15-Jun-2013 06:50 AM
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लगता है देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर न तो केंद्र सरकार गंभीर है और न ही राज्य सरकार। इसी कारण राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी केंद्र अर्थात् एनसीटीसी को लेकर गतिरोध अब बढ़ गया है।

राज्यों ने जहां इसे संघीय ढांचे पर प्रहार बताया है। वहीं केंद्र का कहना है कि देश में बढ़ते आतंकवाद के खतरे के मद्देनजर इस पर सहमति बनना जरूरी है। खास बात यह है कि अमेरिका जैसे देशों में एनसीटीसी का गठन पहले ही कर लिया है और उधर रूस भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है। चीन में भी एक राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार की संस्था गठित करने की बात की जा रही है। दुनिया के अनेक देशों में किसी न किसी रूप में आतंकवाद से लडऩे के लिए केंद्रीयकृत प्रणाली काम कर रही है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ऐसा ही एक कानून प्रस्तावित है। बांग्लादेश, म्यांमार से लेकर अरब देशों और इंडोनेशिया में भी अब कहा जाने लगा है कि आतंकवाद से लडऩे के लिए सारे देश को एकजुट होना पड़ेगा, लेकिन भारत में लगता है अभी भी यह लड़ाई राजनीतिक पेचों में उलझी हुई है। गैर कांग्रेसी राज्य ही नहीं कांग्रेस शासित राज्य भी दबे मन से एनसीटीसी का विरोध कर रहे हैं इनमें कर्नाटक प्रमुख है।
हाल ही में जब केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने एनसीटीसी पर बैठक का आयोजन किया तो ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने असहमति जाहिर की। पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने जब यह प्रस्ताव रखा था तो उस समय मुख्यमंत्रियों ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया था बाद में इस प्रस्ताव में कई तब्दीलियां की गई और मुख्यमंत्रियों के समक्ष बार-बार बदले हुए प्रस्ताव लाए गए, लेकिन अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। फरवरी में जो स्थिति थी वैसी ही स्थिति बनी हुई है। मुंबई हमलों के बाद वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने एनसीटीसी का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उसके बाद हालात बिगड़ते गए। राज्यों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने एनसीटीसी की घोषणा एक तरफा की है इसके लिए राज्यों से सलाह नहीं ली गई। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे मुख्यमंत्रियों ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। उधर जयललिता और ममता बनर्जी ने तो केंद्रीय गृहमंत्री की बैठक का ही बहिष्कार कर दिया। बहुत से मुख्यमंत्रियों को एतराज इस बात पर है कि एनसीटीसी के पास कार्रवाई करने का अधिकार क्यों दिया जाए। उनका कहना है कि राज्य में कोई भी कार्रवाई करने का अधिकार सिर्फ राज्य की पुलिस को होना चाहिए। वहीं कुछ मुख्यमंत्री ऐसी किसी जरूरत को ही नहीं मानते। क्योंकि देश में पहले से ही इतनी गुप्तचर और सुरक्षा एजेंसियां हैं कि उनका कामकाज एक-दूसरे को प्रभावित करता है। परेशानी यह है कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का न होकर अब राजनीति का हो गया है। हाल ही में छत्तीसगढ़ में माओवादी हमले के बाद उम्मीद की जा रही थी कि राज्यों का रुख इस मसले पर कुछ नरम होगा, लेकिन राज्यों ने नरमी नहीं दिखाई। उल्टे गरम तेवर दिखाए। नरेंद्र मोदी जैसे मुख्यमंत्री ने तो केंद्र की अच्छी खासी खिंचाई कर डाली। उधर केंद्र सरकार का कहना है कि माओवादी या अन्य आतंकवादी घटनाएं होने पर राज्य सरकारें केंद्र का ही मुंह देखती हैं। ऐसे में एनसीटीसी के गठन पर उन्हें एतराज क्या है। किंतु मोदी इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने एनसीटीसी के नए मसौदे पर चिंता जताते हुए आज कहा कि यह गलत परिकल्पित विचार है इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि यह कितना बड़ा होगा और इसमें कौन सी ताकतें शामिल होंगी। यह किस अधिकार के तहत काम करेगा और इसे किस कानून के तहत अधिकार मिलेंगे। मुख्यमंत्रियों की सबसे बड़ी चिंता सरकार की नीयत को लेकर है। अतीत में धारा 356 के दुरुपयोग के कई मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार के विरुद्ध फैसला दिया था। इसी कारण राज्य सरकारें डर रही हैं। क्योंकि भारत में प्रस्तावित एनसीटीसी अमेरिकी एजेंसी से भी ज्यादा ताकतवर हैं। मुख्यमंत्रियों का आरोप है कि केंद्र लोकतंत्र के सिद्धांतों की परवाह किए बगैर ऐसी संस्था को सर्वशक्तिमान बनाने जा रहा है। जिसकी संसद के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। इन्हीं सब कारणों से अब एनसीटीसी का गठन पेचीदा हो गया है। हालांकि शिंदे को विश्वास है कि आने वाले दिनों में राज्य इस पर सहमति जता ही देंगे। उन्होंने कहा कि इसके गठन का मामला अंतिम चरण में है। मुख्यमंत्रियों से सलाह मशविरा कर शीघ्र निर्णय ले लिया जाएगा। उधर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अप्रैल माह में भेजे गए अपने पत्र का हवाला देते हुए दोहराया है कि केंद्र सरकार को एनसीटीसी के गठन के विषय में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और इसे स्थगित करना चाहिए क्योंकि विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की राय एवं उनका भावना पर विचार किए बिना एनसीटीसी के गठन पर जोर दिया जा रहा है।
क्या है एनसीटीसी?
एनसीटीसी का निदेशक एक अतरिक्त निदेशक स्तर का अधिकारी होगा। इसमें मुख्यत: तीन प्रभाग होंगे और हर विभाग का प्रमुख खुफिया ब्यूरो के सयुंक्त निदेशक स्तर का अधिकारी होगा। ये प्रभाग खुफिया जानकारी एकत्र करने, उन्हें साझा करने और उसका विश्लेषण करने के साथ अभियानों के परिचालन का काम करेंगे। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के गठन के बाद यह दूसरा ऐसा संगठन है,जो आतकवादी गतिविधियों पर नजर रखेगा। सांगठनिक रूप से यह केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करेगा। एनसीटीसी को राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड या ब्लैक कैट कमांडो की सेवाएँ हासिल करने का अधिकार होगा। अमेरिका के एनसीटीसी की तर्ज पर गठित इस केंद्र को खुफिया ब्यूरो, रा, ज्याइंट इटेलिजेंस कमेटी एव्म राज्यों के खुफिया विभागों से तालमेल रखना होगा।