01-Nov-2017 09:22 AM
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रत की सनातन संस्कृति में मूर्ति पूजा का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। हर भक्त अपने-अपने ईष्ट देव को अपने तरीके से पंचामृत, जल, दूध आदि से अभिषेक करता है। यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, लेकिन अब धार्मिक मामलों में न्यायपालिका या सरकार का हस्तक्षेप बढऩे लगा है और मूर्तियों, अभिलेखों के क्षरण के नाम पर भक्त को भगवान से दूर किया जा रहा है। जबकि धर्म पर किसी का दखल नहीं होना चाहिए। धर्म आस्था का विषय है और एक भक्त के भाव को प्रकट करने का माध्यम है, लेकिन अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग महाकाल के पूजा विधान में हस्तक्षेप कर कई परिवर्तन किए हैं। इसका देशभर में रोष है। संत समाज के साथ ही आमजन भी आहत हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में 28 अक्टूबर को तड़के भस्मारती में पहली बार शिवलिंग को कपड़े से ढंकने के बाद भस्म चढ़ाई गई। पुजारियों ने अभिषेक के लिए पंचामृत में शंकर की बजाय खांडसारी का उपयोग किया। हरिओम जल (ब्रह्म मुहूर्त में भगवान को चढ़ाया जाने वाला जल) चढ़ाने के लिए भक्तों को आरओ का जल वितरित किया गया। अचानक परंपरा में दिखे बदलाव को भक्त आश्चर्य के साथ निहारते रहे। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने शाम 5 बजे के बाद गर्भगृह और ज्योतिर्लिंग को सुखाकर सूखी पूजा करने के निर्देश दिए हैं। महाकाल मंदिर समिति प्रशासक प्रदीप सोनी का कहना है कि मंदिर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों की सूचना प्रमुख स्थानों पर चस्पा की जाएगी। दर्शनार्थियों से अपील की जाएगी कि कोर्ट के निर्देशों के पालन में प्रबंध समिति का सहयोग करें। भक्तों के लिए 500 मिली लीटर के जलपात्र भी बनवाए जाएंगे।
दरअसल उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में अतिशय चढ़ावों के कारण वहां स्थित ज्योतिर्लिंग का क्षरण होने लगा। चूंकि मंदिर प्रबंधन ने इसके प्रति सावधानी नहीं दिखाई, इसलिए एक नागरिक को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। तब सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीमों से याचिका में कही गई बातों की जांच कराई। इनसे पुष्टि हुई कि महाकाल मंदिर की विश्व प्रसिद्ध आरती के समय जो भस्म चढ़ाई जाती है, उसका ज्योतिर्लिंग पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है। ज्योतिर्लिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है, वह भी प्रदूषित और बैक्टीरिया-युक्त है। इसका खराब असर भी ज्योतिर्लिंग पर पड़ा है।
उधर आरओ जल से महाकाल के अभिषेक पर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कहते हैं कि मूर्ति की पूजा नहीं होती, बल्कि मूर्तिमान की पूजा होती है। अगर प्रतिमा का क्षरण हो जाता है तो दूसरी प्रतिमा स्थापित की जा सकती है। सोमनाथ में शिवलिंग के क्षरण पर दूसरा शिवलिंग स्थापित किया गया है, वैसे ही उज्जैन में भी संभव है। पंचामृत अभिषेक का विधान शास्त्रों में वर्णित है और यह अभिषेक की वैज्ञानिकता है। पंचामृत अभिषेक से शिवलिंग में चिकनाहट आती है और उसे दूर करने शक्कर का उपयोग किया जाता है। न्यायालय को धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। मान्यता आस्था और विश्वास की है।
श्रीमहंत नरेंद्र गिरी कहते हैं कि गंगा को लेकर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के अनगिनत फैसलों का पालन ही नहीं हो पाया। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया था कि टिहरी से पानी छोड़ा जाए, उसका क्या हुआ। हमारी परंपराओं में लोग क्यों दखल करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी सिरफिरे ने महाकाल को लेकर याचिका दायर की होगी। धार्मिक मामलों में लगातार आ रहे कोर्ट के फैसलों पर श्रीमहंत का कहना था कि लोगों को कोर्ट जाने से तो नहीं रोका जा सकता है पर न्यायालयों को धार्मिक भावनाओं का ख्याल करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर समिति के सामने भी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। उधर देश में एक बड़ा वर्ग आक्रोशित है।
न्यायाधीशों से मिलेगा संत समाज
उज्जैन महाकाल में आरओ के जल से अभिषेक करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद जल्द ही न्यायाधीशों से मिलेगी। हालांकि, अखाड़ा परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने की बात कही है, लेकिन इसे अव्यवहारिक बताया है। परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी ने बयान में कहा है कि धार्मिक मामलों में फैसला सुनाने से पहले न्यायाधीशों को धर्माचार्यों के सुझाव भी लेने चाहिए। वह कहते हैं कि यह करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा मामला है। लोग मनोकामना पूरी होने पर दो बाल्टी या इससे अधिक जल से अभिषेक करने की मन्नत करते हैं। शहद और दही आदि से भी अभिषेक किया जाता है। जनमानस की अपनी धार्मिक भावना है और सबको इसका अधिकार है। ऐसे में आम श्रद्धालुओं को आधा लीटर आरओ का जल लाने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है। उन्होंने सवाल उठाया कि महाकुंभ के समय लाखों की भीड़ में आप कैसे जांच करेंगे कि जल आरओ का है या साधारण है। श्रीमहंत नरेंद्र गिरी ने कहा कि धर्म और आस्था से जुड़े मामलों में न्यायाधीशों को धर्माचार्यों से भी सुधाव लेना चाहिए। क्योंकि अव्यवहारिक निर्णय आने से उनका पालन कराना कठिन होगा तो तकलीफ होगी।
- उज्जैन से श्याम सिंह सिकरवार