01-Nov-2017 07:35 AM
1234898
मप्र में कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई योजनाएं चला रखी हैं। इसी कड़ी में किसानों को कृषि उपज का उचित मूल्य प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा भावांतर भुगतान योजना लागू की गई है। योजना का शुभारंभ 16 अक्टूबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सागर जिले से की थी। इसके तहत अब अंतर के भुगतान की राशि सीधे किसानों के खाते में पहुंचेगी। यह योजना किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए लागू की गई है। योजना में खरीफ-2017 में सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द एवं तुअर की फसलें शामिल की गई हैं। इन फसलों के लिए जो भी उचित मूल्य होगा उनके आधार पर भुगतान किया जाएगा।
लेकिन यह योजना लागू होते ही व्यापारियों ने उपज के रेट कम कर दिए, नतीजा ये हुआ कि किसानों को योजना से पहले जितना पैसा मिल रहा था अब उतना भी नहीं मिल रहा है। किसानों को 16 अक्टूबर यानि योजना लागू होने से पहले जो भाव मिल रहा था अब वो भी नहीं मिल पा रहा है। किसानों के मुताबिक 16 अक्टूबर यानि भावांतर योजना लागू होने से पहले उन्हें सोयाबीन का प्रति क्विंटल भाव 2800 रुपए मिल रहा था, लेकिन योजना लागू होने के बाद व्यापारी 2200 से 2300 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा देने के लिए तैयार नहीं हैं। जिसके कारण प्रति क्विंटल 500 रुपए तक नुकसान हो रहा है। इसी तरह व्यापारियों ने दाल और अन्य फसलों के भाव भी गिरा दिए हैं। किसानों का कहना है कि भावांतर का पैसा कब मिलेगा और कितना मिलेगा पता नहीं, लेकिन फौरी तौर पर किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। किसानों को जानकारी नहीं है कि पैसा खातों में कब आएगा। सरकार के ऐलान के उलट किसान को कैश मिलने में भी भारी परेशानी हो रही है। ऐसे में किसान बेहद गुस्से में हैं। व्यापारी ये बात मान रहे हैं कि रेट कम हुए हैं। व्यापारियों का कहना है कि इसमें उनका कोई कसूर नहीं है। वो जिन लोगों को फसल बेचते हैं उन्होंने रेट गिरा दिए जिससे मजबूरी में व्यापारियों को भी रेट गिराने पड़े।
हालांकि भावांतर योजना के तहत किसानों की फसल कम रेट में खरीदने का जैसे ही मामला सामने आया सरकार सचेत हो गई। राज्य कृषि विपणन बोर्ड ने भावान्तर भुगतान योजना के क्रियान्वयन में लापरवाही का संज्ञान लेकर दो मंडी सचिवों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कृषि उपज मंडी भोपाल के सचिव विनय पटेरिया और प्रभारी सचिव कृषि मंडी खिलचीपुर रवीन्द्र कुमार शर्मा को जारी नोटिस का जवाब 8 दिवस में देने को कहा गया है। इसी तरह मंडी समिति खिलचीपुर द्वारा मंडी में किसानों की फसल को मनमाने भाव पर खरीदने वाले व्यापारियों को नोटिस जारी किया गया है। इन व्यापारियों में मेसर्स गोपाल प्रसाद/गोकुल प्रसाद, मेसर्स साहू ट्रेडर्स, मेसर्स रामगोपाल भंवरलाल, मेसर्स पवन कुमार अरविन्द कुमार शामिल है। इसके अलावा भोपाल की करोंद मंडी समिति द्वारा मेसर्स कुबेर सिंह भगवान दास, मेसर्स जमना ट्रेडर्स, मेसर्स आयुसी ट्रेडर्स, मेसर्स संजय ट्रेडर्स, मेसर्स वैभव ट्रेडर्स और मेसर्स सांवलदास ट्रेडर्स को किसानों की उपज की मनमानी कीमत पर खरीद के संबंध में नोटिस जारी किया गया है।
कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा कहते हैं कि भावांतर भुगतान योजना में पंजीकृत किसानों द्वारा कृषि उपज मंडियों में किये जा रहे क्रय-विक्रय की जानकारी प्रतिदिन पोर्टल पर दर्ज कर सतत समीक्षा और निगरानी की जा रही है। इसके लिये मंडी बोर्ड में कृषि विशेषज्ञ, मंडी अधिकारियों तथा आईटी विशेषज्ञों की टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो प्रत्येक मंडी के प्रत्येक भाव का भावांतर भुगतान योजना में अपलोड किये जा रहे डाटा की सघन और सूक्ष्म समीक्षा कर रहे हैं। इस कार्य के लिये डाटा निगरानी अधिकारी भी नियुक्त किये गये हैं।
सरकार की तमाम सतर्कता के बाद भी प्रदेश में भावांतर भुगतान योजना के तहत शुरू हुई खरीदी में व्यापारी और किसानों के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। भोपाल, राजगढ़, गुना, आगर-मालवा, नरसिंहपुर के बाद अब विदिशा और हरदा में विवाद सामने आए हैं। इसका कारण व्यापारियों द्वारा औसत दर से कम पर खरीदी करने के साथ नकद भुगतान नहीं किया जाना माना जा रहा है। उधर, सरकार को उड़द की खरीदी में गड़बड़ी की भी आशंका है। इसके मद्देनजर पांच जिलों की 14 मंडियों पर नजर रखने के निर्देश टास्क फोर्स को दिए गए हैं। तिल को छोड़कर भावांतर भुगतान योजना में शामिल सभी सातों फसलों के भाव समर्थन मूल्य से 300 रुपए से लेकर 3000 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक कम चल रहे हैं। अभी तक 35 से 36 हजार सौदे सोयाबीन के हुए हैं। इनमें औसत 26 रुपए प्रति क्विंटल का भाव किसानों को मिला है। राजस्थान सहित अन्य राज्यों में भी यही भाव चल रहे हैं। उड़द को लेकर सबसे ज्यादा समस्या है। इसका औसत भाव प्रति क्विंटल 2 हजार 550 आ रहा है, लेकिन खरीदी इससे काफी कम भाव पर हो रही है। सागर, विदिशा, रायसेन, गुना और नरसिंहपुर की 14 मंडियों में उड़द की खरीदी 16 सौ 98 रुपए से लेकर 23 सौ 78 रुपए क्विंटल तक हुई है। इसे देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि यहां व्यापारी कहीं किसानों के साथ खेल तो नहीं कर रहे हैं। इसके मद्देनजर कृषि विभाग ने इन सभी मंडियों पर विशेष नजर रखने के निर्देश टास्क फोर्स को दिए हैं।
उधर, सरकार की ओर से बार-बार समझाइश दिए जाने के बावजूद ज्यादातर व्यापारी नकद भुगतान करने के लिए तैयार नहीं है। 10 से 20 हजार रुपए ही नकद दिए जा रहे हैं। इसके बाद सौदे की बाकी रकम एक माह बाद की तारीख के चेक के जरिए दी जा रही है। आष्टा मंडी ही ऐसी है, जहां पचास हजार रुपए तक नकद भुगतान हो रहा है। इसके मद्देनजर कृषि विभाग ने निर्देश दिए हैं कि व्यापारियों से भुगतान के मामले में मंडी एक्ट का पालन कराया जाए। इसमें चेक से भुगतान का प्रावधान ही नहीं है। आरटीजीएस के माध्यम से सीधे किसान के खाते में रकम डालने की व्यवस्था है। आयकर विभाग के नकद लेन-देन से जुड़े प्रावधान भी मंडी और व्यापारियों को भेजे जा रहा है।
सरकार ने इस योजना के तहत हो रही बिक्री की पूरी चौकसी बढ़ा दी है, लेकिन ऐसा कोई दिन नहीं है जब प्रदेश की मंडियों मेंं किसानों और व्यापारियों के बीच झड़प न हो रही हो। आलम यह है कि कई मंडियों में पुलिस का पहरा लगा दिया गया है। फिर भी व्यापारियों की मनमानी, नगद भुगतान पर 50 रुपए प्रति क्विंटल तक कम कर रहे मूल्य के कारण किसान परेशान हैं और उसे आगे भी राहत मिलने की संभावना नजर नहीं आ रही है।
अपंजीकृत किसानों को होगा चार सौ तक का घाटा
कठिन प्रक्रिया और जानकारी के अभाव में प्रदेश के लाखों किसान अब भी भावांतर योजना के तहत अपना पंजीयन नहीं करा सके हैं। जिसकी वजह से पंजीयन से वंचित रहे किसानों को अब अपनी फसल बेचने पर योजना का लाभ नहीं मिलेगा और उन्हें प्रति क्विटंल करीब ढाई सौ रुपए से लेकर चार सौ रुपए तक का नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि अभी यह तय नहीं हुआ है कि किसी फसल के लिए कितनी राशि का भुगतान किस दर पर किया जाएगा। गौरतलब है कि देश में पहली बार मप्र में भावांतर योजना लागू की गई है। योजना इसी महीने 16 अक्टूबर से प्रदेश भर में एक साथ लागू की गई है। इसके नफे व नुकसान के गणित पर लगातार काम चल रहा है। हालांकि अभी यह तय नहीं हो पाया है कि किस जिंस के लिए भावांतर का लाभ कितना होगा। सोयाबीन के लिए महाराष्ट्र व राजस्थान, मूूंगफली के लिए गुजरात व राजस्थान, तिल के लिए उड़ीसा व छत्तीसगढ़, मक्का के लिए कर्नाटक व महाराष्ट्र, उड़द के लिए राजस्थान व उत्तर प्रदेश, तुअर के लिए महाराष्ट्र व गुजरात में चल रहे रेट के आधार पर मॉडल रेड तय कर भावांतर की गणना की जाएगी। इसके लिए अलग-अलग समय तय किए गए हैं। उदाहरण के लिए सोयाबीन यदि महाराष्ट्र में 2300, राजस्थान में 2200 रुपए में बिक रही है और मप्र में इसकी कीमत 15 सौ से 2700 है तो तीनों राज्यों के औसत के मॉडल रेट मानकर उसी अनुसार भावांतर की गणना की जाएगी।
इस तरह मिलेगा भावांतर योजना का लाभ
कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा ने प्रदेश सरकार की महात्वाकांक्षी भावांतर भुगतान योजना के बारे में बताया है कि तीन राज्यों में फसलों के बाजार मूल्य के आधार पर औसत माडल प्राइज तय की जाएगी। यदि किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम और मॉडल प्राइज से ज्यादा में अपनी फसल बेचता है तो उसके बीच के अंतर का भुगतान किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि किसान मॉडल प्राइज से कम में फसल बेचेगा तो उसे एमएसपी और मॉडल प्राइज के बीच का अंतर ही मिल पाएगा। उन्होंने कहा कि जो फसल मॉडल प्राइज से कम में बिकेगी निश्चित रूप से उसका एफएक्यू (फेयर एंड एवरेज क्वालिटी) की अच्छा नहीं थी। ऐसे किसानों को एमएसपी और मॉडल प्राइज का अंतर ही भुगतान किया जाएगा। एक प्रश्न के उत्तर में राजौरा ने कहा कि फसलों का उचित मूल्य दिलाने के लिए उसकी गुणवत्ता निर्धारित करने हेतु भविष्य में ग्रेडेशन सिस्टम भी लागू करने पर विचार किया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल में भावांतर भुगतान योजना की शुरूआत की है, इसे पायलट आधार पर आठ फसलों के लिए लागू किया गया है। इसमें सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द और तुअर शामिल हैं। उन्होंने बताया कि मंडियों में किसानों के साथ फर्जीवाड़ा करने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा।
- विशाल गर्ग