाय समेत 107 संस्थाओं पर 243 करोड़ बकाया है। जिन उद्योगपतियों पर पानी का ज्यादा पैसा बकाया है, उनमें से ज्यादातर वे हैं, जो पिछले कुछ सालों में राज्य सरकार के इन्वेस्टर्स समिट में हजारों करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव दे चुके हैं। इनमें से आदित्य बिड़ला समूह, एलके बिड़ला समूह, भीलवाड़ा समूह, जेपी समूह, खेतान समूह, ग्रेसिम, हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड, गेल एवं एनएफएल शामिल हैं। प्रदेश में स्थापित ज्यादातर सीमेंट फैक्ट्रियों ने पानी का पैसा नहीं चुकाया। इनमें से जेपी समूह, रिलायंस समूह की सीमेंट फैक्ट्री बंद भी हो चुकी हैं। सभी उद्योग अनुबंध के तहत बांध, नदी, तालाब से क्यूविक मीटर में पानी की ज्यादा मात्रा ले रहे हैं। इसी तरह निजी क्षेत्र की बिजली कंपनी जेपी पॉवर, एमबी पॉवर, एस्सार, हिंडाल्को, सांसन, टोंस आदि पर भी 1 हजार करोड़ से ज्यादा बकाया है। एस्सार पॉवर पर 140 करोड़ रुपए की देनदारियां शेष हैं। जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव पंकज अग्रवाल कहते हैं कि पॉवर कंपनियों से रिकवरी के लिए कहा है। ओरिएंटल पेपर मिल ही ज्यादा तकलीफ दे रहा है। मामला हाईकोर्ट में है। शेष कंपनियों से वसूली की कार्रवाई जारी है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2012 से लेकर 2016 तक के बकाया को वसूली का लक्ष्य तय किया था। वर्ष 2015 में नदियों के पानी से वसूली का करीब 1388 हजार करोड़ रुपया बकाया था जिसमें करीब 788 हजार करोड़ रुपयों की ही वूसली की गई है। जिसके बाद जुलाई 2017 से मार्च 2018 तक के लिए वसूली के नए लक्ष्य तय किए गए थे। जिसके तहत हर महीने वसूली बढ़ाई जानी है, लेकिन अब इससे भी अफसर चूक गए हैं। छह हजार करोड़ वसूलने में सभी संभागों में वसूली तो बढ़ी लेकिन पुराने बकाया को लेकर स्थिति ज्यों की त्यों है। उद्योगों में सबसे ज्यादा चोरी सूबे में नर्मदा और दूसरी नदियों के किनारे बसे उद्योग सबसे अधिक पानी चोरी करते हैं। दरअसल इस विभाग का अमला न तो नदियों से पानी की चोरी रोक पा रहा है और न ही तय लक्ष्य के मुताबिक बकाया वसूली कर पा रहा है। जिसकी वजह से नदियों से बड़े उद्योग अभी भी बेरोकटोक पानी का दोहन कर रहे हैं। द्य सुनील सिंह
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