17-Nov-2017 06:56 AM
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मप्र के प्रमोशन में आरक्षण मामले में मंगलवार को बड़ी खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस फैसले पर अब अंतिम फैसला संविधान पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण का मामला पांच सदस्यीय बेंच में भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्यों के मामलों को देखने के बाद यह फैसला लिया है। वर्ष 2002 के आरक्षण नियम को हाईकोर्ट द्वारा निरस्त किए जाने के फैसले के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
मध्यप्रदेश में शासकीय कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसेफ और आर भानुमति की बैंच ने यह फैसला दिया है। उन्होंने इस फैसले को संविधान पीठ में कराने के लिए चीफ जस्टिस को संविधान पीठ के गठन के लिए लिखा है। इस फैसले में मध्यप्रदेश समेत बिहार और त्रिपुरा सरकार ने भी याचिका दायर की थी। इससे अब तय हो गया है कि यह फैसला एक कदम और आगे बढ़ते हुए अब संविधान पीठ में होगा।
दो सालों से फैसले का इंतजार कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों को तब राहत मिली थी, जब 11 अक्टूबर से सुनवाई रोज शुरू हो गई थी। माना जा रहा है कि आने वाले डेढ़ माह में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा और ऐतिहासिक फैसला आ जाएगा। प्रमोशन में आरक्षण मामले की सुनवाई कई बार टल चुकी है। 21 फरवरी को भी सुनवाई टल गई थी। 2 फरवरी को भी इस मसले पर सुनवाई टल गई थी। 25 जनवरी को हुई सुनवाई में सरकारी वकील हरीश साल्वे अनुपस्थित रहे। 29 मार्च को जज के अलग हो जाने के कारण सुनवाई टल गई थी।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने 2002 में प्रमोशन में आरक्षण नियम को लागू किया था, जो शिवराज सरकार ने भी लागू कर दिया था, लेकिन इस निर्णय को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर एमपी हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 ही खारिज करने का आदेश दिया। इसके बाद दोनों पक्ष अपने-अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार आरक्षित वर्ग के पक्ष में खड़ी है। उधर, मप्र हाईकोर्ट ने जिन्हें नए नियम के अनुसार पदोन्नति दी गई है सरकार द्वारा बनाए गए नियम को रद्द कर 2002 से 2016 तक सभी को रिवर्ट करने के आदेश दिए थे। मप्र सरकार ने इसी निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पीटिशन लगा रखी है।
उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश में भी कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के फैसले को निरस्त कर दिया था। इसके बाद प्रमोशन में आरक्षण का लाभ लेने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के डिमोशन का सिलसिला शुरू हो गया था। इससे उत्तरप्रदेश ने बड़ी संख्या में अधिकारियों-कर्मचारियों को बड़े पदों से वापस छोटे पदों पर कर दिया गया।
उधर, पदोन्नति में आरक्षण पूरी तरह समाप्त करने की मांग को लेकर सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था लगातार आंदोलन की तैयारी कर रही है। सपाक्स पदाधिकारियों का कहना है कि पदोन्नति में आरक्षण प्रक्रिया ठीक नहीं है। आरक्षण प्रक्रिया से अन्य काबिल व्यक्तियों के साथ अन्याय हो रहा है। आरक्षण समाप्त कराने के लिए ही सपाक्स संगठन बनाया गया है। यह संगठन लगातार आंदोलन करता रहेगा। पदाधिकारियों ने कहा कि आगामी 15 दिनों में एक विशाल आंदोलन किया जाएगा जिसमें रैली निकाली जाएगी। उधर अपाक्स ने भी पदोन्नति में आरक्षण के पक्ष में मोर्चा संभाल लिया है। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि सामाजिक बराबरी के लिए पदोन्नति में आरक्षण मिलना चाहिए।
नए फार्मूले पर हो रहा काम
प्रमोशन में आरक्षण नियम को रद्द होने और संविधान पीठ में चले जाने के बीच सरकार बीच का रास्ता निकाल रही है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार नया फार्मूला बना लिया है। नए फार्मूले के अनुसार एक वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी दूसरे वर्ग के आरक्षित पदों पर प्रमोशन नहीं ले सकते हैं। एससी, एसटी और सामान्य वर्ग की अलग-अलग लिस्ट निकाली जाएगी। ये सभी अपने वर्ग में पदोन्नति ले सकते हैं। प्रदेश में पिछले डेढ़ साल से 30 हजार से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हुए। कई रिटायर हो गए। प्रमोशन नहीं हो मिलने से अधिकारियों और कर्मचारियों में नाराजगी है। नए फार्मूले में एससी के लिए 16, एसटी के लिए 20 और जनरल के लिए 64 प्रतिशत पदों के आरक्षण का जिक्र हो सकता है। यदि आरक्षित वर्ग में पदोन्नति के पद अधिक हैं और अधिकारी अथवा कर्मचारी उसके अनुपात में कम हैं, तो पदों को खाली ही रखा जा सकता है। यह भी खत्म हो जाएगा कि एक प्रमोशन लेने के बाद मेरिट के आधार पर आगे प्रमोशन लेना पड़ेगा। यह काम मुख्यमंत्री सचिवालय में गोपनीय रूप से किया जा रहा है।
-विकास दुबे