गैस चेंबर बनी दिल्ली
17-Nov-2017 06:30 AM 1234789
दिल्ली में हवा की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि देश की राजधानी गैस चेंबरÓ में तब्दील हो चुकी है। बेहिसाब ढंग से प्रदूषण का स्तर बढऩे के पीछे की मुख्य वजह पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को माना जा रहा है। हालांकि इस मसले पर अभी तक दिल्ली के आसपास के राज्यों के मुख्यमंत्रियों की आपस में बातचीत तक नहीं हुई है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंता व्यक्त की है। खट्टर ने कहा, ये चिंता का विषय है और हरियाणा सरकार इसे रोकने के लिए हर एक संभव कदम उठा रही है। हमने पराली जलाने वाले लोगों से ऐसा न करने को भी कहा है। उन्होंने कहा कि हमने प्रदूषण से निपटने के लिए हरियाणा में उपयुक्त कदम उठाए हैं। अगर केंद्र या पंजाब हमसे इस बारे में बात करना चाहता है, तो हम इस पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शहर में बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए कदमों पर चर्चा के लिए पंजाब एवं हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने की इच्छा जताई थी। केजरीवाल ने हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा, पड़ोसी राज्यों की सरकारें किसानों को पराली जलाने के विकल्प मुहैया कराने में असफल रही हैं और इस कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ा है। दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण का अत्यंत खतरनाक स्तर तक पहुंचना एक बार फिर राष्ट्रीय चिंता का विषय बना है। सरकारें चिंतित हैं, जबकि न्यायपालिका ने उनसे जवाब-तलब किया है। मंगलवार सुबह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ऊपर स्मॉग (धुएं) की काली परत छा गई। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास की वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली की हवा में पीएम-2.5 की मात्रा 703 तक पहुंच गई, जबकि इन महीन प्रदूषक तत्वों के 300 का स्तर पार करते ही वायु को मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक मान लिया जाता है। बुधवार शाम चार बजे पीएम-2.5 की मात्रा 1000 की सीमा पार कर गई। इससे फैले भय का अंदाजा लगाया जा सकता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और दिल्ली हाई कोर्ट की ताजा टिप्पणियों में इन्हीं चिंताओं का इजहार हुआ है। दोनों न्यायिक संस्थाओं ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों और वहां के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से जवाब-तलब किया है। उच्च न्यायालय ने हरियाणा और पंजाब के किसानों के पराली जलाने को मुख्य कारण मानते हुए पूछा है कि इसे रोकने के लिए उचित कदम क्यों नहीं उठाए गए? एनजीटी ने उल्लेख किया कि इस तरह के हालात पिछले साल भी पैदा हुए थे तो इस वर्ष सरकारों ने इसे रोकने के एहतियाती उपाय क्यों नहीं किए? केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवद्र्धन ने दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई करने को कहा है। मगर फिलहाल कड़वी हकीकत यही है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लाखों लोगों को गैस चैंबर जैसी स्थिति में रहना पड़ रहा है। गंभीरता से विचार करें, तो साफ होगा कि समस्या फौरी नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं। हर साल दिल्ली में सर्दियों से पहले हवा की गुणवत्ता खराब होती है, क्योंकि तब ठंडी हवा प्रदूषक तत्वों को जमीन के आसपास ही रखने लगती है। दिवाली पर पटाखों का धुआं, मोटर वाहनों और डीजल संचालित जनरेटरों का धुआं, कोयले से चलने वाले पावर प्लांट और औद्योगिक उत्सर्जन से दिल्ली की आबोहवा प्रदूषित होती है। इन पहलुओं पर गौर किए बगैर महज किसानों के फसल अवशेष जलाने पर ध्यान केंद्रित करने से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। दुखद स्थिति है कि राष्ट्रीय राजधानी और दरअसल पूरे देश में प्रदूषण में हो रही तेज बढ़ोतरी के बावजूद इसको लेकर पर्याप्त जागरूकता और चिंता का अभाव है। स्थिति जब बेहद गंभीर होती है, तब कुछ दिन तक उस पर चर्चा होती है, फिर सब कुछ पहले जैसा चलने लगता है। विशेषज्ञों की राय है कि स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए स्थायी और निरंतर कदम उठाए जाने चाहिए। सार्वजनिक परिवहन में भारी निवेश, प्रदूषक ईंधन के इस्तेमाल पर रोक, किसानों को फसल अवशेष जलाने का विकल्प उपलब्ध कराने और धूल को उडऩे से रोकने के उपाय किए बिना इस समस्या से नहीं निपटा जा सकता। अफसोसनाक है कि आज भी इसकी कोई योजना बनती नहीं दिखती। ऐसे में दिवाली पर पटाखों की बिक्री रोकना अथवा पराली जलाने के लिए किसानों को दंडित करना मसले का सिर्फ सतही इलाज ही है। खतरनाक स्तर पर पहुंचा प्रदूषण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये उपाय तय किए गए हैं। पिछले साल दो दिसंबर को कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एयर क्वालिटी पर एम. सी. मेहता बनाम भारत सरकार मामले में यह आदेश दिया था। इसके तहत ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान बनाया गया था ताकि अलग-अलग एयर क्वालिटी इंडेक्स के हिसाब से इसे लागू किया जा सके। एयर क्वालिटी इंडेक्स को मॉडरेट एंड पुअर, वैरी पुअर, सीवियर और सीवियर+ में बांटा गया था। जीआरएपी में वायु प्रदूषण के अलग-अलग स्तरों से निपटने के लिए सात कैटेगरी के उपाय सुझाए गए हैं। एनवायरमेंट पॉल्यूशन कंट्रोल अथॉरिटी वो संस्था है, जो इन उपायों को लागू करने का सुझाव देती है। वर्तमान में दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक यानी सीवियर स्तर पर पहुंच गया है। जीआरएपी मानकों के हिसाब से यह प्रदूषण छठे स्तर का है। इस स्थिति से निपटने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन मंगलवार को जैसे ही ईपीसीए ने इन उपायों की घोषणा की, एमसीडी और मेट्रो ने इन्हें लागू करने में दिक्कतों का हवाला दे दिया। - मधु आलोक निगम
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