17-Nov-2017 07:40 AM
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दरअसल मध्यप्रदेश में स्मार्टसिटी बनाने की योजना हवा-हवाई है। यहां के सात शहरों- भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर, सतना और उज्जैन का चयन स्मार्टसिटी के लिए हुआ है। राजधानी भोपाल में दो दिनों तक चली स्मार्ट सिटी की नेशनल वर्कशॉप में अफसरों ने प्रेजेंटेशन के दौरान स्मार्ट पोल, स्मार्ट लाइट, निर्माण कार्य, स्मार्ट बाइक, स्मार्ट पार्किंग को लेकर तमाम प्रोजेक्ट की जानकारी दी। वहीं वीडियो के माध्यम से विकास प्लान को समझाया गया। यानी अफसरों ने कागजों पर मध्यप्रदेश के सातों शहरों की स्मार्टनेस दिखाकर खूब वाहवाही लूटी।
इस अवसर पर नगरीय प्रशासन मंत्री माया सिंह ने भी देश के विभिन्न भागों से आए अधिकारियों के सामने मध्यप्रदेश की प्राथमिकताओं को गिनाया। उन्होंने विश्वास दिलाया कि मध्यप्रदेश की स्मार्टसिटीज दूसरे राज्यों के लिए मॉडल बनेगी। वहीं स्मार्ट पब्लिक बाइक शेयरिंग प्रोजेक्ट को समझने के लिए अधिकारियों ने मौके पर मुआयना किया। इतना ही नहीं बल्कि तमाम अधिकारियों ने होशंगाबाद स्थित ट्रेक पर साइकिल भी दौड़ाई। अधिकांश अधिकारियों ने कहा कि आने वाले सालों में इस प्रोजेक्ट का अलग ही महत्व होगा, लेकिन सिर्फ प्रोजेक्ट पूरा करने से नहीं बल्कि लोगों को इसके फायदे और अहमियत को समझाना होगा।
लखनऊ से आए अपर आयुक्त पीके श्रीवास्तव ने कहा कि अब तक जो काम हुआ है, सराहनीय है। फिर भी सुधार की गुंजाइश तो हर जगह रहती है। साइकिल ट्रैक देखने में खूबसूरत है, लेकिन इसमें पब्लिक पार्टिशिपेशन कम नजर आता है। रजिस्ट्रेशन 25 हजार से ज्यादा होना बताया गया है, लेकिन उस हिसाब से लोग साइकिल चलाते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। वर्कशॉप में आए एक अफसर भालचंद्र नेमाड़ी ने कहा कि साइकल ट्रैक मुख्य सड़क के किनारे बनाया है, बेहतर होता घनी आबादी वाले इलाके में ट्रैक बनाते। ट्रैक जितना लोगों के पास होगा उतना ही ज्यादा लोग साइकिल का उपयोग करेंगे। रहवासी इलाकों से ट्रैक दूर होने की वजह से ऐसी स्थिति बन रही है।
देशभर के 52 शहरों से आए अफसरों ने भोपाल स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से किए गए अब तक के कामों की सराहना की और उन्हें इसके लिए 100 में से 80 प्रतिशत नंबर दिए। अफसरों ने कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम और स्मार्ट पोल की तारीफ की। दिल्ली से आए एमओयूडी के अंडर सेक्रेट्री संजय शर्मा ने कहा कि आम आदमी के लिए डेडिकेटेड होना उसे प्राउड फील कराता है। बशर्ते लोग इसका इस्तेमाल भी करें। इससे यह संदेश जाता है कि शहर सरकार खास लोगों के लिए ही नहीं, आम लोगों की भी परवाह करती है।
देश-विदेश से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को मिली सराहना के बाद जब प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की बात आई तो सबकी नजर कर्ज पर आकर टिक गई। दरअसल कर्ज लेकर घी पीने की अपनी नीति के तहत मप्र सरकार कर्ज के पैसों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी को पूरा करेगी। सभी स्मार्ट सिटीज के लिए सरकार एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) से लोन लेने की तैयारी कर रही है। स्मार्ट सिटी के लिए करीब ढाई हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया जाएगा। राज्य सरकार को चार प्रतिशत की ब्याज दर पर यह लोन करीब 20 सालों के लिए मिलेगा।
दरअसल, केंद्र सरकार ने जिस तैयारी के साथ स्मार्ट सिटी की योजना बनाई थी उसमें वित्तीय समस्या बाधा बन गई है। इसलिए अब राज्यों को कर्ज लेकर अपनी स्मार्ट सिटी बनानी पड़ रही है। जिन शहरों में स्मार्ट सिटी बनानी है, वहां के नगरीय निकायों के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं होने की वजह से लोन लेकर स्मार्ट सिटी का निर्माण किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार, स्मार्ट सिटी के लिए करीब ढाई हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया जाएगा। राज्य सरकार को चार प्रतिशत की ब्याज दर पर यह लोन करीब 20 सालों के लिए मिलेगा।
नगरीय विकास विभाग ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से लोन लेने का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। सरकार की कुछ समितियों की मंजूरी मिलने के बाद इसे मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। आयुक्त नगरीय विकास एवं पर्यावरण विवेक अग्रवाल ने बताया कि 5000 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में राशि की उपलब्धता नहीं है। स्मार्ट सिटी के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से लोन लेने का हम प्रयास कर रहे हैं। यह लोन सभी स्मार्ट सिटी के लिए लिया जा रहा है।
उधर प्रदेश के सात शहरों भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सतना, सागर और उज्जैन सहित देश के 60 शहरों में एक बार फिर से परफॉरमेंस बेस्ड प्रोग्राम की जंग छिडऩे वाली है। वजह है केंद्र्र सरकार ने अच्छा परफॉर्म करने वाली स्मार्ट सिटीज को अतिरिक्त ग्रांट देने का निर्णय लिया है। अत: अतिरिक्त ग्रांट पाने के लिए स्मार्ट सिटीज के अधिकारी आंकड़बाजी का खेल करेंगे। दरअसल, देश के 60 शहरों को अतिरिक्त ग्रांट देने के लिए मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स और वल्र्ड बैंक ने मिलकर परफॉरमेंस बेस्ड प्रोग्राम तैयार किया है, जिस पर 500 मिलियन डॉलर (लगभग 3200 करोड़ रुपए) खर्च किए जाएंगे। मिनिस्ट्री ने पहले और दूसरे फेज में चुने गए 60 स्मार्ट सिटीज की एसपीवी (स्पेशल परपज व्हीकल) से कहा है कि वे मिनिस्ट्री कोअपना प्रस्ताव भेजें, इनमें 12 शहरों को इस अतिरिक्त ग्रांट के लिए सेलेक्ट किया जाएगा।
मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स की ओर से स्मार्ट सिटीज और राज्यों को एक पत्र भेजा गया है। जिसमें कहा गया है कि मिनिस्ट्री और वल्र्ड बैंक ने स्मार्ट सिटीज के लिए परफॉरसमेंस बेस्ड प्रोग्राम तैयार किया है। इसका मकसद स्मार्ट सिटीज की परफॉरमेंस में सुधार करना है। मिनिस्ट्री ने कहा है कि स्मार्ट सिटी मिशन की गाइडलाइंस के मुताबिक परफॉर्म करने वाली स्मार्ट सिटीज को यह ग्रांट दी जाएगी। इस प्रोग्राम के तहत 500 मिलियन डॉलर का प्रावधान किया गया है, इसमें से 480 मिलियन डॉलर केवल परफॉरमेंस बेस्ड होगी, जबकि बाकी पैसा एसपीवी को कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए दिया जाएगा।
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत केंद्र सरकार द्वारा हर शहर को 250 करोड़ रुपए दिए जाने हैं। इतना ही पैसा राज्य सरकारों द्वारा दिया जाना है, लेकिन अब जो ग्रांट केंद्र सरकार द्वारा दी जाएगी, वह इस राशि से अलग होगी। मिनिस्ट्री के पत्र में कहा गया है कि सभी 60 स्मार्ट सिटीज की एसपीवी को 30 नवंबर तक अपने परफॉरमेंस से संबंधित सूचना मिनिस्ट्री के पास भेजनी होगी। जबकि ये स्मार्ट सिटीज, जिन्हें राज्यों या केंद्र शासित क्षेत्रों में हैं, उन्हें 13 दिसंबर तक मिनिस्ट्री के पास सूचना भेजनी होगी। राज्यों को अपने लेवल पर स्मार्ट सिटीज की परफॉरमेंस रिव्यू करके मिनिस्ट्री को भेजनी होगी।
दरअसल, स्मार्ट सिटी मिशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है, लेकिन ढाई साल से अधिक समय बीतने के बावजूद अब तक इस मिशन को वांछित सफलता नहीं मिल रही है। अब सरकार चाहती है कि साल 2019 में होने वाले इलेक्शन में स्मार्ट सिटी मिशन के परिणाम जनता के सामने रखे जाएं, इसलिए पिछले तीन माह से मिनिस्ट्री ऑफ अर्बन अफेयर्स लगातार राज्यों और स्मार्ट सिटीज पर दबाव बना रही है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम शुरू किया जाए। इसी कड़ी में अब परफॉरमेंस ग्रांट देने का निर्णय लिया है, ताकि अतिरिक्त ग्रांट पाने के लिए स्मार्ट सिटीज अपनी परफॉरमेंस सुधार करें।
दूसरे राज्यों के लिए मॉडल बनेगा भोपाल
मध्यप्रदेश में प्रस्तावित सात स्मार्ट सिटी के लिए देश के पहले मॉडल के रूप में विकसित इंटीग्रेटेड कमांड एण्ड कंट्रोल सेंटर (आईसीसीसी) को अन्य राज्य भी अपनाएंगे। प्रदेश की सातों स्मार्ट सिटी में अलग-अलग कमांड एण्ड कंट्रोल सेंटर के स्थान पर एक ही सेंटर बनाने का निर्णय सराहनीय है। अब एक जगह सेंटर बन जाने से लगभग 70 फीसदी बजट की बचत होगी। राजधानी में 2000 डस्टबिन में रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस (आरएफआईडी) लगने का काम भी जल्द शुरू हो जाएगा। दो महीने के भीतर इन सभी डस्टबिन में यह डिवाइस लग जाएगा। इसके साथ ही डस्टबिन में कचरा भरते ही कंट्रोल रूम में अलर्ट मैसेज आएगा। इसके साथ ही संबंधित क्षेत्र के हेल्थ ऑफिसर और कचरा उठाने वाले वाहन के ड्राइवर को भी मैसेज जाएगा। एमआईसी ने हैदराबाद की इनक्यूवेट कंपनी का टेंडर मंजूर किया है। नगर निगम प्रशासन ने विगत दिनों कंपनी को लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया। कंपनी एक हफ्ते के भीतर काम शुरू कर देगी। डस्टबिन पर आरएफआईडी टैग लगाने के साथ ही पांच साल तक इनका मेंटेनेंस भी कंपनी को ही करना होगा। इसकी निगरानी के लिए आईएसबीटी में नगर निगम ने कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाया है।
स्मार्ट सिटी की पुलिस को होना होगा स्मार्ट
उधर केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देशभर के एसपी को स्मार्ट पुलिस बनने के लिए पत्र लिखा है। गृह मंत्री ने लिखा कि स्मार्ट सिटी के लिए पुलिस का स्मार्ट होना जरूरी है। इसको लेकर प्रदेशभर में तैयारियां शुरू हो गई हैं। गृह विभाग ने सभी जिलों के अधिकारियों को इस पर अमल करने के निर्देश दिए हैं। अधिकारी पेंडिंग शिकायतें, सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों की जानकारी ले रहे हैं तथा उन्हें जल्द निपटाने के निर्देश दिए जा रहे हैं। शहरों में अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की योजना बन रही है। विभाग के बड़े अधिकारी गृहमंत्री के पत्र के बारे में अधीनस्थों को बता रहे हैं कि स्मार्ट सिटी के लिए पुलिस को स्मार्ट बनाना आवश्यक है। पत्र में सिंह ने कुछ बातें रखी हैं, जिन पर गौर करना जरूरी है, जिसमें खासकर सिंह ने जिक्र किया कि अपराध की जांच फिंगर प्रिंट और वैज्ञानिक तकनीक से होना चाहिए। आरएलवीडी सिस्टम हर जगह हो। चालान ई-नोटिस से ही बनाए जाएं। सभी प्रकार के कार्ड रखने से अच्छा है स्मार्ट कार्ड रखा जाए। इससे चोरियां होने की आशंका कम होगी। किराएदार, नौकर, संस्थान के कर्मचारियों की जानकारी पुलिस के पास होना चाहिए।
-विशाल गर्ग