17-Nov-2017 06:23 AM
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नोटबंदी की पहली बरसी से दो दिन पहले अतंरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले गैरकानूनी कारोबार से संबंधित एक बड़ा खुलासा हुआ है। पनामा और स्विस लीक्स के बाद इस बार पैराडाइज पेपर्स के हवाले से ये बातें सामने आयी हैं। इसमें बरमूडा स्थित एपिल बी और सिंगापुर की एशिया सिटी दो कंपनियों के नाम हैं जिन्होंने इस कारोबार की अगुवाई की। ये कंपनियां दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों, कारपोरेट और सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों के लिए काम कर रही थीं। 19 टैक्स हैवेन के जरिए फायदा हासिल करने वालों में भारत के 714 नाम और कंपनियां शामिल हैं। इसमें अभिनेता अमिताभ बच्चन, केंद्र में मंत्री जयंत सिन्हा, नीरा राडिया, संजय दत्त की पत्नी दिलनशीन के नाम प्रमुख तौर पर सामने आए हैं। कांग्रेस नेता अशोक गहलोत और वीरप्पा मोइली भी इसकी जद में हैं। इसके अलावा बीजेपी के राज्यसभा सदस्य आर के सिन्हा और उनकी कंपनी का भी इसमें नाम है। इन व्यक्तियों के अलावा कारपोरेट कंपनियों में सन-टीवी-एयरसेल-मैक्सिस मामला, एसार-लूप 2जी केस आदि मामले भी इससे जुड़े हुए हैं।
पर इससे हमें इस पर अधिक उत्साहित होने की जरूरत नहीं कि इनमें से किसी को सजा होगी या उसकी काली कमाई का छिपा माल जब्त होगा क्योंकि यही पूंजीवादी व्यवस्था का असली चेहरा है। कोई सोचता है कि पनामा से पैराडाइज वालों तक, किसी के खिलाफ कुछ होगा तो नासमझी है। ये लोग यह सब काम नियम, कायदे, कानूनों के अंतर्गत ही करते हैं। ये कायदे बनाये ही इस काम के लिए गए हैं। मुनाफा और पूंजी बढ़ाना पूंजीवादी व्यवस्था में बिल्कुल कानूनी है। इस व्यवस्था में सबसे बड़ा गुनाह भूखे बच्चे का एक रोटी उठा कर खा लेना है। उसके लिए उसे पीटते-पीटते कत्ल किया जा सकता है। बिना आधार के राशन लेना बड़ी चोरी है, बिना आधार बच्चे का मिड-डे मील लेना गुनाह है, बिना आधार पूरी जिंदगी काम कर बुढ़ापे में अपनी पेंशन लेना सख्त पाप है, इन सब गुनहगारों को हुकूमत चोरी नहीं करने देगी, लेकिन यही सरकार पनामा-पैराडाइज वालों को अपना ब्रांड एम्बेसडर बनाएगी!
हां, इनसे उन लोगों को सीख लेनी चाहिए जो अभी भी पूंजीवाद के छद्म जनतंत्र से कुछ उम्मीद पाले हुए हैं। जयंत सिन्हा का उदाहरण दिखाता है कि इस जनतंत्र के मालिक कौन हैं। जयंत सिन्हा ओमिड्यार नेटवर्क में काम कर रहे थे और साथ में बीजेपी के लिए भी। बीजेपी की घोषित नीति रिटेल में विदेशी निवेश के खिलाफ थी और जयंत सिन्हा के मालिक रिटेल में विदेशी निवेश चाहते थे। उन्होंने जयंत सिन्हा के जरिये सरकार को ही खरीद लिया- चुनाव लड़वाया और अपने आदमी को मंत्री बनवा लिया, अपनी नीति भी लागू करवा ली, जबकि विदेशी निवेश के खिलाफ बीजेपी को वोट देने वाले लोग देखते ही रह गए।
ज्यादातर लोग टैक्स हैवन को अपराधी संस्था जैसी चीज समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ये विश्व पूंजीवादी व्यवस्था का एक अहम हिस्सा हैं और उसके अन्तर्गत बिल्कुल कानूनी हैं। इनका जन्म 2 तरह से हुआ - कुछ थोड़े - स्विस बैंक, लक्जेमबर्ग, मोनाको, आदि 1789 की फ्रेंच क्रान्ति के डर से फ्रांस और बाकी यूरोप के अभिजात वर्ग द्वारा अपनी सम्पत्ति को छिपाने के लिये अस्तित्व में आये। इसके लिये गुप्त खाते चालू हुए जिनका इस्तेमाल बाद में नाजियों ने यूरोप भर की अपनी लूट को छिपाने के लिये भी किया, लेकिन ज्यादातर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की देन हैं - ये 1929 के एक ब्रिटिश कानून के तहत शुरू हुए। ये सब पहले और कुछ अब भी ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत छोटे द्वीप हैं। इनका उपयोग पहले ब्रिटिश और बाद में दूसरे साम्राज्यवादी देशों की कम्पनियों ने किया, एक ओर तो एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के देशों की लूट के लिये और दूसरी ओर खुद अपने देशों में भी टैक्स व अन्य कानूनों से बचने के लिये। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रत्यक्ष उपनिवेशवाद समाप्त होने के बाद जब नव स्वाधीन देशों और खुद साम्राज्यवादी देशों में भी जनवादी आन्दोलनों के दबाव से नव उपनिवेशवादी कम्पनियों पर कुछ नियमों का दबाव पड़ा तो उन्होंने इन जगहों को अपना अड्डा बनाया, जहां उन्हें न टैक्स देना था, न अपने कारनामों की कोई जानकारी पब्लिक करनी थी, लेकिन आखिर ये इनके कैसे और क्या काम आते हैं?
क्या जांच की किसी पर पड़ेगी आंच
केंद्र सरकार ने पैराडाइज पेपर्स लीक मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। सीबीडीटी के अध्यक्ष सुशील चंद्रा की अगुवाई में होने वाली इस जांच को उसी मल्टी एजेंसी समूहÓ को सौंपा गया है जो पनामा पेपर्स मामले की जांच कर रहा है। सीबीडीटी के अनुसार इस जांच दल में ईडी, आरबीआई और वित्तीय खुफिया इकाई के प्रतिनिधि शामिल होंगे। उधर सेबी ने भी मामले की अलग से जांच कराने की घोषणा की है। सीबीडीटी के अनुसार उसे इस मामले में त्वरित कार्रवाईÓ का भी अधिकार सौंपा गया है। इसके बाद उसने आयकर विभाग की देश भर की सभी जांच इकाइयों को इस मामले में फौरन कार्रवाई के लिए सतर्क कर दिया है। यह समूह आरोपित सभी 714 व्यक्तियों और कंपनियों के आयकर रिटर्न की जांच करेगा, इसके बाद ही इस मामले में कार्रवाई की जाएगी, लेकिन सवाल यह भी उठने लगे हैं कि क्या यह जांच भी केवल कागजी रहेगी या किसी पर आंच भी आएगी।
- अक्स ब्यूरो