मूक-बधिर बच्च्यिों से दुष्कर्म
31-May-2013 05:57 AM 1234995

मूक-बधिर बच्च्यिों से दुष्कर्मछत्तीसगढ़ में आदिवासी छात्राओं से बलात्कार की घटना की स्याही सूखी भी न थी कि राजस्थान में मूक-बधिर बच्चियों से बलात्कार का घिनौना प्रकरण सामने आया है। जयपुर के आगरा रोड़ पर रेसीडेंसियल स्कूल में बालिका गृह में रह रही उन मूक-बधिर बालिकाओं के चेहरे से ही दर्द टपकता है। प्रकृति ने उन्हें स्थायी तौर पर अपनी व्यथा कहने के योग्य नहीं बनाया। इसीलिए समाज का यह फर्ज बनता है कि उन बच्चियों को कोई पीड़ा ही न होने दे। लेकिन जिस समाज में दरिंदों की भरमार हो वहां किसी बच्ची के प्रति दया की उम्मीद कैसे की जा सकती है। बालिका गृह की इन मूक बधिर बच्चियों से पिछले एक वर्ष से बलात्कार किया जा रहा है। लेकिन उनके पास केवल आंसू थे। शब्द नहीं थे कि वे अपनी व्यथा किसी से कह सकें। कहती भी किससे जिन्हें यह बताया जाना था वे स्वयं ही अपराधी थे। आवाज फाउंडेशन, जो इस बालिका गृह का संचालन करती है, की संचालिका अल्पना दसवानी, वार्डन अशोक प्रजापति, क्लर्क सुरेश बैरवा और सहायक कर्मी गीता ये सब उन मासूम बच्चियों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे थे, जिन्हें प्रकृति ने सुनने और बोलने की क्षमता से वंचित कर रखा है। पीडि़त बच्चियों ने कई बार इन जिम्मेदार लोगों को आगाह करने की कोशिश की। संचालिका को कई बार इशारों में समझाया कि सुरेश बैरवा और वार्डन अशोक उनका यौन शोषण करते हैं, लेकिन संचालिका अल्पना दसवानी कानों में रुई डाली हुई थीं और आंखों पर पट्टी बांध ली थी। वह जानबूझकर इन मासूम बच्चियों की चीखों को अनदेखा कर रही थी। बच्चियों ने लिखकर बताया, इशारों से समझाया, खाना ठुकराकर विरोध जताया लेकिन उनके सारे उपाय बेकार गए। हद तो तब हो गई जब एक 16 वर्ष की बच्ची बलात्कार के कारण गर्भवती हो गई, लेकिन डॉक्टरों की मिली भगत और पैसों के बल पर उसका गर्भपात करवा दिया गया और उसे मुंह बंद रखने की धमकी दी गई।

आवाज तो प्रकृति ने पहले ही छीन ली थी, दरिंदों ने उसके जीने की उमंग ही छीन ली। वह अकेली नहीं थी। तमाम बच्चियां थीं जो उसकी ही तरह दिन ब दिन दरिंदगी सहने को विवश थीं पर कुछ कहना उनके वश में नहीं था, क्योंकि जिसे सुनना था वह संचालिका अल्पना दसवानी खुद इन सारे कुकर्मों में परोक्ष रूप से शामिल थीं। अशोक प्रजापति और सुरेश बैरवा का अल्पना दसवानी पर गहरा प्रभाव था। वे उसे अज्ञात कारणों से दबाकर रखते थे। लगभग 12 माह से पीड़ा भोग रही इन मासूम बच्चियों के रेप और उत्पीडऩ की जानकारी उस समय लगी जब वर्तमान सत्र समाप्त होने पर मूक-बधिर छात्राओं ने गांधी नगर स्थित समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित बालिका गृह पहुंचने पर काउंसिलिंग के दौरान अपनी आप बीती सुनाई। बाद में पुलिस हरकत में आई लेकिन राहुल गांधी के दौरे के कारण पुलिस ने भी उतनी तत्परता नहीं दिखाई। 15 से 17 मई तक काउंसिलिंग चलती रही। 18 मई को जब लगा कि घटना का भंडाफोड़ हो जाएगा और मीडिया की नजरों से इस घटना को बचाना संभव नहीं है तो देर रात कार्यवाही करते हुए आवाज फाउंडेशन की संचालिका सहित 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया। बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष राम प्रकाश बैरवा ने तो दोपहर में ही पुलिस को सूचना दे दी थी पर दोपहर से लेकर रात तक का समय क्यों लगाया गया यह समझ से परे है। किसके इशारे पर इन दरिंदों को बचाने का खेल खेला जा रहा था।
जयपुर के इस बाल गृह में 19 बालिकाएं रहती हैं। इन्हें समाज कल्याण विभाग की ओर जयपुर के बाहरी क्षेत्र में आगरा रोड़ पर चलने वाले एक आवासीय स्कूल में स्पीच थेरेपी के लिए भेजा गया था। छात्राओं के साथ 109 छात्रों को भी भेजा गया। लेकिन स्पीच थेरेपी तो दूर आवाज फाउंडेशन के दरिंदों ने बालिकाओं के साथ दुष्कर्म किया और विरोध करने पर मारपीट भी की। स्पीच थेरेपी का कोर्स पूरा होने के बाद जब ये बालिकाएं वापस समाज कल्याण विभाग के बालिका गृह में पहुंची तो कुछ की तबियत बिगड़ गई और काउंसिलिंग के दौरान उन्होंने अपना दर्द बयान किया। 12 से 17 वर्ष की ये बालिकाएं गुमशुम हो गई हैं। उनका बचपन छीन लिया गया है। सदमे के कारण वे बीमार पड़ गई हैं। पुलिस ने संचालिका अल्पना दासवानी, वार्डन अशोक प्रजापति, लिपिक सुरेश बैरवा, सहायक गीता, चौकीदार महेश को गिरफ्तार कर लिया है। इस मामले ने राज्य सरकार की लापरवाही की पोल भी खोल दी है। राजधानी में सरकार की नाक के नीचे छात्राओं से बलात्कार किया जाता रहा और जिम्मेदार लोगों को पता तक नहीं चला। वह तो दो लड़कियों ने हिम्मत जुटाई और आरोपियों के चेहरे पर पड़ा नकाब उतार दिया। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि 10 लड़कियों के साथ यौन शोषण किया गया है। 17 वर्ष की एक लड़की के साथ तो 8 बार दुष्कर्म किया गया। दरिंदगी की हद तो यह है कि जिन बेटियों ने बलात्कारियों का विरोध किया उनको जंजीरों में जकड़ दिया गया था। बहुत सी लड़कियों को भूखा भी रखा और तब ही खाना दिया गया जब उन्होंने बलात्कारियों की घिनौनी मांगों को स्वीकार कर लिया। इस मामले में भाजपा भी बैकफुट पर आ गई है। भाजपा के नेता और भाजपा शासन में मंत्री रहे मदन दिलावर से पुलिस पूछताछ कर रही है। समझा जाता है कि एनजीओ आवाज फाउंडेशन की संचालिका अल्पना दासवानी दिलावर की मुंह बोली बहन थी और शहर के बाहर चल रहे इस एनजीओ के फलने-फूलने में दिलावर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसी कारण भाजपा ने इस मामले से दूरी बनाए रखी। भाजपा के नेता मामले की भत्र्सना तो कर रहे हैं लेकिन खुलकर दिलावर के विरोध में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। सरकार ने हमेशा की तरह समिति गठित करके तमाम संस्थाओं की जांच पड़ताल शुरू कर दी है। प्रदेश भर के छात्रावासों पर अब नजर रखी जा रही है। देर से जागी सरकार ने सभी एनजीओ को जेजे ऐक्ट का पालन करने की हिदायत दी है। राज्य महिला आयोग भी हरकत में आया है। आयोग ने सवाल उठाया है कि लड़कियों के आवासीय स्कूल में पुरुष वार्डन और स्टाफ कैसे काम कर रहे थे।
प्रश्र तो यह भी उठता है कि शहर के अंदर संस्था का आवासीय स्कूल होने के बावजूद इन मासूम लड़कियों को 20 किलोमीटर दूर आवासीय स्कूल में भेजने की इजाजत आखिर सरकार ने क्यों दी। छत्तीसगढ़ में हुई घटना के बाद, जहां आदिवासी लड़कियों से महीनों तक बलात्कार किया जाता रहा, यह उम्मीद की जा रही थी कि कम से कम राजस्थान सरकार सबक लेते हुए विशेष कदम उठाएगी। पर ऐसा नहीं किया गया। किसी भी काउंसलर ने बच्चियों को चेक करने की जरूरत नहीं समझी। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया। बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष राम प्रकाश बैरवा ने भले ही इस मामले का भंडाफोड़ किया हो पर सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्यों उन बच्चियों से जाकर जानकारी नहीं ली गई। उनकी प्रोग्रेस नहीं देखी गई। वे कौन अधिकारी थे जिन्होंने बच्चियों को उस आवासीय स्कूल में भेजने से पहले आवासीय स्कूल का मुआयना करना उचित नहीं समझा। यदि पूरी सतर्कता बरती जाती तो उन मूक बधिर बच्चियों के साथ शायद यह दरिंदगी नहीं हो पाती,  पर सरकार और राजनीतिज्ञ दोनों ही सो रहे थे। उधर बच्चियों के साथ ज्यादती की जा रही थी। राजस्थान में ऐसे असुरक्षित स्कूलों की संख्या बहुत बड़ी है। राजस्थान ही नहीं बल्कि सारे देश में गंभीरता से जांच पड़ताल की जाए तो ऐसे कई आवासीय स्कूल मिल जाएंगे, जहां रहने वाली छात्राएं एक न एक बार यौन उत्पीडऩ से जरूर गुजरती हैं, किन्तु लोकलाज के डर से उनके माता पिता मौन साधे रहते हैं। जयपुर में जिन बच्चियों के साथ बलात्कार किया गया उनमें से बहुत सी ऐसी भी हैं जो अनाथ हैं जिनके माता पिता के विषय में कोई जानकारी नहीं है। जरा कल्पना कीजिए ये बेटियां अपनी व्यथा किसे सुनाएंगी और कौन उनके घावों पर मरहम लगाएगा? देश भर में इस तरह की घटनाएं घटती जा रही हैं, पर अभी भी कोई प्रभावी कानून छात्रावासों के लिए बना नहीं है। कई छात्रावास असुरक्षित हैं और केवल पैसे कमाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं, लेकिन सरकार को इसकी खबर नहीं है। यह पहली घटना नहीं है इससे पहले भी देशभर में छात्रावासों में छात्राओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं। हरियाणा के रोहतक जिले में अपना घर नामक शेल्टर होम में लड़कियों के साथ शराब पिलाकर बलात्कार किया जाता था। इसमें 101 बच्चे रहते थे जिनके साथ घृणित हरकतें की गई। राजस्थान के टोंक जिले में स्थित वनस्थली विद्यापीठ में दो छात्राओं के साथ कथित दुष्कर्म की घटना वर्ष 2012 में अक्टूबर माह में प्रकाश में आई थी। बाद में यह मामला रफा-दफा कर दिया गया। मार्च 2012 में बिहार शरीफ के उर्दू मध्य विद्यालय के उत्प्रेरण केंद्र में छात्राओं के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया था। इसमें 10 वर्षीय छात्रा सहित कई अन्य लड़कियों के साथ उत्प्रेरण केंद्र की एक शिक्षिका के रिश्तेदार रवि कुमार ने दुराचार किया। दिल्ली में इंद्रपुरी थाना के अंतर्गत आर्य कन्या गुरुकुल की अनाथ और गरीब छात्राओं के साथ गुरुकुल के केयर टेकर द्वारा यौन शोषण का मामला सामने आया था। जबलपुर के मेडिकल कॉलेज सेक्स स्कैंडल को भले ही भुला दिया गया हो लेकिन यह भी इसी तरह का मामला था जब परीक्षा में पास कराने के लिए लड़कियों पर हम बिस्तर होने का दबाव डाला गया। इसमें उप कुलसचिव रवींद्र सिंह काकोडिय़ा सहित कई बड़े जिम्मेदार लोग गिरफ्तार हुए। किस्मत के बदले अस्मत का सौदा करने वालों ने बिल्डर, व्यापारी, राजनेता, पुलिस अधिकारी और कारोबारी भी शामिल थे। मार्च 2011 में नवी मुंबई के पनवेल में एक बड़े सेक्स स्कैंडल का खुलासा हुआ था यह मानसिक रूप से पीडि़त लड़कियों के आश्रम में यौन शोषण की घटनाओं के विषय में था। बाद में मेडिकल चेकअप में भी दुराचार की पुष्टि हुई किंतु किसी का कुछ नहीं बिगड़ा अपराधी खुल्ले घूम रहे हैं।

 

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