17-Nov-2017 06:41 AM
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मप्र से टाइगर स्टेट का तमगा तो छिन गया, अब ग्रीन स्टेट का तमगा भी ज्यादा दिन नहीं रहेगा। जंगल का इलाका तेजी से घट रहा है। यह बात केंद्र सरकार के आंकड़ों से भी पुष्ट होती है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया हो या कोई और एजेंसी, सभी में यही बात सामने आ रही है। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार मप्र में कुल 94,668 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 31 प्रतिशत एवं देश का 12 प्रतिशत है। हकीकत यह है कि हर साल माफिया, नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से पेड़ों की अवैध कटाई, अतिक्रमण, विकास कार्यों के कारण लगातार वन क्षेत्र कम होते जा रहे हैं। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार एक साल करीब 5,27,000 पेड़ अवैध रूप से काटे जा रहे हैं, जिनका अनुमानित मूल्य 5,270 करोड़ रुपए हैं। बीते चार साल में न केवल 238 वर्ग किमी का जंगल खत्म हो चुका है, वहीं बंजर भूमि का दायरा बढ़ चुका है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है। सरकार वनों
की स्थिति सुधारने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, लेकिन उसका प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) का कहना है कि देश में सबसे अधिक मप्र के जंगलों में पेड़ों की अवैध कटाई होती है। मप्र के जंगलों में मिलने वाली इमरती लकडिय़ां माफिया के निशाने पर है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हर साल राज्य में इमारती लकड़ी का 2.5 लाख घनमीटर से अधिक, ईंधन की लकड़ी का तकरीबन दो लाख घन मीटर और बांस का अनुमानित तौर पर 65 हजार टन उत्पादन होता है, लेकिन माफिया कहीं इससे अधिक लकडिय़ां यहां के वनों से काटकर तस्करी करते हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश की टीक लकड़ी बनावट, रंग और ग्रेन की गुणवत्ता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह फर्नीचर बनाने और घर के निर्माण के लिए सबसे अधिक अनुकूल है। इसलिए यह देशभर के माफिया के निशाने पर रहती है।
मप्र के वनों में अवैध कटाई माफिया, सफेदपोश और अफसरों की मिलीभगत से हो रही है, लेकिन बदनाम वन क्षेत्र के गांवों को किया जा रहा है। मप्र में कुल 54903 गांव हैं। इनमें से 22,600 गांव या तो जंगल में बसे हैं या फिर जंगल की सीमा से सटे हैं। वन विभाग इन्हीं गांवों को जंगलों में होने वाली घुसपैठ, वन्य प्राणियों की हत्या, पेड़ों की कटाई का जिम्मेदार मानता है। आलम यह है कि जब भी दबाव बढ़ता है विभाग गांवों को वन क्षेत्र से दूर करने की बात करता है। जबकि हकीकत यह है कि प्रदेश के वन क्षेत्र के आसपास रसूखदारों का कब्जा है। जहां से संगठित तौर पर आपराधिक गतिविधियां चलती है। इसके कई प्रमाण सामने आ चुके हैं।
वन विभाग के अधिकारियों की माने तो वन क्षेत्र के आसपास स्थित फार्म हाउसों का अगर सीमांकन कराया जाए तो यह तथ्य भी सामने आएगा कि इनका क्षेत्रफल हर साल बढ़ता जा रहा है। दरअसल, रसूखदार आग लगाकर पेड़-पौधों को नष्ट करते हैं। फिर उसे खेत बना दिया जाता है। वर्ष 2016 के पहले चार महीनों में जंगल में आग लगने की देशभर में 20,000 घटनाएं हुई हैं। जिनमें मध्य प्रदेश में जंगल में आग लगने की इस वर्ष 2,238 घटनाएं हुई जो संख्या पिछले साल 294 थी। वैसे तो प्रदेश के वनों में पेड़ों की अवैध कटाई तो हर तरफ चल रही है, लेकिन माफिया सबसे अधिक आदिवासी जिलों में सक्रिय है। आलिराजपुर, अनूपपुर, जबलपुर, बालाघाट, बड़वानी, बैतूल, भिंड, छिंदवाड़ा, झाबुआ, कटनी, खंडवा, मंडला, पन्ना, रीवा, सतना, श्योपुर, सिवनी, सीहोर, शहडोल, सीधी, शिवपुरी, सिंगरौली, उमरिया, डिंडौरी, नरसिंहपुर आदि के वनों में पेड़ों की अवैध कटाई सबसे ज्यादा हो रही है। ऐसे में प्रदेश के वन क्षेत्र कम हो रहे हंै, साथ ही हरियाली भी सिमटती जा रही है, लेकिन वन विभाग माफिया को रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना सका है।
लगातार कम हो रही हरियाली
मप्र में हर साल 8 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए जा रहे हैं, फिर भी हरियाली बढऩे की बजाए घट रही है। भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2013 और 2015 के बीच प्रदेश में 60 वर्ग किमी हरियाली घटी है। जबकि पौधरोपण पर हर साल औसतन 60 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस हिसाब से पांच साल में 350 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी हरियाली नहीं बढ़ी है। पांच सालों में प्रदेश में 40 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए गए हैं, लेकिन 20 करोड़ भी जिंदा नहीं बचे हैं। वन विभाग के पास जीवित बचे पौधों का ठीक-ठीक आंकड़ा तक नहीं है, लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि 50 फीसदी से कम पौधे ही जीवित रह पाते हैं। इस साल 8 करोड़ 25 लाख पौधे लगाए गए हैं। इनमें से सात करोड़ पौधे नर्मदा कैचमेंट के 16 जिलों में रोपे गए हैं। विभाग के सूत्र बताते हैं कि इनमें से 20 फीसदी से ज्यादा पौधे नष्ट हो गए हैं। लिहाजा विभाग ने सभी मैदानी वन अफसरों को पौधों की सुरक्षा करने को कहा है। उल्लेखनीय है कि देश में क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे ज्यादा 77 हजार 462 वर्ग किमी वन क्षेत्र मध्य प्रदेश में है।
-नवीन रघुवंशी