17-Oct-2017 08:53 AM
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मप्र को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए सरकार जिलों की रैंकिंग करेगी। यह रैंकिंग हर माह की जाएगी। इसके आधार पर कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों का रिपोर्ट कार्ड भी बनेगा। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी जिलों से भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों के आधार पर रिपोर्ट मांगी थी पर सिर्फ छह जिलों ने अब तक जानकारी भेजी है। इसकी वजह से जिलों में भ्रष्टाचार की रैंकिंग अटक गई है। विभाग ने एक बार फिर कलेक्टरों को लिखकर न सिर्फ इस लापरवाही पर नाराजगी जताई है, बल्कि तत्काल रिपोर्ट भेजने के निर्देश भी दिए हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक नवंबर को प्रदेश के स्थापना दिवस पर प्रदेशवासियों को संकल्प दिलाने के लिए जो बिंदु तय किए हैं, उनमें भ्रष्टाचार मुक्त मध्यप्रदेश भी एक है। इसको लेकर जिलों की रैंकिंग करने का फैसला भी किया गया है। रैंकिंग जिले के अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ सामने आए भ्रष्टाचार के मामलों के आधार पर की जाएगी। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी कलेक्टरों से चार अक्टूबर तक रिपोर्ट मांगी थी पर सिर्फ छह जिलों (दतिया, डिंडोरी, छिंदवाड़ा, सिवनी, छतरपुर और भोपाल) को छोड़कर किसी ने जानकारी नहीं भेजी। बताया जा रहा है कि कलेक्टरों की इस लापरवाही पर विभाग ने नाराजगी जताते हुए दो दिन पहले पत्र लिखकर तत्काल जानकारी भेजने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय और सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भ्रष्टाचार के मामलों के हिसाब से जिलों की रैंकिंग होगी। इसके आधार पर कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक का रिपोर्ट कार्ड भी बनेगा।
उधर, भ्रष्टाचार मुक्त मध्यप्रदेश बनाने के लिए सरकार उन वजहों की तलाश करेगी, जिनकी वजह से इसे बढ़ावा मिलता है। विगत दिनों भ्रष्टाचार मुक्त मध्यप्रदेश के लिए मुख्यमंत्री द्वारा गठित ग्रुप की राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें विचार किया गया कि सबसे पहले उस जड़ को तलाशा जाना चाहिए, जहां से भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है। ऐसे कौन से क्षेत्र हैं, जहां लोगों के काम अटकते हैं। इसके लिए नियम-कायदों में कहां-कहां बदलाव करने की जरूरत है। बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि ज्यादा से ज्यादा सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाए। फाइलें न अटकें, इसके लिए ई-ऑफिस और फाइल मैनेजमेंट सिस्टम को सभी विभागों में तेजी के साथ लागू किया जाए। सरकार के इस कदम को चुनावी शिगूफा बताते हुए कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा कहते हंै कि यह कदम सरकार अपने नकारापन पर पर्दा डालने के लिए उठा रही है। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू
में भ्रष्टाचार के सैकड़ों मामले लंबित
हैं। सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं, लेकिन सरकार इन पर कार्रवाई करने की बजाए जनता को दिखाने के लिए जिलों की रैंकिंग तैयार करवा रही है। वह कहते हैं कि कौन कलेक्टर यह चाहेगा कि उसका जिला भ्रष्ट माना जाए।
उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रष्टाचार के मामलों में मंत्रियों की सीधी जिम्मेदारी तय कर दी। उन्होंने कहा कि यदि विभाग में भ्रष्टाचार होता है तो अधिकारी के साथ अब मंत्री भी जिम्मेदार होंगे। भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वे अफसर जो चेतावनी के बावजूद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उन्हें अब सीधे बर्खास्त कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने अपना रुख साफ करते हुए मंत्रियों और अधिकारियों से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के कायाकल्प के लिए जो अभियान शुरू किया है, उसमें भ्रष्टाचार के लिए कहीं भी गुंजाइश नहीं है। ऐसे में प्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की जो नीति अपनाई गई है, उसका सख्ती से पालन किया जाएगा। विभागों में भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती हैं। जांच एजेंसियां अपना काम करती हैं, लेकिन विभागीय प्रमुख होने के नाते मंत्रियों की भी जिम्मेदारी है। वे सजग और सचेत रहें। ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें ताकि फीडबैक मिल सके। देखने में आ रहा है कि जिन अधिकारियों को भ्रष्टाचार को लेकर बार-बार चेताया जा रहा है वे सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं, उन्हें सीधे बर्खास्त किया जाएगा।
इन बिंदुओं पर होगी रैंकिंग
जिलों की भ्रष्टाचार को लेकर होने वाली रैंकिंग के लिए कुछ बिन्दु तय किए गए हैं। इनके आंकड़ों के आधार पर जिलों को भ्रष्टाचार की रैंकिंग दी जाएगी। इसके लिए पहला बिंदु सीएम हेल्पलाइन में दर्ज भ्रष्टाचार के प्रकरणों की संख्या है। दूसरा लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में दर्ज प्रारंभिक जांच प्रकरण। तीसरा लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के छापे और ट्रेप के मामले, और चौथा सिविल सर्विस रुल्स के तहत भ्रष्टाचार के मामलों में विभागीय जांच या अन्य प्रकरण। सरकार के सख्त कदम के बाद अफसरों में घबराहट साफ दिख रही है। आलम यह है कि जिन अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत है उन्हें अपने ऊपर कार्रवाई की तलवार लटकी नजर आ रही है। बताया जाता है कि कई जिलों में तो लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के छापे और ट्रेप के मामलों की भरमार है। ऐसे जिलों के कलेक्टरों के ऊपर कलेक्टरी जाने का खतरा भी मंडरा रहा है।
- राजेश बोरकर