17-Oct-2017 09:35 AM
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अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में ख्यात है कि उनके हर कदम में राजनीति होती है। उनकी नर्मदा परिक्रमा को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। दिग्विजय ने नर्मदा परिक्रमा को गैर राजनीतिक बताया है, लेकिन यह पूरी तरह राजनीतिक है। दरअसल, दिग्विजय सिंह प्रदेश में अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं।
दिग्विजय सिंह की इस यात्रा को लेकर प्रदेश की राजनीतिक एवं प्रशासनिक वीथिका में एक अंधविश्वास भी पनप रहा है। वह यह की जब भी किसी विपक्षी पार्टी के राजनेता ने यात्रा निकाली है उसके बड़े राजनीतिक फायदे हुए हैं। 1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आड़वाणी ने अयोध्या की पावन धरा पर मयार्दा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण का संकल्प लेकर रथ यात्रा निकाली थी और भाजपा पूरे देश में छाकर अखिल भारतीय स्वरुप ले गई थी। इससे पहले एनटी रामाराव 1982 में आंध्र प्रदेश में यात्रा के जरिए रथ पर ही सवार होकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। वायएस राजशेखर रेड्डी भी आंध्र प्रदेश में पदयात्रा करते हुए ही मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचे थे। चंद्रशेखर ने भी कदमों से जमीन नापी और उनके नाम के आगे भी प्रधानमंत्री लगा। खुद दिग्विजय सिंह भी इससे पहले 80 के दशक में अविभाजित मध्य प्रदेश के बस्तर से मुरैना तक पदयात्रा कर चुके हैं और इसके बाद ही बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा की कहावत चरितार्थ करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और फिर 10 साल तक प्रदेश पर एक छत्र राज किया।
इतिहास के इन्हीं तथ्यों के चलते अपनी नर्मदा बनाम राजनीतिक परिक्रमा को लेकर दिग्विजय सिंह और उनके समर्थक उत्साहित भी है और उम्मीद से भी, खुद को वह मुख्यमंत्री की दौड़ से भले ही बाहर बताएं, किन्तु प्रदेश की राजनीति से उनका मोह बरकरार रहना समय-समय पर जाहिर होता रहा है। अपने इसी मोह के चलते दिग्गी नर्मदा परिक्रमा के माध्यम से मां नर्मदा से आशीर्वाद लेने निकले हंै, पर वह यह भूल रहे हंै कि मां नर्मदा से उनसे पहले यह आशीर्वाद प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लेने का प्रयास कर चुके हंै। मिलता किसे है? इसका पता वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से चलेगा?
दिग्विजय सिंह की इस नर्मदा यात्रा को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गई नर्मदा सेवा यात्रा का जवाब माना जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान की यात्रा भी लगभग छह माह चली थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी नर्मदा यात्रा के बीच सरकारी कामकाज भी करते रहते थे। दिग्विजय सिंह ने अपनी यात्रा के लिए कांग्रेस पार्टी से छह माह का अवकाश मंजूर कराया है। दिग्विजय भले ही तथाकथित तौर पर राजनीति से अवकाश लेकर नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं, लेकिन इससे प्रदेश की राजनीति गर्माई हुई है। सत्तारूढ़ भाजपा का भी मानना है की दिग्विजय सिंह बिना किसी बड़े उद्देश्य के 3,350 किमी यात्रा क्यों करेंगे। इसलिए सरकार और भाजपा संगठन ने दिग्विजय की यात्रा पर पहरा लगा दिया है। यात्रा के दौरान दिग्गी राजा की हर गतिविधि की रोज समीक्षा की जा रही है।
दिग्विजय सिंह की यह यात्रा कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगी की नहीं यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, लेकिन इससे दिग्विजय सिंह की साख मजबूत होगी। पिछले कुछ सालों में उनकी साख लगातार कम हो रही है। हालांकि कांग्रेस महासचिव जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अभी भी उनके कंधों पर है और प्रदेश कांग्रेस के खास सिपहसलारों में भी वह गिने जाते है, किन्तु बहुत कुछ ऐसा है जो बदल चुका है। गोवा और कर्नाटक का प्रभार तो उनसे छीना ही जा चुका है, साथ ही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से नजदीकी भी पहले जैसी नहीं रही, कांग्रेस संगठन में उनके खिलाफ विरोधी स्वर तेज हैं तो चुनाव लडऩे वाले कांग्रेसियों के लिए तो वह अछूत ही हो चुके है। यानि दिग्विजय सिंह नाम का यह सूरज अस्त होने के कगार पर है। यह सिर्फ हम नहीं कह रहे, बल्कि संभवत: खुद दिग्विजय सिंह भी यह भांप चुके हंै। सिंह यह समझ चुके है कि अब भी अगर उन्होंने अपनी सक्रियता दिखाकर राजनीतिक ताकत प्रदर्शित नहीं की तो उनका मध्यम पड़ता राजनीतिक सूर्य वास्तव में दूसरे दिन का सवेरा करने के बजाए सदैव के लिए अस्त हो जाएगा। सिंह की इसी समझ का प्रमाण है उनकी इन दिनों चल रही मां नर्मदा परिक्रमा। वे भले ही लाख दावे करें कि उनकी यह यात्रा राजनीतिक नहीं होकर पूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक है, किन्तु ऐसे एक नहीं, बल्कि कई कारण हंै जिसके चलते राजनीतिक पंडित इस यात्रा को राजनीति से जोड़ रहे है।
यात्रा पर संघ और भाजपा की नजर
दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा को जिस तरह से शुरुआती दिनों में ही आम लोगों का खासतौर पर ग्रामीणों का समर्थन मिलना शुरू हुआ है उससे भाजपा की चिंताए बढऩे लगी हैं। शायद यही वजह है कि भाजपा संगठन द्वारा उनकी यात्रा पर पूरी तरह से निगाह रखना शुरू कर दिया गया है। इस यात्रा के नफे नुकसान के आंकलन के लिए भाजपा हाईकमान ने भी प्रदेश के प्रभारी महासचिव विनय सहस्त्रबुद्धे से पूरी रिपोर्ट तलब की है। हालांकि इस यात्रा को लेकर पहले प्रदेश भाजपा का संगठन गंभीर नहीं दिख रहा था, लेकिन केंद्र से मिले निर्देश के बाद अब संघ और प्रदेश भाजपा के नेता भी यात्रा पर पूरी तरह से निगाह रखने पर मजबूर हो गए हैं। दरअसल दिग्विजय की यात्रा में कांग्रेस के वे चेहरे भी सक्रिय रूप से दिख रहे हैं जो अपने इलाकों में प्रभावशील तो माने जाते थे, लेकिन किन्ही कारणों से लंबे समय से निष्क्रिय हो गए थे।
-श्यामसिंह सिकरवार