नेताओं की ताजपोशी
01-Nov-2017 07:32 AM 1234785
प्रदेश में सरकार इन दिनों मनमाने फैसले ले रही है। हाल ही में ऐसा ही एक फैसला राज्य की सहकारी संस्थाओं में नियुक्त होने वाले प्रशासकों को लेकर किया गया है। खास बात यह है कि सरकार ने इस फैसले को लागू करने के लिए अगले माह होने वाले विधानसभा सत्र का भी इंतजार करना मुनासिब नहीं समझा। सरकार इसे लागू करने की इतनी जल्दी में है कि उसने इसके लिए अध्यादेश लाकर कानून को प्रभावी कर दिया। यह नया कानून है मप्र सहकारी सोसायटी संशोधन अध्यादेश 2017। यह प्रदेश में 16 अक्टूबर से प्रभावी हो गया है। इसी के साथ सहकारी संस्थाओं में प्रशासक पद के लिए अब नेताओं की ताजपोशी के लिए दरवाजे खोल दिए गए हैं। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने दो वर्ष पहले इस तरह के प्रावधान पर बंदिश लगा दी थी। जिसकी वजह से नेता प्रशासक पद पर काबिज नहीं हो पा रहे थे। इससे सहकारिता के क्षेत्र में सक्रिय नेताओं में नाराजगी बढ़ रही थी। अब प्रदेश में अगले साल विधानसभा के आम चुनाव होने हैं, ऐसे में सरकार अब इस क्षेत्र में काम करने वाले नेताओं को खुश करने की कवायद में जुट गई है। अध्यादेश में जो प्रावधान किया है, उस हिसाब से तृतीय श्रेणी से अन्य श्रेणी का कोई शासकीय सेवक अथवा सोसायटी अथवा उसी वर्ग की सोसायटी के संचालक मंडल के सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए पात्र कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन सोसायटी के कारोबार के संचालक के लिये रजिस्ट्रार द्वारा प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया हो, जो रजिस्ट्रार के नियंत्रण तथा मार्गदर्शन के अधीन कार्य करेगा। इस अध्यादेश से साफ है कि सोसायटी में प्रशासक शासकीय सेवक भी नियुक्त हो सकता है, जो कि किसी भी कीमत पर तृतीय श्रेणी वर्ग से नहीं होगा। यानी द्वितीय श्रेणी का अधिकारी इस पद पर काबिज हो सकता है। यहां तक तो ठीक था, लेकिन सरकार ने यह भी प्रावधान कर दिया है कि सोसायटी चुनाव के लिए यदि कोई व्यक्ति पात्रता रखता है, तो ऐसे व्यक्ति को भी उस सोसायटी में प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि यह प्रशासक रजिस्ट्रार के अधीन कार्य करेगा। इसके लिए मप्र सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 को संशोधित किया गया है और मप्र सहकारी सोसायटी संशोधन अध्यादेश 2017 के रूप में प्रदेश में प्रभावी कर दिया गया है। दो वर्ष पहले राज्य सरकार ने पहले के प्रावधान को बदल दिया था, जिससे सहकारी बैंकों में राजनीति से जुड़े लोगों के प्रशासक बनने पर रोक लग गई थी। पहले के प्रावधान के तहत निर्धारित समय बीत जाने के बाद यदि सहकारी संस्था का चुनाव नहीं होता था तो शासकीय सेवक को रजिस्ट्रार के अधीन प्रशासक बनाया जा सकता था, लेकिन अब पात्रता वाले नेता भी प्रशासक बन सकेंगे। कांग्रेस सरकार के इस कदम को तानाशाही बताकर विधानसभा सत्र में इसके विरोध की तैयारी कर चुकी है। सहकारिता की आत्मा मर गई पूर्व सहकारिता मंत्री भगवान सिंह यादव कहते हैं कि यह अध्यादेश सरकार इसलिये लाई है, क्योंकि वह चुनाव न कराकर आरएसएस के लोगों को सहकारी संस्थाओं में प्रशासक बनाना चाहती है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से हमारी बात हुई है, उन्होंने आश्वस्त किया है कि विस सत्र में जब यह विधेयक आएगा तो कांग्रेस इसका पुरजोर विरोध करेगी। इससे सहकारिता की आत्मा मर गई है। दरअसल इस वक्त पांच साल से चौदह जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में चुनाव नहीं हो सके हैं। इनमें जबलपुर, पन्ना, सिवनी, रीवा, शहडोल, सीधी, छतरपुर, टीकमगढ, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, राजगढ़, गुना और देवास शामिल हैं। दूसरी ओर शीर्ष संस्था अपेक्स बैंक, आवास संघ, अपेक्स यूनियन, उपभोक्ता संघ, मत्स्य महासंघ तथा औद्योगिक सहकारी संघ में भी बरसों से चुनाव नहीं हुए हैं। सरकार इन्हें टाल रही है, अब अशासकीय व्यक्तियों को प्रशासक बनाने का जो प्रावधान किया है, उसके तहत अशासकीय व्यक्ति को राज्य सरकार ही नियुक्त करेगी। मप्र सहकारी सोसायटी संशोधन अध्यादेश 2017 को अब विधेयक के रूप में विस के अगले सत्र में पेश किया जाएगा। नियमों के तहत यदि राज्य सरकार कोई अध्यादेश लागू करती है, तो उसे विस के अगले सत्र में ही इस संबंध में विधेयक पारित कराना होता है। -नवीन रघुवंशी
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