16-Apr-2013 09:27 AM
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ट्यूनीशिया की राजधानी तूनिस में जब अमीना नाम की एक महिला ने अपने वक्ष उघाड़कर आजादी का एलान किया तो उसे दूसरे संदर्भ में गृहण किया गया। अमीना का कहना था कि उसे जो पसंद आएगा वही वह पहनेगी। पहनने, खाने, ओढऩे, पढऩे अपने तरीके से जीने की आजादी हर औरत का बुनियादी हक है और दुनिया का कोई भी मजहब उसे इन हक से वंचित नहीं करता ये तो मजहबी किताबों का गलत अर्थ निकालने वालों ने इस तरह के कानून बना दिए हैं कि औरत पर्दे में रहेगी तो मर्द खुला घूमता रहेगा। परिस्थितियों के कारण भी कई बार औरतें पर्दे के पीछे धकेली गईं। क्योंकि उन्हें कमजोरी समझा गया। युद्ध होने पर औरतों को बंदी बना लिया जाता था उन्हें सेक्स गुलाम की तरह प्रस्तुत किया जाता था उनके साथ बलात्कार होते थे। शायद इसी वजह से भय के कारण या औरत को अतिरिक्त सुरक्षा देने के कारण उसे पर्दे में रखा जाने लगा। लेकिन अब भय नहीं है। दुनिया में जंगल राज लगभग खत्म हो चुका है। अब उस तरह की लड़ाइयां नहीं हुआ करतीं संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं अस्तित्व में आ चुकी है और माहौल बदला हुआ है इस बदलते माहौल में औरत मुकम्मल आजादी मांग रही है। वैसी आजादी जिसमें, उसे सही तरीके से जीने का हक मिले आजादी केवल मनचाहे कपड़े पहनने की न हो बल्कि आर्थिक आजादी भी हो वह अपने निर्णय स्वयं कर सके। लेकिन दुनिया के एक बड़े हिस्से में आज भी औरत इस मुकम्मल आजादी से महरूम है। यह बात अलग है कि वह बड़ा हिस्सा किस मजहबी तहजीब को मानता है। लेकिन यह तय है कि सारे मजहबों में औरत को पीछे धकेलने की साजिश बदस्तूर जारी है। यही कारण है अमीना को सारी दुनिया से हौंसला मिला उसके पक्ष में दुनिया उठकर खड़ी हो गई। दुनिया के बहुत से देशों में औरतों ने अपने वस्त्र उतार फेंके और प्रतिकात्मक प्रदर्शन किया। जाहिर सी बात है इन प्रदर्शनों ने कट्टरपंथियों को चुनौती दी है। कट्टरपंथियों को चुनौती मिलना अनिवार्य है।
ट्यूनीशिया में जब अमीना ने कट्टरपंथियों की नैतिकता को चुनौती देते हुए कहा था कि फक योर मुराल तो इसका अर्थ यह नहीं था कि वह अपने कपड़े उतारना चाहती थी बल्कि वह नैतिकता के नाम पर औरतों को ऊपर थोप दी गई एक तरफा बंदिशों की मुखालफत कर रही थी। अमीना का यह कृत्य सारी दुनिया के फंडामेंटलिस्ट और कट्टरपंथियों को चुनौती है। लेकिन इसे जोड़कर देखा गया इस्लाम से और यह कहा गया कि अमीना इस्लामी कट्टरपंथ को चुनौती दे रही है। जब भी बात कट्टरपंथ की उठती है तस्वीर कुछ ऐसे खींची जाती है मानो कट्टरपंथ केवल इस्लामी जगत की बपौती है। बाकी मजहब तो जैसे बहुत साफ-सुथरे हैं। लेकिन इस एकतरफा विचार को प्रेरित करने वाले यह नहीं जानते कि सभी मजहबों में महिलाओं की दुर्गति है। कहीं पर वह दहेज के लिए जलाई जा रही है, कहीं उसे भाई और पिता द्वारा स्वेच्छा से विवाह करने पर गले में पत्थर बांधकर पति सहित नहर में फेंक दिया जाता है। कहीं खाप पंचायतें उसके उस प्रेमी को उसका भाई घोषित कर देती हैं। जिससे उसे एक बच्चा भी है। कहीं उसे गर्भपात की इजाजत नहीं है क्योंकि इसाई कानूनों में ऐसा वर्जित है। लिहाजा वह गर्भ की विकृति का इलाज कराने से पहले ही दम तोड़ देती है। कहीं उसे स्कूल जाते में रोका जाता है, गोली मारी जाती है और लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगाई जाती है।
मलाला जैसी इन लड़कियों की कहानी भी तो आखिर उसी कट्टरपंथ के कारण दुनिया के सामने आई है। इसलिए किसी एक मजहब से इस कट्टरपंथ को जोडऩा सारी औरत जाति के प्रति अन्याय करने के समान है। ट्यूनीशिया की आग सारी दुनिया में फैल रही है तो उसका कारण केवल इतना ही है कि सारी दुनिया की महिलाएं कट्टरपंथ के कारण भेदभाव का शिकार हैं, वे अवसरों से वंचित हैं और आर्थिक असमानता का सामना करती हैं। इसी कारण अमीना को विश्व व्यापी समर्थन मिला। फ्रांस में महिलाओं ने अर्धनग्न होकर विरोध जताया। ब्राजील, अमेरीका जैसे देशों में प्रदर्शन हुए, ब्रिटेन में महिलाओं ने टॉपलेस होकर विरोध प्रकट किया। लेकिन इसके बाद भी कट्टरपंथी झुके नहीं हैं। अगर अमीना पर आरोप तय किये जाते हैं तो उसे कम से कम दो साल की जेल हो सकती है। इसके अतिरिक्त 100 से 1000 तक का आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
अमीना ने जब टॉपलेस होकर विरोध प्रकट किया तो उसे इस्लामी कानूनों के मुताबिक पत्थर मारकर संगसार करने की मांग उठी। अरब देशों में आज भी ऐसी घटनाएं देखी जा सकती हैं। कुछ दिन पहले ही एक महिला को तालिबान ने बीच बाजार में गोली मार दी थी क्योंकि उसने किसी पुरुष को साथ लिए बगैर घर से बाहर निकलने की हिमाकत की थी। बहुत से देशों में इस तरह की बर्बर सजाएं प्रचलन में हैं। आंख के बदले आंख, हाथ के बदले हाथ। पाकिस्तान की मुख्तारन माई को भला कौन भूल सकता है। जिसके साथ पंचायत के फरमान पर बलात्कार किया गया था। क्योंकि उसके भाई ने किसी दूसरे कबीले की लड़की के साथ जिस्मी ताल्लुकात स्थापित कर लिए थे। सारे बर्बर कानूनों का निशाना औरत ही होती है। भारत में ही कई राज्यों में औरत की संपत्ति हड़पने के लिए उसे डायन घोषत कर दिया जाता है। उसके साथ बलात्कार किया जाता है और उसे यातना दी जाती है। इस तरह की घटनाएं जब हद से बढ़ जाती हैं तो अमीना जैसी औरतें नग्न प्रदर्शन करती हैं। पूर्वोत्तर में महिलाओं का नग्न प्रदर्शन अभी भी लोगों के जेहन में है। अमीनाएं सारी दुनिया में ऐसे ही कष्ट भोग रही हैं।
मंजू सिंह