खतरे की घंटी!
01-Nov-2017 08:42 AM 1234792
मार्च 2017 में जब उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के नतीजे आये तो भारतीय जनता पार्टी ने इन चुनावों में प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी की। भाजपा ने इन चुनावों में अकेले ही 300 से ज्यादा सीटों का आकंड़ा छू लिया। हालांकि इन चुनावों में राहुल गांधी की तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस का आंकड़ा दहाई अंकों तक भी नहीं पहुंच सका। पार्टी की ये स्थिति तब रही थी जब पार्टी ने इन चुनावों के लिए जीत दिलाने में माहिर प्रशांत किशोर को अपने साथ जोड़ा था। इन नतीजों के बाद ही कांग्रेस के साझीदार रहे उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी जिस स्पीड से जा रही है उसमें विपक्ष को 2019 का चुनाव भूल कर 2024 की तैयारी करनी शुरू कर देनी चाहिए। इस घटना के तीन महीने बाद ही कांग्रेस के लिए गुजरात का राज्यसभा चुनाव भी एक नयी मुसीबत बन के आया। जब पार्टी को अपने कद्दावर नेता अहमद पटेल को राज्यसभा भेजने के लिए नाकों चने चबाने पड़े। हालांकि अहमद पटेल चुनाव जीतने में सफल रहे। मगर ऐसा करने के लिए पार्टी को अपने विधायकों को ही अलग-अलग जगहों पर रखना पड़ा। वाकई स्थिति ऐसी आ गयी थी कि कांग्रेस के लिए कुछ भी अच्छा नहीं घट रहा था। पार्टी के अंदर से ही राहुल गांधी के नेतृत्व के खिलाफ आवाजें उठने लगी थी। लगने लगा था कि शायद देश में कोई विपक्ष है ही नहीं और भाजपा की जो गति थी उससे यही लगता था कि सही मायनों में भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत के अपने सपने को साकार करने के बहुत नजदीक पहुंच गई है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में चीजें नाटकीय रूप से बदल गयी हैं। सत्ता परिवर्तन होने के बाद पहली बार कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के रूप में नजर आ रही है। एक तरफ जहां पार्टी सरकार की योजनाओं की तथ्यों के साथ आलोचना करते नजर आ रही है। तो वहीं दूसरी ओर कई सालों बाद कांग्रेस, भाजपा को उसके गढ़ गुजरात में चुनौती देती नजर आ रही है। आखिर क्या वजह है कि कुछ महीनों पहले ही अधमरी हो चुकी कांग्रेस अचानक नए तेवर के साथ फिर से उठ खड़ी हुई है? देखा जाए तो पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस ने कुछ मूल बातों पर काम किया हुआ है। इससे पार्टी खुद को एक मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित करने की दिशा में बढ़ रही है। एक विपक्ष का मूलभूत काम ही सरकार की खामियां जनता तक ले जाना होता है। हालांकि अब तक कांग्रेस ऐसा कर पाने में नाकाम रही थी, लेकिन पिछले कुछ समय से कांग्रेस ने सरकार की नीतियों की आलोचना काफी आक्रामक तरीके से की। अभी हाल ही में जीडीपी के पहले तिमाही के नतीजे आये थे। पहले तिमाही के नतीजों के अनुसार देश की जीडीपी 5.7 प्रतिशत रही। इसे नोटबंदी के असर के रूप में देखा गया। कांग्रेस ने इन नतीजों को मनमोहन सिंह के उस बयान से बखूबी जोड़ दिया जहां मनमोहन ने जीडीपी घटने की भविष्यवाणी की थी। साथ ही कांग्रेस ने इसे नोटबंदी के दुष्परिणाम बताने में भी देरी नहीं की। इसके बाद कांग्रेस ने सरकार के रोजगार न दे पाने के मुद्दे को भी काफी जोर शोर से उठाया, सरकार भी इस मुद्दे पर कोई तार्किक उत्तर देते नहीं नजर आयी। कांग्रेस ने इसी दौरान पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर भी मोदी सरकार की जम कर खिंचाई की। कांग्रेस के शशि थरूर साल 2009 से ही ट्विटर पर एक्टिव हैं और शायद भारतीय नेताओं में वह पहले भी हैं। मगर उनकी पार्टी ने इस दमदार प्लेटफार्म को समझने में काफी समय लगा दिया। वैसे अब लगता है कि कांग्रेस को भी यह पता चल गया है कि वर्तमान दौर में सोशल मीडिया प्लेटफार्म को नजरअंदाज कर लोगों से जुड़े रहना काफी मुश्किल है। तभी तो कांग्रेस आज सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर उसी ताकतवर तरीके से खड़ी दिखाई दे रही है, जितना कुछ समय पहले तक भारतीय जनता पार्टी हुआ करती थी। आज कांग्रेस के सभी नेता सरकार के मंत्रियों और सरकार की नीतियों की जमकर खिंचाई करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष जिनको सोशल मीडिया पर कई बार पप्पू कहकर भी काफी खिल्ली उड़ी। वही राहुल गांधी अब अपने चुटीले ट्वीट के लिए वाहवाही बटोरते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर कांग्रेस की आक्रामकता का ही असर है कि गुजरात चुनावों में सोशल मीडिया की जंग में भाजपा कांग्रेस से पीछे नजर आ रही है। आज कांग्रेस सोशल मीडिया पर एजेंडा सेट करते हुए नजर आ रही है, जो अब तक सामान्य तौर पर भारतीय जनता पार्टी किया करती थी। पिछले कुछ महीनों में भले ही कांग्रेस पंजाब छोड़ कोई बड़ी जीत न हासिल कर सकी हो। मगर इस दौरान कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने जरूर कई विश्वविद्यालयों में बेहतर प्रदर्शन किया है। मसलन एनएसयूआई दिल्ली विश्वविद्यालय में कई वर्षों बाद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर जीत दर्ज करने में सफल रही। इन जीतों ने ये साबित कर दिया कि कांग्रेस अभी उतनी अप्रासांगिक नहीं हुई है, जितना इसे बताया जा रहा है। अभी तक मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत यही रही है कि सरकार अपनी नीतियों को काफी प्रभावी ढंग से जनता तक रखने में सफल रही है। चाहे नोटबंदी हो चाहे सर्जिकल स्ट्राइक मोदी सरकार इसके फायदे लोगों को बताने में कामयाब रही है। हालांकि हाल के दिनों में मोदी सरकार कई मुद्दों पर घिरती नजर आ रही है। मसलन सरकार युवाओं को रोजगार क्यों नहीं दे पा रही है? क्या वाकई सरकार नोटबंदी से काले धन पर चोट कर पायी है? खुद इन सवालों के जवाब सरकार के पास नहीं हैं। जिसके कारण कांग्रेस इन मुद्दों को भुनाने में सफल रही है। अभी हाल ही में अमित शाह के बेटे पर लगे आरोप ने भी सरकार की किरकिरी करा दी है। इन कारणों से यह कहा जा सकता है कि आज कांग्रेस जिस तेवर के साथ भारतीय जनता पार्टी को हर मोर्चे पर टक्कर दे रही है। उससे एक बात तो जरूर है कि कांग्रेस मुक्त भारत के लिए अभी भाजपा को और मेहनत करनी पड़ेगी। अब एक बात तो तय है कि साल 2019 का लोक सभा चुनाव उतना भी एकतरफा नहीं रहने वाला जितना कुछ महीने पहले के कांग्रेस के रवैये को देखकर लगता था। पंजाब में बच गई साख पंजाब के गुरदासपुर संसदीय उपचुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है। इस सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी। अप्रैल में विनोद खन्ना के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर भाजपा की पराजय कई सवाल खड़े करती है। गुरुदासपुर में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत से पार्टी को एक नई उम्मीद बंधी है। इस हार से अब तक राहुल गांधी की चुटकी लेने वाली भाजपा की आंख खुली है। राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार उपचुनाव में जीत कोई बड़ा मायने नहीं रखती। क्योंकि पंजाब में भाजपा और अकाली दल पूरी तरह बिखर गयी है। वहां दो बार से अकाली दल की सरकार थी। पंजाब नशे को लेकर काफी बदनाम है। विकास भी उस तरीके से नहीं हुआ, जिसका नतीजा रहा पंजाब में कांग्रेस की वापसी हो गई। हिमाचल में अग्नि परीक्षा अब कांग्रेस की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा हिमाचल प्रदेश को बचाना है। क्योंकि वहां कांग्रेस की सत्ता है। जबकि भाजपा अपनी वापसी के लिए पूरी कोशिश में है। इसलिए पार्टी को गुरुदासपुर की जीत पर अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है। अगर हिमाचल को राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस बचाने में कामयाब रहते हैं, तो यह कांग्रेस के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। इससे यह साबित होगा कि लोगों में मोदी का जादू और भाजपा की नीतियां बेअसर हो रहीं हैं। दूसरी सबसे बड़ी चुनौती गुजरात की जीत होगी। क्योंकि गुजरात के जिस विकास मॉडल को आगे कर मोदी ने सत्ता हासिल की थी वहां कांग्रेस की विजय के साथ यह तिलस्म टूट जाएगा। मोदी के केंद्र में आने के बाद गुजरात में अब कोई करिश्माई नेता नहीं दिखता है। आनंदी बेन पटेल के बाद वहां दूसरे चेहरे को कमान सौंपी गई है। कहां गया भाजपा का कांग्रेस मुक्त का नारा? मई 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 11 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिनमें से छह महत्वपूर्ण राज्य हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। इन राज्यों में से दो यानी कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में है और बाकी चार - गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की सरकारें हैं। इनके इलावा नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और सिक्किम में चुनाव होंगे, लेकिन भाजपा और कांग्रेस की नजर ऊपर बताये छह राज्यों पर टिकी होंगी, क्योंकि ये सियासी तौर पर महत्वपूर्ण राज्य हैं। इन राज्यों में लोकसभा की कुल 123 सीटें हैं और विधानसभा की 994 सीटें। लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा के ये चुनाव एक तरह से सेमीफाइनल की तरह होंगे। साल खत्म होने से पहले हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को चुनाव है जबकि गुजरात में चुनाव की तारीख की घोषणा नहीं हुई है। चुनाव दिसंबर में होने की पूरी संभावना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इन छह राज्यों में होने वाले चुनावों के नतीजों का लोकसभा चुनाव पर भारी असर पड़ेगा। - दिल्ली से रेणु आगाल
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