भ्रष्टाचार के खिलाफ दिखावे की मुहिम
16-May-2013 06:58 AM 1234760

मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की दिखावे की मुहिम ने सिद्ध कर दिया है कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान मात्र छलावा है और इसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। आलम यह है कि 22 साल पुराने मामलों में भी घोंघा चाल से चलते हुए कार्रवाई नहीं हो पाई है और उधर 2 साल से कोई उल्लेखनीय मामला ईओडब्ल्यू में दर्ज ही नहीं हुआ है। कई जगह छापे की कार्रवाई भी की गई, लेकिन बाद में उसमें खात्मा लगा दिया। मुख्यमंत्री ने जब ईओडब्ल्यू की सुस्त चाल देखी तो संबंधित अधिकारियों को टाइट किया तब जाकर हाल ही में 6-7 मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन यह मामले भी छोटी मछलियों के खिलाफ हैं। बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्रवाई करने में ईओडब्ल्यू के हाथ-पैर फूलते हैं। सरकार अपने अधीनस्थों के खिलाफ बोलने से हिचकती है। सारी सरकारें एक सी ही व्यवस्था से काम कर रही हैं। हाल ही में एक अधिकारी को मुख्यमंत्री ने फोन करके कहा कि आपके जाने के बाद भी ईओडब्ल्यू में इतने कम मामले क्यों दर्ज हो रहे हैं। अधिकारी को मुख्यमंत्री का यह फोन डीजी को नागवार गुजरा उन्हें लगा कि मुख्यमंत्री ने सीधे अधिकारी से बात क्यों की। बहरहाल ताबड़तोड़ 7-8 मामलों में कार्रवाई की गई। लेकिन ये कार्यवाहियां जिन पर की गईं वे छोटी मछलियां हैं मिसाल के तौर पर अपराध क्रमांक 3/2013 में नीमच में 2005 में एक बगीचे को एक वर्ष की लीज पर देने में स्टाम्प ड्यूटी में धोखाधड़ी की गई थी इस मामले में ईओडब्ल्यू में अपराध दर्ज किया गया। इसी प्रकार अपराध क्रमांक 2/2013 में शिवपुरी, करेरा के सहायक यंत्री के चार्ज में रहने वाले बरजोर सिंह यादव पर अनुपातहीन संपत्ति का मामला दर्ज किया गया। एक अन्य मामले में अपराध क्रमांक 5/2013 में पन्ना के राजस्व निरीक्षक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।  उज्जैन में सरकारी जमीन पर अवैध कालोनी काटने के आरोपी राजेंद्र शर्मा, तत्कालीन अध्यक्ष नगर निगम  उज्जैन के विरुद्ध अपराध क्रमांक 4/2013 के तहत मामला दर्ज किया गया। ये छोटे-छोटे मामले हैं।
दमोह में एक परियोजना अधिकारी का मामला 14 साल से चल रहा है। ऐसे ही एक अन्य मामला 1992 का है। 20 साल हो चुके हैं यदि संबंधित अधिकारी दोषी है तो उसे दंडित किया जाना चाहिए। यदि वह निर्दोष है तो इतनी लंबी कार्रवाई होना सरासर अन्याय ही कहा जाएगा। कई ऐसे प्रकरण भी हुए हैं, जिनमें छापे की कार्रवाई की गई, चालान काटा गया, रिपोर्ट दर्ज हुई, लेकिन बाद में कोई ठोस तथ्य हाथ नहीं लगने से खात्मा काट दिया गया। रोड डेवलपमेंट कार्पोरेशन में जनरल मैनेजर रहे सूर्यवंशी का मामला ऐसा ही है। जिनके 20-25 रिश्तेदारों के यहां छापे डाले गए थे इन्वेटिगेशन भी हुई थी, लेकिन बाद में कुछ नहीं मिला। खात्मा काट दिया गया। अगले को उसके रिश्तेदारों सहित जो परेशानी उठानी पड़ी उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
पूर्व महानिदेशक ओपी गर्ग कहते हैं कि 10 वर्ष से अधिक की पेंडिंग ज्यादती है। इस दौरान साक्ष्य सामने लाकर छानबीन करनी चाहिए और सच्चाई का पता लगाया जाना चाहिए। क्योंकि जिस भी व्यक्ति के खिलाफ प्रकरण लंबित रहता है उसे कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है और उसका अपमान भी होता है। गर्ग कहते हैं कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जानकारी जुटाना जरा कठिन रहता है कई बार साक्ष्य जानबूझकर नहीं दिए जाते और कई बार उन्हें नष्ट किया जाता है। कई बार गलत रीडिंग भी हो सकती है।
पाक्षिक अक्स ने जो केश बुक चोरी कांड वर्ष 2006 के अक्टूबर माह में उजागर किया था उस समय ओपी गर्ग ने प्रकरण की छानबीन की थी, लेकिन इस मामले में डिस्ट्रिक पुलिस ने जो 0 में चोरी की रिपोर्ट दर्ज की थी वह कमजोर थी। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा जो एफआईआर दर्ज की थी उसमें कैश बुक चोरी हो जाने के कारण पुख्ता प्रमाण प्रमाणित नहीं हो पाए। इस कारण से उसमें बाद के अधिकारियों द्वारा खात्मा काटा गया है। परंतु उक्त कैश बुक चोरी कांड के मामले में कुछ आईएएस अफसरों के स्वार्थ जुड़े हुए थे इस कारण उन्होंने आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के अधिकारियों पर दबाव डालकर मामले को इतना कमजोर कर दिया जिससे कोर्ट ने भी इस मामले को स्वीकार कर लिया। जानकार बताते हैं कि अगर इस मामले की परतें दोबारा खुल जाए तो कई आईएएस और आईपीएस अफसरों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कैश बुक चोरी हो जाने से सारे साक्ष्य खत्म नहीं हो जाते। कैश बुक तो दोबारा लिखी जा सकती है? पूर्व महानिदेशक गर्ग कहते हैं कि खास बात यह है कि बड़े व्यक्ति बच निकलते हैं। एमपी एसआईडीसी के एक प्रकरण में भी ऐसा ही देखने को आया था। वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2012 तक 11 हजार 133 प्रकरण आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में दर्ज हुए जिनमें से 2428 का ही निपटारा हो पाया था 8 हजार 705 वर्ष 2012 तक पेंडिंग थे। देखा जाए तो कुल 21.81 प्रतिशत मामलों में कार्रवाई हुई या निराकरण किया गया बाकी मामले वर्ष दर वर्ष फाइलों में आगे बढ़ते रहे। 2005 एकमात्र ऐसा वर्ष था जब 32.35 प्रतिशत प्रकरणों का निपटारा हुआ। आंकड़े बताते हैं कि एक मामले की जांच पड़ताल करने में ही औसत 3.12 माह का वक्त लगता है, लेकिन कुछ मामले तो दशकों से लंबित है उनका निपटारा क्यों नहीं हो पा रहा। खास बात यह है कि इस 12 वर्ष की अवधि में री इन्वेस्टिगेशन या ट्रांसफर के तहत कुल 11 मामले दर्ज हुए हैं। इसका अर्थ यह है कि ईओडब्ल्यू की कार्रवाई के बाद आगे उस मामले में कोई पहल नहीं की जाती। चाहे मामला कितना गंभीर ही क्यों न हो।
ईओडब्ल्यू ने दबाया चालान
एक तरफ तो विभिन्न आरोपों में आरोपित अधिकारियों कर्मचारियों के प्रकरणों में निर्णय आते-आते या खात्मा लगते-लगते 20-20 वर्ष लग जाते हैं तो दूसरी तरफ ऐसा भी होता है कि ईओडब्ल्यू इन मामलों को दबा लेता है।
कौन बचा रहा है जीएस श्रीवास्तव को
जल संसाधन विभाग की सिंध परियोजना के द्वितीय चरण में वर्ष 2006 में हुई करोड़ों रुपए की अनियमितता में दोषी पाए गए 14 लोगों में से एक जीएस श्रीवास्तव तत्कालीन कार्यपालन यंत्री/ अधीक्षण यंत्री जल संसाधन विभाग भिंड के विरुद्ध उक्त मामले में ईओडब्ल्यू ने अपराध क्रमांक 29/2009 में 7 मार्च 2013 को चालान पुटअप किया जा चुका है। किंतु चालान पुटअप करने की जानकारी ईओडब्ल्यू ने विभाग को आज दिनांक तक नहीं दी है। यह जानकारी दबा ली गई है कायदे से चालान पुटअप होने के बाद जीएस श्रीवास्तव को निलंबित किया जाना चाहिए था, लेकिन वर्ष 2006 के इस प्रकरण में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई उधर जीएस श्रीवास्तव का कहना है कि उनके खिलाफ कोई चालान प्रस्तुत नहीं हुआ और न ही वे उस समय डिवीजन में थे, न ही वे कभी कोर्ट में खड़े रहे। लोकायुक्त में जल संसाधन विभाग के सितंबर 2012 तक 13 प्रकरण दर्ज थे जिनमें से केवल एक प्रकरण समाप्त घोषित किया गया था बाकी सारे प्रकरणों में जांच पड़ताल चल रही है और जांच पड़ताल की गति बहुत धीमी है। धीमी गति के कारण भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का सरकार का दावा खोखला नजर आ रहा है।

मैं जब ईओडब्ल्यू में था उस समय मैंने कहा था कि 10 साल से ज्यादा समय तक मामलों का लंबित रहना ज्यादती है। किंतु जब तक एविडेंस मिल नहीं जाते या मिलने की संभावना खत्म नहीं हो जाती तब तक क्लोजर रिपोर्ट नहीं दी जा सकती। हालांकि 20-20 साल से मामले लंबित होने के कारण उस व्यक्ति को ही परेशानी होती है जिसके विरुद्ध मामला रहता है। जहां तक बड़ी मछलियों का सवाल है मेरे रहते एमपी एसआईडीसी के विरुद्ध चालान प्रस्तुत किया गया है। बड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई, केशबुक चोरी कांड में भी इंवेस्टिगेशन हुई। हालांकि उसमें एविडेंस परफेक्ट नहीं थे। इसलिए कोई सजा नहीं हो पाई लेकिन दूसरे सूत्रों के आधार पर भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में सजा हुई।
-ओपी गर्ग, पूर्व महानिदेशक आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो
ब्रजेश साहू

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