17-Oct-2017 09:37 AM
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भाजपा में महाभारत का शल्यपर्व चल रहा है। रामलीला का दौर खत्म होने के बाद जनता के लिए भाजपा की इस महाभारत में मनोरंजन का भरपूर मसाला है। भीष्म पितामह, शल्य, कर्ण, युधिष्ठिर, दुर्योधन, शकुनि, भीम जैसे पात्रों के बीच वाकयुद्ध और गदायुद्ध जारी है। नजारा दिलचस्प है। पार्टी के पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा खुद को भीष्म पितामह बता रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें शल्य कह रहे हैं। ये दो पात्र तो सामने हैं पर दुर्योधन, युधिष्ठिर, कर्ण, दुस्साशन और शकुनि कौन हैं इस पर दिलचस्प वाकयुद्ध जारी है।
अटल बिहारी वाजपेयी के समय वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने हाल ही में मौजूदा अर्थव्यवस्था को लेकर एक लेख लिखा था। इसमें वित्तमंत्री अरुण जेटली और प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया। उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए नोटबंदी, जीएसटी और डिजिटल पेमेंट पर सवाल उठाए थे और कहा था कि मोदी ने गरीबी देखी है, उनके मंत्री भी देश को गरीबी दिखाएंगे। सिन्हा ने कहा था कि गिरती जीडीपी के बीच नोटबंदी ने आग में घी डालने का काम किया। आज के समय में न तो नोकरी है और न ही विकास तेज हो रहा है। इंवेस्टमेंट और जीडीपी घट रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जीडीपी अभी 5.7 है। सरकार ने 2015 में जीडीपी तय करने के तरीके को बदला था। अगर पुराने हिसाब से देखें तो आज के समय यह जीडीपी 3.7 होती। सिन्हा के इस लेख से पार्टी और सरकार में महाभारत छिड़ गयी है। पात्रों के नामकरण शुरू हो गए। यशवंत सिन्हा ने कहा कि मैं भीष्म पितामह हूं और अर्थव्यवस्था का चीरहरण नहीं होने दूंगा।
अरुण जेटली ने वार करते हुए कहा कि वह 80 साल की उम्र में नोकरी मांग रहे हैं। जवाब में सिन्हा बोले, अगर मैं नोकरी चाहता तो वह यहां नहीं होते। उन्हें यह भी कहा गया कि सिन्हा अगर अर्थव्यवस्था के इतने ही ज्ञानी थे तो उनके समय में सोना गिरवी रखना क्यों पड़ा?
इस वाकयुद्ध में दूसरे यौद्धा भी कूद पड़े। मोदी ने कहा कि कुछ लोग उसी तरह हतोत्साहित करने की कोशिश करते हैं जैसे शल्य ने कर्ण को किया था। जवाब में सिन्हा ने कहा कि मैं शल्य नहीं, भीष्म पितामह हूं। अब भाजपा के दूसरे नेताओं द्वारा पूछा जाने लगा है कि यशवंत सिन्हा अगर शल्य हैं तो दुर्योधन कौन है? अब कौन, क्या है, तमाम पात्रों की खोज शुरू हो गई है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी की पुस्तक का विमोचन करने यशवंत सिन्हा को बुलाया गया था। इस कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी थे। सिन्हा को विपक्षी खेमे में खड़ा देख भाजपा नेताओं ने चुटकी लेते हुए कहा कि वह कौरवों की तरफ हैं। इस युद्ध में अरुण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा यशवंत सिन्हा के पक्ष में आकर गदा भांजने लगे। नेताओं के इस तरह के आपसी संवादों के आदान-प्रदान ने भाजपा के भीतर माहौल रोचक लेकिन तनावपूर्ण कर दिया है। उधर संघ भी अर्थव्यवस्था व अपने अन्य एजेंडे थोपने के लिए सरकार पर दबाव बनाने लगा।
असल में शल्य नकुल और सहदेव के मामा थे। महाभारत में दुर्योधन ने छल से अपनी ओर युद्ध के लिए राजी कर लिया था। उन्हें कर्ण का सारथी बनाया गया। कर्ण का सारथी बनते समय शल्य ने दुर्योधन के सामने शर्त रखी थी कि उन्हें स्वेच्छा से बोलने की छूट रहेगी। शल्य ने युधिष्ठिर से इससे पहले यह वचन ले लिया था कि वह कर्ण को सदैव हतोत्साहित करते रहेंगे ताकि कर्ण युद्ध में अपनी क्षमता का प्रदर्शन न कर पाएं। कर्ण के वध के बाद शल्य ने युद्ध के आखिरी दिन कौरव सेना का नेतृत्व किया और युधिष्ठिर के हाथों मारा गया। शल्य को गदाधारी के रूप में जाना जाता था।
सिन्हा ने इस अवसर पर प्रधानमंत्री के उस बयान पर भी टिप्पणी की जिसमें उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर पूववर्ती यूपीए सरकार के साथ अपनी सरकार की तुलना की थी। उन्होंने कहा था कि पिछली सरकार के शासन काल में 8 बार ऐसे मौके आए जब विकास दर 5.7 प्रतिशत या उससे भी नीचे रही। सिन्हा ने इस पर कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि अर्थव्यवस्था पर चर्चा शुरू हुई है। अगर प्रधानमंत्री ने खुद देश की जनता के सामने कुछ बातें रखी हैं तो यह स्वागत योग्य है, लेकिन प्रधानमंत्री ने जो आंकड़े दिए उस पर उन्हें यही कहना है कि आंकड़ों का खेल खतरनाक होता है। वर्ष 2019 में होने वाले चुनाव में अगर सरकार उतरेगी तो जनता यह नहीं पूछेेगी कि यूपीए की तुलना में कैसा काम किया बल्कि लोग पूछेंगे कि जो वादे किए गए थे वे पूरे हुए हैं या नहीं।
भाजपा की इस महाभारत में विपक्ष की बांछें खिल गई। वह भी मजे लेने लगा। भाजपा के भीतर भी एक विपक्ष खड़ा होने लगा है। यह इसलिए कि इस सरकार में विचार-विमर्श के लिए कोई जगह दिखाई नहीं देती। दिक्कत यह है कि सरकार को सच्चाई दिखाओ तो मानती नहीं। उसे जो बात पसंद आती है उसे ही मानती है। वह तर्क नहीं, कुतर्क करती है क्योंकि उसे हमेशा से कुतर्क की आदत रही है। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी का मार्गदर्शक मंडल अब मूकदर्शक मंडल बना दिख रहा है। इन नेताओं की जगह अगर यशवंत सिन्हा, गोविंदाचार्य जैसे नेताओं का मार्गदर्शक मंडल बना कर सलाह ली जाए तो बिगड़ती हुई अर्थव्यवस्था जैसे मामलों में कुछ राह दिख सकती है। निंदक नियरे राखिए। तय है भाजपा में अब कुरुक्षेत्र तैयार हो चुका है। रणभेरी बजने का समय आ रहा है। समस्याओं को निपटारा हो न हो, आने वाले दिन देश की जनता के लिए अच्छे दिन यानी मनोरंजन से भरपूर होंगे। तमाशों के शौकीन देश को आखिर और क्या चाहिए।
भाजपा पदाधिकारियों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अर्थव्यवस्था को लेकर जो चिंताएं जाहिर कीं और संघ के थिंक टैंक समझे जाने वाले एस गुरुमूर्ति ने वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लेकर जो चिंता जताई, उससे पार्टी और संघ में आंतरिक स्तर पर काफी खलबली है। जीएसटी के क्रियान्वयन को लेकर काफी शिकायतें आ रही थीं। इसी परिप्रेक्ष्य में गुरुमूर्ति ने पिछले दिनों अपनी चिंताएं जाहिर कीं। जिस नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार की खूब आलोचना होती है, उस पर गुरुमूर्ति काफी मजबूती से सरकार के साथ खड़े दिखते हैं। लेकिन जीएसटी पर उनके अलग रुख अपनाने से पार्टी और संघ में चिंता का माहौल है।
दरअसल, गुरुमूर्ति सक्रिय राजनीति में भले ही नहीं हों लेकिन संघ के कामकाज या यों कहें कि आर्थिक विचारों पर गुरुमूर्ति का खास प्रभाव रहता है। यह बात भाजपा, संघ और उसकी सहयोगी संगठनों में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ठीक से जानते हैं। ऐसे में जिस जीएसटी को मोदी सरकार अपनी ऐतिहासिक कामयाबी और आजादी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार कह रही है, उस पर गुरुमूर्ति द्वारा अलग रुख अपनाने से पार्टी और संघ में जीएसटी को लेकर चिंता की जा रही है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विजयादशमी के सालाना संबोधन में सरकार की कई आर्थिक नीतियों की तारीफ की थी, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि छोटे व्यापारियों की चिंताओं का ख्याल भी सरकार को करना होगा। संघ और भाजपा में इसे संघ प्रमुख का जीएसटी को लेकर दिया गया संकेत माना जा रहा है। भागवत के भाषण का एक अंश कुछ ऐसा है जिसे सरकार के लिए उनकी तरफ से सलाह कहा जा सकता है। इसमें किसानों की चिंता करने की भी बात है। भाजपा में यह चर्चा चल रही है कि संघ प्रमुख के भाषण पर गुरुमूर्ति की चिंताओं का स्पष्ट असर दिख रहा था।
ऐसे ही सुब्रमण्यम स्वामी की बातों को लेकर भी चर्चा चल रही है। स्वामी केंद्र सरकार में किसी पद पर नहीं हैं। पार्टी में औपचारिक तौर पर उनके पास बड़ी जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन पार्टी पदाधिकारियों, संघ और संघ के सहयोगी संगठनों में प्रमुख पदों पर बैठे लोग उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं। इस पृष्ठभूमि में स्वामी द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को लेकर जताई जा रही चिंताओं से इन लोगों के बीच में हलचल होना स्वाभाविक थी। स्वामी की बातों से हलचल बढऩे की एक वजह यह भी रही कि पार्टी कार्यकर्ताओं और संघ स्वयंसेवकों के बीच भी स्वामी लोकप्रिय हैं। ऐसे में अगर वे सरकार के खिलाफ कुछ बोलते हैं तो इससे इन लोगों के बीच एक भ्रम की स्थिति बनने की आशंका पार्टी पदाधिकारियों और संघ के पदाधिकारियों को सता रही है।
मै नहीं रहूंगा खामोश
महाभारत में शल्य का जिक्र एक ऐसे शूरवीर योद्धा के रूप में है जो पांडव के खेमे के होते हुए भी कौरवों से जा मिले थे और उनके सेनापति बने थे। इसीलिए शल्य का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा था कि देश में ऐसे शल्य प्रवृति के लोगों की पहचान करना और उनसे बचना जरूरी है। सिन्हा ने एक निजी टीवी चैनल से साक्षात्कार में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में महाभारत के शल्य का जिक्र किया है लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि महाभारत में ही एक और चरित्र है और वह भीष्म पितामह का है। उन्होंने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो भीष्म पितामह खामोश रह गए थे लेकिन अब अगर अर्थव्यवस्था का चीरहरण होगा तो मैं बोलूंगा।
कहीं शौरी तो नहीं मोदी के शल्य ...
इस पौराणिक प्रसंग के बीच शल्य का उदाहरण देकर मोदी आखिर अपने मुखर आलोचक-अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा में से किसकी तरफ इशारा कर रहे थे? जहां तक सिन्हा का सवाल है तो वह अब भी भाजपा का हिस्सा हैं। हालांकि उन्हें पार्टी के उस मार्गदर्शक मंडल में जगह मिली है जिसे मोदी ने सत्ता में आने के बाद बुजुर्ग नेताओं के समूह के तौर पर बनाया था ताकि युवा पीढ़ी को उनका परामर्श एवं मार्गदर्शन मिल सके। यह अलग बात है कि मार्गदर्शक मंडल के गठन को कभी भी बुजुर्ग एवं अनुभवी नेताओं को किनारे करने की एक चतुर रणनीति नहीं माना गया। इस तरह सिन्हा पर शल्य की तरह यह आरोप तो नहीं लगाया जा सकता है कि उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया है।
- दिल्ली से रेणु आगाल