17-Nov-2017 06:49 AM
1234787
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की जिस नर्मदा परिक्रमा यात्रा को धार्मिक, आध्यात्मिक और गैर राजनीतिक बताया था उस यात्रा की सियासी हलकों में ही सबसे ज्यादा चर्चा है। जो अभी बदस्तूर जारी है। पर इसके निष्कर्षों को तलाशने में भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी जुटी है। अरुण यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ इसमें शरीक होकर पार्टी के भीतर कोई मतभेद नहीं होने का उपक्रम कर चुके हैं। इससे पार्टी के भीतर दिग्गी विरोधी खेमा हैरान है। आरएसएस के हमदर्द रहे स्वामी सत्यमित्रा नंद गिरि के पत्र ने भाजपा और संघ की चिंता बढ़ा दी है। अपने पत्र में उन्होंने न केवल इस यात्रा की तारीफ की है बल्कि खुद भी इसमें शामिल होने की इच्छा जता दी है। इसके बाद इंदौर में संघ प्रमुख मोहन भागवत और स्वामी सत्यामित्रा नंद गिरि की मुलाकात भी हुई। जिसे लेकर लोगबाग अपने-अपने तरीके से निहितार्थ निकाल रहे हैं।
इस यात्रा का कार्यकाल कम से कम छह महीने का है। दिग्गी ने खुद यात्रा को निजी और धार्मिक ही रखा है। कोई सियासी चर्चा भी वे इन दिनों नहीं कर रहे। तभी तो अपनी पार्टी का झंडा भी साथ नहीं लेकर चल रहे। भाजपा के पूर्व विधायक राणा रघुराज सिंह तोमर ने इस यात्रा का स्वागत भी किया तो भाजपा आलाकमान की चिंता बढ़ गई होगी। उन्हें गले लगाने में दिग्गी ने कतई गुरेज नहीं किया और तो और दिग्गी को सत्ता से बेदखल करने वाली भाजपा की केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी भोपाल में पत्रकारों से बातचीत में दिग्विजय सिंह को अपना भाई बता दिया। ऊपर से यह पेशकश और कर दी कि वे अगर बुलाएंगे तो यात्रा में जरूर शरीक होंगी। अपनी मुखरता के लिए दिग्गी अक्सर चौतरफा आलोचना के शिकार होते रहे हैं, लेकिन इस परिक्रमा यात्रा में उन्होंने गजब का धीरज दिखाया है। जब तक यात्रा पूरी नहीं होगी यानी पूरे छह महीने तक नर्मदा का तट छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे वे। तभी तो अब लोग इसकी तुलना मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की 148 दिन चली नर्मदा सेवा यात्रा से भी कर रहे हैं। पर चौहान की यात्रा को तो उनके पूर्ववर्ती भाजपाई मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर ने ही शाही यात्रा करार किया था। जो एक तो टुकड़ों में संपन्न हुई थी, ऊपर से सरकारी लाव-लश्कर साथ चला था। पर दिग्गी की यात्रा मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों राज्यों से होकर गुजरेगी।
विधानसभा क्षेत्रों की गणना करें तो मध्य प्रदेश के 110 और गुजरात के बीस क्षेत्रों से गुजरेंगे दिग्गी। अगले साल मार्च में जब तक यात्रा पूरी होगी तब तक दिग्गी लगभग आधा सूबा पैदल नाप चुके होंगे। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि उसके बाद ही शुरू हो जाएगी सूबे के विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया। तब दिग्गी अपनी यात्रा के अनुभवों का खुलासा करेंगे। जो भी हो कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं के इस यात्रा में शामिल होने से पार्टी की एकता का संदेश तो गया ही है। सूबे की सियासत से भले दिग्गी पिछले पंद्रह साल से अलग रहे हों पर यहां के कांग्रेसी नेताओं पर तो सबसे ज्यादा पकड़ उन्हीं की मानी जाती है। अध्यात्म एक व्यक्तिगत और निजी मामला है, पर दिग्विजय की यात्रा न व्यक्तिगत है, न ही निजी। उनके साथ अच्छी-खासी भीड़ चल रही है। बड़े-छोटे कांग्रेसी नेता जगह-जगह पर यात्रा में शामिल होकर उनका उत्साह बढ़ा रहे हैं। रास्ते में पडऩे वाले गांव-कस्बों और शहरों में उनका स्वागत हो रहा है। पोस्टर और बैनर लगाये जा रहे हैं। वंदनवार सज रहे हैं। रंगोली बन रही है। औरतें आरती की थाली और सिर पर मंगलकलश लेकर स्वागत में खड़ी रहती हैं। कई जगह बैंड-बाजा और भजन पार्टियां साथ चलती हैं। खाने-पीने का इंतजाम रहता है। स्वागत और हौंसला अफजाई के लिए आ रही इस भीड़ में खासी तादाद कांग्रेसियों की है क्योंकि सफर पर निकलने के पहले दिग्विजय सिंह ने नर्मदा अंचल में अपने संपर्क सूत्रों को खबर की थी। जाहिर है उनमें से ज्यादातर कांग्रेसी थे। साल भर बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। स्वागत के लिए आने वालों की भीड़ में काफी टिकटार्थी भी अपने समर्थकों के साथ शामिल हो रहे हैं।
दिग्विजय राजनीतिक सवालों पर चुप्पी ओढ़े रहते हैं, लेकिन खेत-खलिहानों और गांव-जवारों में मिलने वाले लोगों से, खासकर खेतिहर मजदूरों और किसानों से वे सुख-दु:ख की बातें करते हैं। कच्ची सड़कों, पगडंडियों और अक्सर घुटने-घुटने पानी से गुजरते हुए यह यात्रा उन इलाकों तक भी पहुंच रही है जहां नेता केवल वोट मांगते वक्त पहुंचते हैं। तो क्या यात्रा के बहाने वे विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की तरफ से सूबे की सत्ता के दावेदार बन जाएंगे, इस यक्ष प्रश्न का जवाब अभी कौन दे सकता है?
कट्टर धार्मिक व्यक्ति हैं दिग्विजय
अपनी राजनीतिक बयानबाजियों की वजह से कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। अपने गुरु अर्जुन सिंह की तरह उनका भी प्रिय शगल है संघ परिवार पर गाहे-बगाहे निशाना साधना। आश्चर्य नहीं कि वे हमेशा भगवा ताकतों के निशाने पर रहे हैं। उनकी छवि हमेशा हिन्दू विरोधी नेता की है। बहुत कम लोगों को मालूम है कि वास्तविक जीवन में वे एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति हैं, कर्मकांडी और पूजा-पाठी हिन्दू। जब वे दस वर्षों तक मुख्यमंत्री थे तो अक्सर उनके बारे में मजाक चलता था कि यहां की समस्त स्त्रियां मिलकर भी उतने उपवास नहीं रख सकती जितना अकेले दिग्विजय सिंह रखते हैं।
-भोपाल से अरविंद नारद