17-Oct-2017 08:41 AM
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गुजरात में भाजपा के लिए अनुकूल माहौल नजर नहीं आ रहा है। इसकी वजह है सरकार की पुअर परफार्मेंस। ऐसे में पार्टी को मझधार से निकालने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल का सहारा लेने की तैयारी हो रही है। यानी पूर्व मुख्यमंत्री और नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाने वाले आनंदीबेन पटेल एक बार फिर गुजरात चुनाव के जरिये सक्रिय राजनीति में दोबारा एंट्री लेंगी। माना जा रहा है कि गुजरात में आज के समय में जिस तरह के नेतृत्व की कमी है उसमें आनंदीबेन अगर भाजपा चुनाव जीतती है तो दोबारा मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार हो सकती हैं। आनंदीबेन और अमित शाह के बीच चल रहे अंदरूनी युद्ध के बीच नरेन्द्र मोदी की मध्यस्थता में सुलह करवाने की बात सामने आ रही है।
दरअसल नरेन्द्र मोदी ने अमित शाह को कहा है कि उन्हें गुजरात चुनाव में आनंदीबेन पटेल को साथ लेकर चलना है। इसके कारण पिछले दिनों आनंदीबेन और अमित शाह के बीच मीटिंग भी हो चुकी है। पाटीदारों की नाराजगी भाजपा के लिये इन दिनों सब से बड़ा सरदर्द बनी हुई है। ऐसे में अमित शाह भी अब चाहते हैं कि पाटीदार नेता आनंदीबेन पटेल से सुलह कर पाटीदारों के मुद्दों पर बात कर इस मसले को सुलझाया जाये। आनंदीबेन ओर अमित शाह की दुश्मनी आज कल की नहीं है। ये 20 साल पुरानी दुश्मनी है, जो तब खुलकर सामने आयी जब आनंदीबेन पटेल ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन में पाटीदार पर पुलिस के दमन के बाद अपना इस्तीफ़ा पेश किया था। तब आनंदीबेन चाहती थी कि उनके इस्तीफे के बाद नितिन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया जाये, लेकिन अमित शाह और आनंदीबेन के झगड़े के चलते अमित शाह ने विजय रुपानी को मुख्यमंत्री पद दे दिया।
आनंदीबेन ने कहा थी कि- मैं इस्तफे के बाद भी कहीं गवर्नर बनकर नहीं जाऊंगी और न ही गुजरात की राजनीति को छोडूंगी। हालांकि आनंदीबेन पटेल के गुजरात की राजनीति में एक बार फिर सक्रिय होने की बात पर तब मोहर लगी थी, जब भाजपा ने अपने 75 साल के ऊपर के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में रखने के नियम में बदलाव किये थे। भाजपा ने कुछ वक्त पहले ये फैसला लिया था की अगर नेता की अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ है तो उसे भाजपा 75 की उम्र के बावजूद टिकट देगी। तब ही ये माना जा रहा था कि आनंदीबेन एक बार फिर गुजरात में चुनाव लड़ेगी।
अमित शाह और आनंदीबेन पटेल के बीच हुई मीटिंग कहीं ना कहीं ये इशारा कर रही है कि एक बार फिर गुजरात चुनाव में आनंदीबेन अहम भूमिका में लोगों को दिखेंगी। दरअसल, गुजरात में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की यात्रा के बाद आई रिपोर्ट से भाजपा परेशान है। इसलिए प्रधानमंत्री को गुजरात का दौरा करना पड़ रहा है। गुजरात दौरे के दौरान राहुल गांधी को देखकर लगा कि वो कई मायनों में पीएम मोदी से सीख कर उनके ही गढ़ में उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। गुजरात में 2003, 2007 और 2012 में लगातार तीन चुनावों में हार का मुंह देखने के बाद अब कांग्रेस जीत की आस कर रही है। हाशिए पर जाती कांग्रेस पार्टी के लिए गुजरात चुनाव में जीत संजीवनी बूटी की तरह काम करेगी। वहीं हार उन्हें और गर्त में ढकेल देगी।
राहुल ने बढ़ाई मुश्किलें
दरअसल, गुजरात में राहुल गांधी की सक्रियता ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। राहुल गांधी प्रचार के लिए जहां भी गए वहां उन्होंने लोगों से बातचीत करने और उन्हें अपने साथ जोड़े रखने की नीति अपनाई। किसानों, छात्रों और व्यवसायियों से बात करते समय राहुल गांधी ने वही किया जो पीएम मोदी अपने सार्वजनिक भाषणों में करते हैं। वो सवाल करते हैं और लोगों को अपना गुस्सा जाहिर करने का मौका देते हैं। राहुल गांधी ने भी यही किया। उन्होंने लोगों से लगातार सवाल किया- विकास को क्या हो गया है? जनता ने पूरे गुस्से और जोश में जवाब दिया- विकास गांडो थयो छे (विकास पागल हो गया है)। भाजपा की चिंता का कारण यही नारा है।
-ऋतेन्द्र माथुर