01-Nov-2017 09:03 AM
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अब भू-राजस्व संहिता के कई नियम अप्रासंगिक हो गए हैं, जिन्हें मौजूदा दौर में बदला जाना जरूरी है। इसके लिए राज्य भूमि सुधार आयोग द्वारा सुझाव लिए जा रहे हैं और आयोग ने 160 बिन्दुओं की मार्गदर्शी प्रश्नावली भी तैयार की है। पिछले तीन माह से पूरी प्रशासनिक मशीनरी राजस्व प्रकरणों से जूझ रही है। दरअसल मंदसौर में किसानों पर हुए गोलीकांड और उसके बाद जो देश-प्रदेश में माहौल बिगड़ा और शासन की छवि किसान विरोधी नजर आने लगी, उसके बाद ताबड़तोड़ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों के हितों से जुड़े फैसले लेना शुरू किए और पूरे राजस्व अमले को लम्बित प्रकरणों को निपटाने में झोंक दिया। इसके साथ ही पुराने राजस्व की वसूली भी सख्ती से कराई जा रही है। अविवादित नामांतरण, बंटवारा, डायवर्सन से लेकर खसरा, खतौनी की नकल देने सहित राजस्व से संबंधित प्रकरणों को पहली बार प्राथमिकता से निपटाया जा रहा है।
इसी कड़ी में अब मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 को भी बदला जा रहा है, क्योंकि 58 साल पहले लाई गई यह राजस्व संहिता अब कई प्रावधानों के चलते अप्रासंगिक हो गई है और बदलते समय के हिसाब से इसे अपडेट भी नहीं किया गया। अगले साल चूंकि विधानसभा चुनाव है, उसके पहले शासन अपनी हर तरह की नीति में अमूलचूल परिवर्तन लाना चाहता है। इसके चलते 58 साल पुरानी भू-राजस्व संहिता को समाप्त करते हुए नया मध्यप्रदेश भूमि प्रबंधन अधिनियम लाया जाएगा, जिसमें किसानों, जमीन मालिकों से लेकर पट्टेदार और छोटे व सीमांत किसानों के हितों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। अभी भू-राजस्व संहिता के कई प्रावधान कड़े और जटिल हैं, जिन्हें सरल और व्यावहारिक बनाया जाएगा। पिछले दिनों तो शिवराज सरकार ने राजस्व मंडल के औचित्य पर भी सवाल किए और उसे भंग करने की बात भी सामने आने लगी। राजस्व प्रशासन के बिगड़े ढर्रे को सुधारने के लिए अब इसमें परिवर्तन किया जा रहा है। हालांकि दो साल पहले भी राज्य भूमि सुधार आयोग का गठन किया गया था, लेकिन इसका कार्यकाल भी ढीला-ढाला रहा।
अब बदली परिस्थितियों में राज्य शासन ने पिछले दिनों नया भूमि प्रबंधन अधिनियम तैयार करने और विधेयक के जरिए उसे लागू करवाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन भी किया है, जिसमें राज्य भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष इंद्रनील दाणी के साथ अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, प्रमुख सचिव राजस्व अरुण पांडे के साथ सचिव राजस्व विभाग हरिरंजन राव भी बतौर सदस्य शामिल किए गए हैं। अब यह समिति राजस्व विभाग के साथ लगातार बैठकें कर अपना एक प्रतिवेदन तैयार करेगी, जिसमें राजस्व से जुड़े विशेषज्ञों, विधि के जानकारों की भी राय ली जाएगी। समिति ने इस संबंध में अपनी तैयारी कर ली है और लगभग 160 से ज्यादा प्रश्न भी तैयार किए हैं। राज्य शासन की मंशा है कि इस साल के अंत तक यह नया मध्यप्रदेश भूमि प्रबंधन अधिनियम कानून लागू कर दिया जाए।
हर गांव का नक्शा भी होगा तैयार
आयोग के समक्ष ग्रामीण क्षेत्रों में चरनोई भूमि को सुरक्षित रखने के लिए नए अधिनियम में विशेष प्रावधान करने के सुझाव मिले हैं। सरकारी जमीनों, खासकर आरक्षित भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने के कड़े प्रावधान भी किए जाएंगे। भू-राजस्व संहिता की अनुपयोगी धाराओं और उपबंधों को हटाया जाएगा, जिनसे निर्णय लेने में देरी होती है। राजस्व न्यायालयों के प्रवाचकों को बदलने की रोटेशन पद्धति अपनाने का सुझाव भी कुछ राजस्व से संबंधित अभिभाषकों ने आयोग को दिया है। हर गांव की आबादी का नक्शा तैयार करने, हर वर्ष खसरा एवं बी-1 की नकल देने, आपसी रजामंदी से खेती की अदला-बदली की प्रक्रिया को सरल करने, मुखिया द्वारा जीवित रहते जमीन का बंटवारा, व्यावसायिक उपयोग में लाई जा रही आबादी जमीन का डायवर्सन और ग्रामीण क्षेत्र में भी आबादी भूमि का मालिकाना हक देने का सुझाव भी आयोग को मिला है। भूमि सुधार आयोग के चेयरमैन इंद्रनील शंकर दाणी कहते हैं कि हमारी कोशिश है कि आम आदमी के लिए जटिल नियमों को आसान कैसे बनाया जाए। भू-राजस्व संहिता में संशोधन का प्रारूप दिसंबर तक तैयार हो जाएगा, ताकि इसे विधि विभाग से परीक्षण करवाने के बाद बजट सत्र में विधानसभा में पेश किया जा सके।
- सुनील सिंह