01-Nov-2017 07:56 AM
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कुछ साल पहले तक गुजरात की राजनीति के शिखर पर रहे नरेंद्र मोदी को अब अपने ही राज्य में साख बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आलम यह है कि अब तो पीएम की सभाओं में न केवल कुर्सियां खाली दिख रही हैं बल्कि विभिन्न समुदाय भी भाजपा के खिलाफ होते जा रहे हैं। क्योंकि विकास जिस तरह से गुजरात में हंसी का पात्र बन गया है, उससे ये कहा जा सकता है कि चुनाव की अंगीठी पर इस पुरानी हाड़ी का चढऩा अब बहुत मुश्किल है और इस तरह कोई कोशिश किसी तरह के लाभ की जगह नुकसान ज्यादा पहुंचाएगी।
गुजरात में विधानसभा चुनाव का मतदान दो चरणों में 9 और 14 दिसंबर को होंगे। चुनाव के नतीजे 18 दिसंबर को घोषित किये जायेंगे। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद ये पहला मौका होगा जब किसी राज्य में शासन कर रही भाजपा सरकार को विरोधी लहर के बीच अपनी सत्ता बचाने के लिए भारी दबाव रहेगा। 2019 में लोकसभा चुनाव होना है और उससे पहले अगर भाजपा गुजरात में फिर से सत्ता में आ जाती है तो न केवल मोदी बल्कि उनके विकास मॉडल की भी जीत होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दोनों का गृहराज्य होने के कारण भी यहां पर भाजपा की साख जुड़ी हुई है।
2014 के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव उनके राज्य में होने जा रहा है, जाहिर है चुनौती काफी अधिक है। गुजरात में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और 2014 के बाद पहला मौका होगा जब भाजपा अपने बहुमत वाले राज्य में चुनाव लड़ेगी बिना किसी सहयोगी दलों का साथ लेकर। गुजरात के चुनावी समर को भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट ही कहा जायेगा क्योंकि यहां पर ब्रांड मोदी की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता दांव पर लगी है। विपक्ष सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर खासकर रोजगार, नोटेबंदी, जीएसटी आदि मुद्दों पर मोदी पर डायरेक्ट अटैक कर रहा है। सरकार की आर्थिक नीतियों का भी लिटमस टेस्ट इस बार के गुजरात चुनाव में देखने को मिलेगा और अगर जनता भाजपा के पक्ष में अपना वोट देती है, तो इसे मोदी की नीतियों की भी जीत मानी जाएगी। गुजरात, व्यापारियों और कारोबारियों के लिए बहुत बड़ा गढ़ है। जीएसटी को लेकर यहां पर विरोध भी हुआ था और ऐसे में गुजरात का रिजल्ट पूरे भारत के व्यावसायिक और कारोबारी समुदाय के लिए बहुत बड़ा मैसेज होगा।
गुजरात के पटीदार, दलित और ओबीसी समुदाय सरकार से नाराज चल रहे हैं। कांग्रेस से लेकर अन्य दल इनकी नाराजगी को लुभाने की कोशिश कर रहे है। अगर जनता का मैंडेट भाजपा के साथ जाता है तो एक मैसेज ये भी जायेगा की मोदी के विकास का एजेंडा जाति समीकरणों पर भारी पड़ा। अभी तक के इलेक्शन सर्वे के नतीजों से यह लग रहा है की भाजपा गुजरात में भारी बहुमत से विजय पायेगी। अगर ऐसा होता है तो राष्ट्रीय लेवल में कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। कांग्रेस के रिवाइवल (पुनरुत्थान) का सपना धरा का धरा रह जायेगा और मोदी को 2019 लोकसभा चुनाव जितने से कोई नहीं रोक पायेगा, लेकिन देखने में यह आ रहा है कि मोदी और शाह जब अपने घर में खारिज होने लगे हैं। तब उन्हें मजबूरन अपनी पार्टी के दूसरे नेताओं का सहारा लेना पड़ रहा है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी का रोड शो हो या फिर भरूच में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभा दोनों इसी के हिस्से के तौर पर देखे जा रहे हैं। यह गुजरात में मोदी-शाह युग के खत्म होने का संकेत तो नहीं है।
कांग्रेस के हाथÓ का खिलौना बन गए हार्दिक
गुजरात में बीते दो दशक से कांग्रेस की दाल नहीं गल रही है। चालीस साल तक राज करने वाली कांग्रेस की गत ये है कि वो स्थानीय चुनाव तक जीतने में भी सफल नहीं हो रही है। ऐसे में फूट डालो और राज करोÓ की राजनीति को कांग्रेस ने फिर से अपनी जीत का आधार बनाने की ठानी है। पिछले दो दशक से राज्य का पटेल समुदाय भाजपा का परम्परागत वोटर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह समुदाय अपने स्वाभिमान से जोड़कर देखता है, लेकिन कांग्रेस की राजनीति के कारण ही गुजरात में मजबूत पाटीदार समुदाय को कमजोर करते हुए आरक्षण जैसी मांग के आसरे कुत्सित राजनीति की आग में धकेल दिया गया है। वहीं हार्दिक पटेल कांग्रेस के हाथ का खिलौना बन गए हैं। कभी कांग्रेस का विरोध करने वाले हार्दिक पटेल अब भाजपा विरोध के नाम पर कांग्रेस से हाथ मिलाने जा रहे हैं।
-बिन्दु माथुर