01-Nov-2017 07:59 AM
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प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के बारे में यह प्रचलित है कि यह भ्रष्टों की पनाहगाह है। यही कारण है कि हर साल हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी प्रदेश के सरकारी अस्पताल मौतगाह बने हुए हैं। दरअसल, प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में सरकार हर सुविधा मुहैया कराने की कोशिश करती रहती है, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण अस्पताल सुविधाविहीन हो गए हैं। इस कारण प्रदेश में स्वास्थ्य की हालत चिंताजनक बनी हुई है। यहां अस्पतालों में न तो पर्याप्त दवाएं होती हैं और न ही चिकित्सक। ऐसे में जब डेंगू, मलेरियां और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों का मौसम आता है तो फिर लोगों को असमय ही काल के गाल में समा जाना पड़ता है।
अभी हाल ही में नेशनल वेक्टर बोन कंट्रोल प्रोग्राम की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि प्रदेश में किस तेजी से मरीजों की मौत हो रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वाइन फ्लू से होने वाली मौतों के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश का आंकड़ा आठ फीसदी ज्यादा है। इसमें बताया गया है कि अन्य राज्यों में एच.एन. के पॉजीटिव मरीजों की तुलना में मौत की दर दस प्रतिशत से भी कम हैं। जबकि मप्र में यह दर 18 प्रतिशत से ऊपर है। यह आंकड़े इंट्रीग्रेटेड
डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) ने जारी किए हैं।
आईडीएसपी द्वारा आंकड़ों का रिकार्ड 15 अक्टूबर तक का है। इसमें सर्वाधिक मौतें महाराष्ट्र में होना बताया गया है। हालांकि वहां स्वाइन फ्लू पॉजीटिव की संख्या 5881 है। लेकिन मप्र में पॉजीटिव केस केवल 758 हैं और इनमें मरने वालों की संख्या 133 दर्ज की गई है। इस तरह प्रतिशत के मामले में मप्र सबसे आगे है।
मप्र में एच.एन. की आक्रामकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां स्वाइन फ्लू से पीडि़त हर 6वें मरीज को अपनी जान से जाना पड़ा। जबकि स्वाइन फ्लू का सीजन अभी ठीक से आया भी नहीं है। क्योंकि एच.एन. वायरस सर्दी के साथ ज्यादा सक्रिय होता है। इसलिए कहा जा सकता है कि नवंबर से लेकर फरवरी तक के चार महीने काफी खतरनाक रहने वाले हैं। गांधी मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. निशांत श्रीवास्तव के अनुसार मप्र में स्वाइन फ्लू को लेकर जागरुकता की कमी है। यहां जब मरीज पूरी तरह से वायरस की जकड़ में आ जाता है तो अस्पताल पहुंचता है। इससे संदिग्ध केस की दर कम रह जाती है और पॉजीटिव की बढ़ जाती है। इनमें से अधिकतर को बचाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि वह बहुत चिंताजनक हालत में चिकित्सक के पास पहुंचते हैं। जबकि गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एक छींक आने पर भी मरीज स्वाइन फ्लू की जांच कराता है। इससे वहां पॉजीटिव केस आसानी से पकड़ में आ जाते हैं और उन्हें उपचार देकर बचा लिया जाता है। मप्र के अंदर यदि किसी शहर में स्वाइन फ्लू से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं तो उसमें भोपाल सबसे आगे है। यहां इस सीजन में अब 26 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि पॉजीटिव मरीजों की संख्या डेढ़ सौ से ज्यादा है। यह चिंताजन स्थिति है।
डेंगू से सबसे ज्यादा मौतें मध्यप्रदेश में
नेशनल वेक्टर बोन कंट्रोल प्रोग्राम की रिपोर्ट के अनुसार, देश में इस साल डेंगू से 51 मरीजों की जान गई है। हमारे लिए चिंता की बात इसलिए है, क्योंकि डेंगू से सबसे ज्यादा 12 मौतें मध्यप्रदेश में हुई हैं। प्रदेश में पॉजिटिव मरीजों की संख्या ओडिशा और केरल जैसे राज्यों से तीन गुना कम हैं, लेकिन मौत का आंकड़ा उससे ज्यादा है। ओडिशा में सर्वाधिक 5079 पॉजिटिव मरीज मिले हैं। वहां 9 लोगों की डेंगू से जान गई है। वहीं प्रदेश में पॉजिटिव मरीजों की संख्या 1400 है। इनमें से 12 की मौत हुई है, जिनमें 9 तो सिर्फ भोपाल के हैं। आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है, लेकिन सरकार इसकी पुष्टि नहीं कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में डेंगू का संक्रमण लगातार दूसरे साल बढ़ा है। बीते साल डेंगू के 1255 पॉजिटिव मरीज मिले थे। जिनमें से 9 मरीजों की मौत हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक डेंगू को कम करने के लिए मरीजों को पेरासीटामॉल का ओवर डोज दिया गया। इस दौरान डेंगू का मरीज इलाज के लिए नेशनल वेक्टर बोन कंट्रोल प्रोग्राम द्वारा जारी गाइडलाइन का भी पालन नहीं किया। इससे डेंगू का संक्रमण स्वास्थ्य विभाग की तमाम कोशिशों के बाद भी बढ़ता चला गया।
-सत्यनारायण सोमानी