17-Nov-2017 06:38 AM
1234764
वित्तीय गड़बडिय़ां पकड़कर भ्रष्टाचार के मामले में कड़ी से कड़ी कार्रवाई करवाने के लिए बनाया लोकायुक्त संगठन इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल दो बेशकीमती भूखंडों को लेकर लोकायुक्त संगठन ने अपने ही आदेश को पूरी तरह पलट डाला। इंदौर विकास प्राधिकरण के योजना क्र. 54 स्थित इन भूखंडों का आवंटन 10 साल पहले गुरुजी सेवा न्यास को किया गया था, जिसकी शिकायत लोकायुक्त में की गई। जांच के बाद लोकायुक्त ने 9 पेज का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए दोनों भूखंडों का आवंटन निरस्त करने के आदेश 07.05.2008 को दिए, लेकिन इस आदेश को बाद में आए अगले लोकायुक्त ने 6 साल बाद दिनांक 06.03.2014 को पलट डाला, जिसके चलते अभी प्राधिकरण के बोर्ड ने संकल्प क्र. 72, दिनांक 15.03.2017 के जरिए उक्त दोनों निरस्त भूखंडों को जिंदा करते हुए आवंटित करने का निर्णय ले लिया।
प्राधिकरण ने संकल्प क्र. 82 दिनांक 10.04.2007 के द्वारा योजना क्र. 54, पीयू-4 में चिकित्सा उपयोग के भूखंड क्र. ए और बी का आवंटन श्री गुरुजी सेवा न्यास को मात्र 5200 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर पर कर दिया। भूखंड क्र. ए 4110 और भूखंड क्र. बी 4376 वर्गमीटर क्षेत्रफल का है। शासन ने भी इसकी अनुमति दे दी थी, जिसके बाद लोकायुक्त में इस आवंटन और टेंडर प्रक्रिया के खिलाफ मय प्रमाण शिकायत दायर की गई। कांग्रेस प्रवक्ता के.के. मिश्रा द्वारा की गई इस शिकायत की जांच लोकायुक्त संगठन के विधि सलाहकार शिशिर चौबे ने 9 पेज का जांच प्रतिवेदन तैयार किया, जिसमें स्पष्ट पाया गया कि टेंडर की शर्तों के साथ-साथ अन्य प्रक्रिया का पालन इन दोनों भूखंडों के आवंटन में नहीं किया और श्री गुरुजी सेवा न्यास को निविदा प्रस्तुत करने की पात्रता ही नहीं थी, लिहाजा मध्यप्रदेश लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1981 की धारा 12 (1) के अंतर्गत प्राधिकरण बोर्ड, मध्यप्रदेश शासन, आवास एवं पर्यावरण विभाग भोपाल को यह अनुशंसा की जाती है कि गुरुजी सेवा न्यास को आवंटित दोनों भूखंडों का आवंटन निरस्त करने की कार्रवाई की जाए। उक्त आदेश तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसुदन दयाल ने दिनांक 06.05.2008 को पारित किया। इस जांच प्रतिवेदन में लोकायुक्त ने तत्कालीन सीईओ प्रमोद गुप्ता, तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष मधु वर्मा, तत्कालीन प्रमुख सचिव देवराज बिरदी के जवाबों को तर्क संगत नहीं माना और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांत भी दिए। इन दोनों भूखंडों को मात्र 5200 प्रति वर्गमीटर पर आवंटित किया गया, जबकि इन्हीं भूखंडों से लगे शैक्षणिक उपयोग के भूखंड को 23144.76 रुपए प्रति वर्गमीटर की दर पर आवंटित किया गया, लिहाजा इस दर से ही तब 20 करोड़ रुपए के भूखंड गुरुजी सेवा न्यास को मात्र 4 करोड़ 41 लाख 27200 रुपए में आवंटित किए गए। लोकायुक्त के इस आदेश के बाद प्राधिकरण ने 14.07.2008 को दोनों भूखंडों का आवंटन निरस्त कर दिया, जिसको गुरुजी सेवा न्यास ने इंदौर हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर हाईकोर्ट ने प्राधिकरण का आदेश निरस्त करते हुए प्राधिकरण को स्पीकिंग ऑर्डर पारित करने को कहा। चूंकि लोकायुक्त भूखंडों को निरस्त कर चुका था, लिहाजा प्राधिकरण बोर्ड ने भी संकल्प क्र. 390 दिनांक 06.10.2008 को यह स्पीकिंग ऑर्डर पारित किया कि लोकायुक्त का आदेश चूंकि बंधनकारी है, लिहाजा दोनों भूखंडों का आवंटन निरस्त किया जाए और पुन: 12.12.2008 को निरस्ती पत्र जारी कर दिया, उधर हाईकोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश को निरस्त करते हुए लोकायुक्त से कहा कि वह याचिकाकर्ता की शिकायत का निराकरण नए सिरे से करे। लिहाजा लोकायुक्त कार्यालय ने पुन: इस प्रकरण की जांच शुरू की और जिन तमाम तथ्यों और तर्कों के आधार पर पहले लोकायुक्त ने आवंटन निरस्ती का आदेश दिया था, उसे पूरा का पूरा पलटते हुए तत्कालीन लोकायुक्त पी.पी. नावलेकर ने 06.03.2014 को किया गया आवंटन सही माना। इस आदेश में लोकायुक्त ने निविदा प्रक्रिया से लेकर किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं माना।
कौन सा आदेश सही
अब सवाल यह है कि इस पूरे मामले में लोकायुक्त संगठन का 06.05.2008 का आदेश सही था या 06.03.2014 का आदेश..? अगर लोकायुक्त जैैसा संगठन ही अपने आदेशों को इस तरह पलट देगा, तो उसकी विश्वसनीयता आम जनता के बीच क्या रह जाएगी..? सवाल यह भी है कि लोकायुक्त द्वारा दिए गए दो तरह के आदेशों की जांच कौन कर सकता है..? अब या तो इस संबंध में जनहित याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जाए, खैर लोकायुक्त द्वारा आदेश पलटने के भी तीन साल तक यह मामला फाइलों में दबा रहा। अभी प्राधिकरण की 15 मार्च 2017 को हुई बोर्ड बैठक में यह प्रकरण रखा गया, जिसे लोकायुक्त द्वारा पलटे फैसले के आधार पर मान्य किया गया।
- इंदौर से सुनील सिंह