17-Nov-2017 07:01 AM
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चित्रकूट उपचुनाव का परिणाम आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है, लेकिन इस सीट को जीतने के लिए भाजपा ने जिस तरह की जमावट की थी, उसके बाद भी हार चिंता का विषय है। दरअसल, तमाम तामझाम के बाद भी भाजपा यहां प्रबंधन में हर स्तर पर फेल हुई। यह तर्क की वहां पहले भी कांग्रेस थी, अब फिर कांग्रेस काबिज हो गई दिल बहलाने के लिए तो अच्छा लग सकता है, असलियत में यह पराजय भाजपा के लिए चिंता बढ़ाने वाला संकेत है। क्योंकि एक साल बाद मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में चित्रकूट की बड़ी हार भाजपा के लिए सबक है और भाजपा प्रत्याशी शंकर दयाल त्रिपाठी को कांग्रेस के नीलांशु चतुर्वेदी ने 14,133 मतों से करारी शिकस्त दी।
इस चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया कि राजनीति का कोई भरोसा नहीं होता। कब, कहां और कैसी करवट ले ले उसको बता पाना बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों के वश में भी नहीं होता है। सत्ता के आसमान पर चमकते नेताओं के सूरज को कब ये जमीन दिखा दे इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता है। कई बार इसको साधने की कोशिश में बड़े-बड़े नेता खुद सध जाते हैं और फिर राजनीति के एक ऐसे बियाबान में पहुंच जाते हैं जहां से लौटना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी मध्यप्रदेश में दोहराती दिख रही है। अमेरिका की सड़कों से अपने सूबे की सड़कों को अच्छा बताने वाले एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज को चित्रकूट ने उनकी असली जमीन दिखा दी है। भाजपा ने इस सीट पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 29 सभाएं, 11 रोड शो किए और तीन दिन चित्रकूट में रुके। लोगों के सामने मिन्नतें कीं, विकास की गंगा बहाने का वादा किया, लेकिन सफल नहीं हुए।
सीएम शिवराज जिस तुर्रा गांव में आदिवासी के घर रुके, उसी गांव से भाजपा हार गई। लोगों ने शिवराज को नकार दिया। भाजपा इस सीट को इतनी अहम मान रही थी कि उसने मैदान में 29 मंत्री समेत संगठन के तमाम दिग्गज नेताओं की फौज उतार दी थी। खुद उत्तरप्रदेश के ओबीसी चेहरा व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य रोड शो में उतरे, लेकिन इनका भी जादू नहीं चला। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी चुनाव प्रचार के लिए आए थे। भाजपा नेताओं ने 750 से ज्यादा सभाएं भी कीं पर वो जनता के दिल में नहीं उतर पाए।
प्रदेश का हर बड़ा चेहरा था चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव मैदान में। भाजपा प्रत्याशी शंकरदयाल त्रिपाठी के लिए वोट मांगने का काम संगठन के अलावा संघ के बड़े पदाधिकारियों ने भी किया था। प्रदेशस्तर का हर बड़ा नेता, मंत्री पोलिंग बूथ स्तर से लेकर ग्राम प्रभारी, संकुल स्तर पर केन्द्र प्रभारी, विधानसभा प्रभारी, चुनाव प्रभारियों पर नजर रखे हुए था। मंत्री रातभर कैंपन करते रहे, लेकिन इसके बाद भी भाजपा हार गई।
उधर कांग्रेस के लिए तो जैसे आज देव उठ गए। कांग्रेस की ओर से यहां विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह मुख्य रणनीतिकार थे। उम्मीदवार चयन से लगाकर पूरे प्रचार अभियान की कमान उन्हीं के हाथ में थी। ब्राम्हण और ठाकुर मतदाताओं का संतुलित गठजोड़ बनाकर वे भाजपा को चकमा देने में कामयाब रहे। यूं भी कांग्रेस यहां अपेक्षाकृत ज्यादा संगठित तरीके से चुनाव लड़ती दिखी। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अस्र्ण यादव भी चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे। यह सही है कि चित्रकूट कांग्रेस का गढ़ रहा है, लेकिन उपचुनावों में जब सत्तारूढ़ दल पूरे फौजफाटे के साथ मैदान में डटा हो तब बड़े मतों से हुई जीत जश्न के मायने बदल देती है। इस नतीजे के जरिये विंध्य ने भाजपा को अपनी ओर से कई संकेत दिए हैं। अब यह भाजपा को तय करना है कि वह इन संकेतों के अनुसार अपनी अगली रणनीति बनाती है या नहीं। उधर कांग्रेस के लिए यह चुनाव परिणाम किसी चुनौती से कम नहीं है। क्योंकि पार्टी को अगर सत्ता में वापस आना है तो उसे यह एकजुटता, सक्रियता बरकरार
रखनी होगी।
मुंगावली और कोलारस
में अग्नि परीक्षा
चित्रकूट की हार के बाद भाजपा की अग्नि परीक्षा मुंगावली और कोलारस उपचुनाव में होगी। अगले साल होने वाले विधानसभा के आम चुनाव की तैयारी में जुटी भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस के लिए राज्य में होने वाले विधानसभा के ये दो उपचुनाव गले की फांस बन गए हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य दो उपचुनावों पर आकर टिक गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए भी उपचुनाव बिन बुलाई मुसीबत की तरह लग रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ही अपने-अपने ढंग से अगले साल होने वाले आम चुनाव की तैयारियां कर रहे थे। लगभग तीन माह पूर्व भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भोपाल आए थे। उन्होंने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 200 सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है। राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीट हैं। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 165 है। कांग्रेस विधायकों की संख्या 54 है।
-श्याम सिंह सिकरवार