17-Nov-2017 05:55 AM
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बिहार को नशामुक्त राज्य बनाने का प्रयास ऊपरी तौर पर भले ही अच्छा है लेकिन इसके अंदर बहुत झोल है। प्रदेश में ताड़ी पर रोक लगाने का मामला तुगलकी फरमान साबित होकर रह गया है। पिछले साल अप्रैल महीने में सरकार ने बड़े ही तामझाम के साथ शराब के साथ ही ताड़ीबंदी का भी ऐलान किया था। सरकार ने दावा किया था कि नशीली ताड़ी पर रोक लगेगी और उसकी जगह नीरा को बढ़ावा दिया जाएगा। नीरा को बेचने के लिए कई नियम भी बनाए गए और लाइसेंस भी बांटे गए। 18 मार्च, 2017 को नीरा नियमावली लागू की गई। नियमावली बनने के इतने महीने गुजरने के बाद भी हालत यह है कि ताड़ और खजूर से पैदा होने वाले कुल रस का एक फीसदी हिस्सा भी इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। राज्य के 12 जिलों में ही कुल 74 फीसदी ताड़ और 70 फीसदी खजूर के पेड़ हैं। उनसे रोजाना ताड़ और खजूर का 7 करोड़ लीटर रस जमा होना चाहिए था, पर महज 30 हजार लीटर रस ही जमा हो पा रहा है और उसी रस का नीरा बन रहा है। शाही मौसम यानी अप्रैल से अगस्त महीने के बीच ताड़ या खजूर के एक पेड़ से रोजाना 10 लीटर रस मिलता है। इससे साफ हो जाता है कि ताड़ और खजूर का 99 फीसदी रस या तो ताड़ी के रूप में बाजार में बिक रहा है या बरबाद हो रहा है।
उद्योग विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, अभी नीरा बनाने और बेचने का काम टैस्टिंग के दौर से गुजर रहा है। फिलहाल तो नालंदा में नीरा की बौटलिंग हो रही है और एक सौ स्टालों पर इसे बेचा जा रहा है। सबसे ज्यादा 55 स्टौल नालंदा में ही हैं। वैशाली में भी एक प्लांट लगाया जा रहा है। गया और भागलपुर में भी प्लांट लगाने की योजना को मंजूरी दे दी गई है, पर वहां अभी काम शुरू नहीं हो सका है। एक प्लांट रोजाना 10 हजार लीटर नीरा को निखारता है। नालंदा के प्लांट पर 5 करोड़, 56 लाख रुपए और हाजीपुर के प्लांट पर 4 करोड़, 20 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। नीरा को 25 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचना है और ताडख़जूर के गुड़ की कीमत 150 रुपए प्रति किलो तय की गई है। नीरा से जैम, पेड़ा, लड्डू, आइसक्रीम, जैली, हलवा बनाने की योजना है। इसके साथ ही ताड़ और खजूर के पत्तों से चटाई, खिलौने और झाड़ू बनाने की भी योजना है। राज्य में सभी 38 जिलों में ताड़ और खजूर से रस उतारने के लिए 67 हजार, 280 लोगों को ट्रेंड किया गया है। सरकार उन्हीं 12 जिलों पर सबसे ज्यादा नजर गड़ाए हुए है, जहां सबसे ज्यादा ताड़ और खजूर के पेड़ हैं। ताड़ी की खपत के मामले में समूचे देश में बिहार चौथे नंबर पर है। पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश, दूसरे नंबर पर असम और तीसरे नंबर पर झारखंड आता है।
25 साल पुराना होने पर ही नीरा और ताड़ी दे सकता है। इसके बारे में कहा जाता है कि कोई ताड़ के पेड़ को लगाता है, तो उसका बेटा ही ताड़ी पी पाता है। ताड़ के पेड़ आमतौर पर 45 से 50 फुट ऊंचे होते हैं। ताड़ी पर रोक लगाने से राज्य के 20 लाख पासी और ताड़ी के कारोबार से जुड़े परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य में पासी जाति की आबादी 8 लाख, 80 हजार, 738 है, जबकि साल 1991 की जनगणना में इस जाति की आबादी 5 लाख, 89 हजार, 12 थी। ताड़ या खजूर के पेड़ से निकलने वाले रस को अगर सूरज उगने से पहले उतार लिया जाता है, तो उसे नीरा कहा जाता है और उसमें नशा नहीं होता है, जबकि सूरज निकलने के बाद अगर रस को उतारा जाए, तो वही ताड़ी में बदल जाता है और वह काफी नशीला हो जाता है। विरोधी दलों के नेताओं का मानना है कि ताड़ी पीने से कई फायदे होते हैं। उनका दावा है कि ताड़ी शराब नहीं, बल्कि जूस है। आंखों की रोशनी कम होने पर डाक्टर ताड़ी पीने की सलाह देते हैं।
नीरा की आड़ में ताड़ी का अवैध कारोबार
ताड़ी में नशा बढ़ाने के लिए उसमें यूरिया और मैनड्रैक्स मिला दिया जाता है। इसे रोकने के लिए ही ताड़ी पर पाबंदी लगाई गई है। ताड़ के फल से जो रस निकलता है, वह हांड़ी (लबनी) में टपने के साथ ही फर्मंटेशन शुरू कर देता है, जिससे अलकोहल की मात्रा बढऩे लगती है। अगर हांड़ी में चूना डाल दिया जाए, तो फर्मंटेशन नहीं हो पाता है। फर्मलीन को भी हांड़ी में डाल देने से तकरीबन 40-45 घंटे तक फर्मंटेशन नहीं होता है। ताड़ी को मैडिसिनल भी माना जाता है। कहा जाता है कि इसे पीने से पेट साफ रहता है और पाचन संबंधी बीमारियां ठीक होती हैं। ताड़ी में चीनी की मात्रा ईख से कहीं ज्यादा होती है। बिहार में प्रति व्यक्ति प्रति सप्ताह ताड़ी की खपत 266 मिलीलीटर है। बिहार राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि ताड़ी पर राजनीति करने वाले भरम फैला कर केवल अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं। सरकार को ताड़ी को पेड़ से उतारने और उसके कारोबार में लगे लोगों का पूरा खयाल है। सरकार ने ताड़ी पर रोक लगाई है, नीरा पर नहीं।
- विनोद बक्सरी