17-Oct-2017 09:41 AM
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साल 2019 के 2 अक्टूबर तक पूरे भारत को खुले में शौच से मुक्त कराने का लक्ष्य सरकार ने रखा है। 2 अक्टूबर 2019 तक करीब 8 करोड़ शौचालय बनाने की जरूरत है, ताकि भारत को खुले में शौच मुक्त देश घोषित किया जा सके। केंद्र सरकार इस लक्ष्य को हासिल कर के महात्मा गांधी को 2019 में श्रद्धांजलि देना चाहती है। जाहिर है, इस दिशा में पिछले 2 साल से काफी जागरूकता भी आई है, लेकिन वित्त वर्ष 2015-16 तक के कुछ ऐसे आंकड़े भी हैं जो बताते हैं कि सरकार शायद ही 2019 तक इस लक्ष्य को हासिल कर पाए। ये डेटा सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट का है, जो 2015-16 तक, 22 महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नेताओं (सांसद/मंत्री) के संसदीय क्षेत्र में शौचालय निर्माण का जायजा लेती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इन क्षेत्रों में शौचालय निर्माण की जो दर है (ध्यान रहे, ये आंकड़ा 2015-16 तक के हिसाब से है), उसी हिसाब से आगे भी काम होता रहा तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इस लक्ष्य को हासिल करते-करते 32 साल और लग जाएंगे, यानि 2048 तक जाकर सबको शौचालय का लक्ष्य पूरा हो सकेगा। इसी तरह, केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह के संसदीय क्षेत्र पूर्वी चंपारण में शौचालय निर्माण का जो दर है (2015-16 तक), उसके मुताबिक ये लक्ष्य 2090 तक पूरा हो सकेगा।
15 अगस्त 2016 तक के आंकड़े (पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के आंकड़े) बताते हैं कि 2019 तक इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए करीब 8 करोड़ शौचालय बनाए जाने की जरूरत है। इस आंकड़े को थोड़ा और तोड़ कर देखें। अगर सरकारी मशीनरी 24 घंटे लगातार काम करे, तब जाकर ये काम पूरा हो सकेगा। यानि, अगस्त 2016 से अक्टूबर 2019 तक सरकार को प्रति घंटा 3179 शौचालय या प्रति सेकंड एक शौचालय का निर्माण करना होगा, तब कहीं जा कर ये लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। अब ये देखते हैं कि वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान कितने शौचालय बने? इस वित्त वर्ष में स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भारत में 1.26 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया, यानि लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो निर्माण दर चाहिए थी (प्रति सेकंड एक शौचालय), उससे काफी कम है ये संख्या। अगर इस हिसाब से काम हुआ तो ये लक्ष्य 2022 तक पूरा हो सकता है, लेकिन इसी के साथ हम आपको 20 केंद्रीय मंत्रियों के संसदीय क्षेत्रों का भी ब्योरा बता रहे हैं (देखे बॉक्स, आंकड़ा स्त्रोत: सीएसई) जिसके हिसाब से कई इलाकों में यह काम साल 2019 तक भी पूरा हो जाए तो गनीमत है।
इसके अलावा, बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां खुले में शौच की समस्या अभी भी विकराल स्वरूप में है। देशभर में खुले में शौच करने वाली आबादी का बड़ा हिस्सा इन्हीं राज्यों में है। उत्तर प्रदेश में करीब 273 लाख ग्रामीण परिवारों में लगभग 54 प्रतिशत लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक (जून, 2017 के आंकड़े), भारत में 2 अक्टूबर 2019 तक 6.4 करोड़ घरों में शौचालय बनाने की जरूरत है। इन परिवारों में उत्तर प्रदेश की भागीदारी 23 प्रतिशत, बिहार की 22 प्रतिशत, ओडिशा की 8 प्रतिशत और झारखंड की 4 प्रतिशत है। इसके अलावा, एक और भी समस्या है। सरकार के मुताबिक, अभी जितने शौचालय हैं, उनमें से अधिकांश ऐसी स्थिति में हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। पूरे देश भर में 79 लाख शौचालय बेकार पड़े हैं, जबकि बिहार में 8.2 लाख, झारखंड में 6.8 लाख, 2.1 लाख ओडिशा में और 16 लाख उत्तर प्रदेश में ऐसे शौचालय हैं, जो बेकार हैं, यानि इस्तेमाल में नहीं आ रहे हैं। इन्हें फिर से बनाना होगा।
इसके अलावा, चिंता की एक बात ये भी है कि लक्ष्य हासिल करने की होड़ में सरकारी मशीनरी जैसे-तैसे शौचालय बना रही हैं। उसकी तस्वीर लेकर मंत्रालय को भेज रहे हैं और किसी तरह आंकड़ा बढ़ाने की जुगत में लगे हैं। बिना दरवाजा, बिना पानी की व्यवस्था किए ऐसे शौचालय भी बनाए जा रहे हैं जो बारिश के दिनों में शायद इस्तेमाल के लायक भी न रहें। ऐसे में खुले में शौच से मुक्ति का तात्कालिक राजनीतिक जुमला तो उछाला जा सकता है, लेकिन दीर्घकालिक तौर पर लोग फिर से खुले में शौच के लिए मजबूर हो जाएंगे। एक बड़ी समस्या उन लोगों की भी है, जिनके पास रहने के लायक भी जमीन नहीं है। ऐसे लोग भला कहां से अपने लिए शौचालय बनवा सकते हैं।
मप्र के सभी निकाय खुले में शौच मुक्त
मध्य प्रदेश के 361 नगरीय निकायों को क्वॉलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) द्वारा स्वच्छता के निर्धारित मापदंडों को पूरा करने पर खुले में शौच मुक्त प्रमाणित किया गया है। इस तरह राज्य के सभी 378 नगरीय निकाय को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 7,31,000 से अधिक परिवारों को शौचालय विहीन चिन्हित किया गया था। सभी नगरीय क्षेत्रों में सर्वे कराकर 6,18,000 व्यक्तिगत शौचालय स्वीकृत किए गए। अब तक लगभग 4,80,000 शौचालय निर्मित कराए जा चुके हैं। इस वित्त वर्ष में लगभग दो लाख शौचालय निर्माण का लक्ष्य है। उल्लेखनीय है कि शहरी स्वच्छ भारत मिशन की लक्ष्य पूर्ति में व्यक्तिगत शौचालय के लिए 39 हजार 200 रुपये प्रति सीट, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 35 प्रतिशत और सूचना शिक्षा संप्रेषण के लिए 15 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही है। बताया गया है कि प्रदेश के सभी 378 नगरीय निकायों के 26 समूह गठित कर एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना को जन-भागीदारी से किया जा रहा है।
-सिद्धांत पांडे