बाबरिया के सामने कांग्रेसी हुए बावरे
17-Oct-2017 09:00 AM 1234812
एंटीइनकंबेंसी और किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस को 15 साल बाद सत्ता में वापसी की आस दिख रही है। हालांकि रिकार्ड बताता है कि जिन राज्यों में कांगे्रस 15 साल तक सत्ता से दूर रही है वहां उसकी सरकार फिर नहीं बन पाई है। बिहार, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु आदि इसके उदाहरण हैं फिर भी मध्यप्रदेश में कांग्रेसियों की बांछे खिली हुई हैं, लेकिन पार्टी के भीतर जिस तरह की गुटबाजी देखने को मिल रही है उससे तो नहीं लगता कि कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ पाएगी। प्रदेश में पिछले चार-पांच साल के दौरान हुए चुनावों में कांग्रेस को मिली हार का ठीकरा मोहन प्रकाश पर फोड़कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और उनकी जगह दीपक बाबरिया को प्रदेश प्रभारी बना दिया गया है। कांग्रेस आलाकमान को उम्मीद है कि बाबरिया कांग्रेस को एक कर आगामी विधानसभा चुनाव में जीत दिलावाएंगे, लेकिन बाबरिया के पहली बार भोपाल आने पर प्रदेश कांग्रेस के नेता जिस तरह बावरे हुए उससे प्रदेश प्रभारी की आस भी जाती रही। रेलवे स्टेशन से लेकर पूरे कार्यक्रम तक जिस तरह बाबरिया को हाईजैक किया गया उससे पार्टी की गुटबाजी की कलई खुल गई। कई गुटों में विभाजित पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भोपाल रेलवे स्टेशन पर जमकर धक्का-मुक्की हुई। हंगामे के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और बाबरिया के साथ एक गाड़ी में नहीं बैठ सके, न ही स्टेशन पर दोनों पदाधिकारी साथ में दिखाई दिए। यही नहीं स्टेशन पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नारे सुनकर बाबरिया भी नाराज हुए। पीसीसी में विधायक दल की बैठक में जिस तरह विधायकों ने प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को विधायक न होने के कारण बैठक में शामिल होने पर आपत्ति उठाई उससे साफ हो गया कि कांग्रेस अभी भी कई गुटों में बंधी हुई है। हालांकि बैठकों के दौरान सामने आई गुटबाजी पर परदा डालते हुए बाबरिया ने मीडिया से कहा कि यह पार्टी की मजबूती को दर्शाता है। उधर कांग्रेस नेता अरविंद मालवीय कहते हैं कि आगामी चुनाव से पहले सभी नेताओं को एक होकर बिना पद की कामना के काम करना होगा। इसके लिए बड़े नेताओं को सामने आना होगा। वैसे देखा जाए तो कांग्रेस में गुटबाजी हर दौर में रही है। दिग्विजय शासनकाल में भी भले ही दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, लेकिन कहा जाता है कि उस समय सरकार में छह मुख्यमंत्री थे। यानी छह नेता तय करते थे कि क्या होना है। लेकिन जब पार्टी की हार हुई तो ठीकरा दिग्विजय सिंह के सिर फोड़ दिया गया। आज स्थिति यह है कि प्रदेश में कांग्रेस की बदहाली के लिए दिग्विजय सिंह को दोष दिया जाता है, जबकि चौदह साल से तो प्रदेश की राजनीति में उनका हस्तक्षेप ही नहीं है। अरविंद मालवीय कहते हैं कि अगर कांग्रेस नेता एक-दूसरे पर दोष मढऩे के बजाए मिलकर काम करें तो भाजपा सत्ता उखाडऩे में देर नहीं लगेगी। एक तरफ पार्टी में एकता का राग अलापा जा रहा है वहीं दूसरी तरफ यह देखा जा रहा है कि नियुक्तियों मेंं जमकर गुटबाजी हो रही है। कांग्रेस में प्रदेश प्रतिनिधि बनाने को लेकर अपने ही नियमों की जमकर धज्जियां उड़ा दी। चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष एम रामचंद्रन ने 8 सितम्बर को जो आदेश जारी किया था। वह प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के आगे बौना साबित हुआ। गुटबाजी के चलते किसी को भी कहीं से प्रदेश प्रतिनिधि बना दिया गया। इतना ही नहीं प्रदेश कांग्रेस के ताकतवर पदाधिकारियों ने अपने बेटों को भी प्रदेश प्रतिनिधि के रूप में जगह दिला दी। राज्यसभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी के परिवार से तीन लोगों को प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। सत्यव्रत चतुर्वेदी जहां चंदला से बनाए गए हैं, उनके बेटे नितिन चतुर्वेदी बिजावर से बनाए गए हैं। वहीं उनके छोटे भाई आलोक चतुर्वेदी छतरपुर ग्रामीण से प्रदेश प्रतिनिधि बनाए गए हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया जहां झाबुआ से बनाए गए हैं, वहीं रानापुर से उनके बेटे विक्रांत बने हैं, उनकी भतीजी कलावती भूरिया अलीराजपुर जिले के भावरा से प्रदेश प्रतिनिधि बनी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के समर्थक संजय दुबे भोपाल में रहते है, उन्हें रतलाम के बिलपंक से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के करीबी आरिफ मसूद को रायसेन जिले के सुल्तानपुर से, भोपाल की ही रहने वाली आभा सिंह को रायसेन जिले के सिलवानी और बलवंत शाक्य को सुल्तानगंज से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी भी भोपाल में रहते हैं उन्हें सीहोर जिले के दौराहा से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के करीबी रीवा के रहने वाले विनोद शर्मा को कटनी के रिठी से प्रदेश प्रतिनिधि बनाया गया है। ऐसे में पार्टी मजबूूत कैसे होगी। प्रदेश प्रतिनिधि को लेकर उठा-पटक चरम पर प्रदेश कांग्रेस में प्रदेश प्रनितिधि बनाए जाने के बाद चल रही उठापटक अब चरम पर पहुंच गई है। संगठन चुनाव को लेकर नाराज चल रहे कई विधायक प्रदेश प्रतिनिधि के चयन में उनकी नहीं सुनी जाने की शिकायत आलाकमान से करने की तैयारी कर ली है। नाराज गुट के नेताओं ने एक सूची बनाई है, जिसमें उन लोगों के नाम दर्ज है, जो अपने जिले की जगह दूसरे जिले से प्रदेश प्रतिनिधि बनाए गए हैं। उधर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने की जिम्मेदारी जिन नेताओं पर है वे बैठकों में बराबर गायब रहते हैं। कांग्रेस को मजबूत करने के लिए जिन नेताओं से बाबरिया ने बात की उनमें सिंधिया, कमलनाथ और पचौरी प्रमुख हैं, लेकिन ये नेता केवल अपने समर्थकों को पदाधिकारी बनाने के अलावा और कुछ करते नजर नहीं आते हैं। -भोपाल से अरविंद नारद
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