मुआवजे का मातम
17-Oct-2017 08:44 AM 1235048
सरदार सरोवर बांध में जैसे-जैसे पानी का स्तर बढ़ता जा रहा है डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों के रहवासियों की धड़कने तेज होती जा रही हैं। इसकी वजह है अधूरा विस्थापन और मुआवजे का दंश। सरकार ने डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों के लोगों के विस्थापन की जो व्यवस्था की है वह रहने लायक नहीं है। इस कारण अधिकांश लोग आज भी डूब रहे गांवों में रहने को मजबूर हैं। धार जिले का निसरपुर गांव धीरे-धीरे पानी की चपेट में आ रहा है। 70 साल के शांति लाल अपने घर के आंगन में बैठकर रोजाना पानी के उस विस्तार को निहारते हैं जो धीरे-धीरे उनकी दहलीज की ओर बढ़ा आ रहा है। बांध के इस पानी ने उनके घर को एक ऐसे टापू में बदल दिया है जिसके तीनों ओर पानी ही पानी है। यह पानी अगर दो-तीन फुट भी और बढ़ा तो शांति लाल के घर को भी लील लेगा। उनके पास इस तबाही से बच निकलने के कोई विकल्प नहीं हैं। पूंजी के नाम पर उनके पास ले-देकर उनका यह घर ही है, लेकिन इसके डूब क्षेत्र में आने के बावजूद भी सरकार से उन्हें न तो कोई मुआवजा मिला है और न ही कोई जमीन। निसरपुर में ऐसी दुर्दशा सिर्फ शांति लाल की ही नहीं बल्कि सैकड़ों अन्य लोगों की भी है। लगभग 28 सौ परिवारों को समेटे हुए निसरपुर अब एक गांव से कस्बा होने ही लगा था कि सरदार सरोवर बांध ने उसकी इस यात्रा पर पूर्ण विराम लगा दिया। इस परियोजना के चलते डूब क्षेत्र में आने वाला यह सबसे बड़ा गांव है। निसरपुर के साथ ही प्रदेश के कुल 193 गांव इस परियोजना के चलते डूब क्षेत्र में आ गए हैं। लेकिन परियोजना का उद्घाटन हो जाने और बांध में पानी भर दिए जाने के बावजूद भी इनमें से शायद ही कोई गांव हो, जहां सौ प्रतिशत लोगों का पुनर्वास कर दिया गया हो। स्थितियां ऐसी बन पड़ी हैं कि लोगों के घरों में पानी भरने लगा है लेकिन फिर भी वे गांव छोड़कर जाने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसा कई कारणों से है। मसलन कुछ लोगों को जमीन आवंटित हुई है तो मुआवजा नहीं मिला है, कुछ को जमीनों का आवंटन सिर्फ कागजों पर ही हुआ है, कुछ को ऐसी जगह जमीनें दी गई हैं जिनमें मकान बनाना संभव ही नहीं, कुछ को विस्थापन के नाम पर कुछ भी नहीं दिया गया है और कुछ मामले ऐसे भी हैं जहां एक ही प्लाट तीन-तीन परिवारों को आवंटित कर दिया गया है। दरअसल, नर्मदा घाटी में पुनर्वास की प्रक्रिया धांधली भरी रही है। पुनर्वास में असल धांधलेबाजी की शुरुआत विशेष पुनर्वास अनुदानÓ की बंदरबांट के साथ शुरू हुई। इस अनुदान के अनुसार सभी पात्रों को 5.58 लाख रुपये बतौर मुआवजा दिया जाना तय हुआ। लेकिन इसमें भी एक शर्त थी। शर्त यह थी कि इस धनराशि का आधा हिस्सा ही पहली किस्त में लोगों को दिया जाएगा और बाकी बचे रुपये उन्हें सिर्फ तभी मिल सकेंगे जब वे पहली किस्त के पैसों से पांच एकड़ जमीन खरीद कर अपने नाम रजिस्ट्री करवा लें। एनबीए के कार्यकर्ता राहुल यादव बताते हैं, इस शर्त के चलते दलालों की मौज हो गई है। इतने कम दामों पर पांच एकड़ जमीन मिलना असंभव था, लेकिन मुआवजा लेने के लिए जरूरी था कि लोग जमीन की खरीद दिखाएं। इस बात का फायदा दलालों ने उठाया और लोगों की फर्जी रजिस्ट्री करवाने लगे।Ó बड़वानी जिले के पिछौड़ी गांव में रहने वाले हरिदा राम भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं जिन्होंने दलालों के बहकावे में आकर फर्जी रजिस्ट्री करवाई थी। वे बताते हैं, विशेष पुनर्वास अनुदान की शर्त के अनुसार मैं उस दौर में जमीन की तलाश में था। मैंने सारी जगह खोज लिया लेकिन इतने कम दामों पर कहीं जमीन नहीं मिली। तब पास के ही बाजार के एक सुनार ने मुझे बताया कि वो मुझे जमीन दिलवा देगा और अनुदान की दूसरी किस्त भी मुझे मिल जाएगी। वो मुझे अपने साथ कचहरी ले गया और उसने जमीन की रजिस्ट्री करवा दी। इसके आधार पर मुझे अनुदान की दूसरी किस्त तो मिल गई लेकिन कुल 5.58 लाख रुपयों में से 85 हजार उसी दलाल ने रख लिए।Ó हरिदा राम की ही तरह हजारों अन्य लोगों ने अनुदान लेने के लिए फर्जी रजिस्ट्री करवाई और अनुदान की रकम का बड़ा हिस्सा दलालों को दिया। इसका खुलासा तब हुआ जब नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने यह मामला उठाया और इसकी जांच के लिया झा आयोगÓ का गठन किया गया। आयोग ने पाया कि 1358 लोगों ने फर्जी रजिस्ट्री करवाई हैं, लेकिन नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार यह आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है क्योंकि सैकड़ों लोग झा आयोग के सामने कभी गए ही नहीं। दलालों के फेर में फंसे इन लोगों में से अधिकतर आज पूरी तरह भूमिहीन हो चुके हैं। इसे देखते हुए हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ऐसे लोगों को 15-15 लाख रुपये का मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। जिस दौरान पुनर्वास की प्रक्रिया विशेष पुनर्वास अनुदानÓ और इसमें हुई धांधलियों की जांच में उलझ कर रह गई थी, उस दौरान मध्य प्रदेश सरकार लगातार यह दावा करती रही कि सौ प्रतिशत लोगों का पुनर्वास पूरा हो चुका है। मेधा पाटकर बताती हैं, साल 2008 से 2016 तक लगातार सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में बाकायदा शपथपत्र देते हुए यह झूठ दोहराया कि सभी लोगों का पुनर्वास हो चुका है। अंतत: बीती फरवरी में जाकर सरकार यह मानने को तैयार हुई कि 681 परिवारों का पुनर्वास अब भी बाकी है। जबकि यह आंकड़ा भी सही नहीं है क्योंकि अभी हजारों परिवार मुआवजे से वंचित हैं।Ó सरदार सरोवर बांध से प्रभावित हुए ग्रामीणों की सीधी सी मांग थी कि उन्हें जमीन के बदले जमीन और घर के बदले घर दिए जाएं, लेकिन उनकी यह मूलभूत मांग भी सरकार आज तक पूरी नहीं कर सकी है। यही कारण है कि गांवों में पानी भरने के बावजूद भी लोग अपने घर नहीं छोड़ पा रहे हैं। ये लोग जिस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं, उन्हें एक-एक कर समझते हैं। कुकरा गांव के ही रहने वाले जालम सिंह बताते हैं, जो जमीनें हम लोगों को आवंटित हुईं उनमें हर बरसात पानी भर जाता है। न हम लोग वहां खेती कर पाते हैं और न ही वह जमीन किसी और काम की है। वह जमीन कितनी उपयोगी है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगर हम वो जमीन किराए पर देते हैं तो पूरे पांच एकड़ जमीन का सालाना किराया पांच हजार रुपये से ज्यादा नहीं मिलता।Ó खेती की जमीन के अलावा इन लोगों को आवासीय जमीन भी आवंटित की गई थी। इसके बारे में राधे श्याम केवट बताते हैं, जो आवासीय प्लाट हमें आवंटित हुए उनमें काली मिट्टी है। उस मिट्टी पर मकान बनाते हैं तो कुछ ही सालों में दीवारों पर दरारें आने लगती हैं। मेरे भाई घनश्याम केवट ने मकान बनाया था लेकिन वो पूरा मकान ही जर्जर हो चुका है।Ó विस्थापन नीति में यह शर्त थी कि गांवों में पानी भरने से कम-से-कम छह महीने पहले ही सभी लोगों का पुनर्वास हो जाना चाहिए, लेकिन मध्य प्रदेश में यह स्थिति है कि डूब के कगार पर पहुंच चुके गांवों में लोग अब भी अपने हकों के लिए जूझ रहे हैं। बांध का जो पानी गांवों में भरने लगा है, उसी में बैठकर ग्रामीण जल-सत्याग्रह कर रहे हैं। जहां जमीन डूबी हमारी-पानी मछली कैसे तुम्हारीÓ जैसे नारे गांव-गांव में गूंज रहे हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता राजा बताते हैं, डूब क्षेत्र में आने वाले लोगों में से लगभग 60 प्रतिशत लोग भूमिहीन हैं। इनमें कुम्हार, केवट, मछुआरे और छोटे व्यापारियों जैसे सभी लोग शामिल हैं, लेकिन इनके व्यवसायिक पुनर्वास के नाम पर सरकार ने कुछ भी नहीं किया। सरकार की मंशा है कि बांध बन जाने के बाद मछलियां निकालने और नावों का ठेका बड़े व्यापारियों को सौंप दिया जाए। ऐसे में यहां के स्थानीय केवट और मछुआरे तो अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे। जहां जमीन डूबी हमारी-पानी मछली कैसे तुम्हारीÓ का नारा सरकार की इसी मंशा के खिलाफ लगता है।Ó जमीनें तो मिलीं लेकिन किसी काम की नहीं सरदार सरोवर बांध से मध्य प्रदेश के 193 गांवों के लाखों लोग प्रभावित हुए हैं, लेकिन इनमें से बमुश्किल साढ़े पांच हजार लोगों को ही उनकी जमीन के बदले जमीनÓ आवंटित की गई। अन्य सभी लोगों को उनकी जमीनों के बदले पैसे दिए गए या अभी दिए जाने हैं, लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दें तो लगभग सभी लोगों को उनकी जमीन की तुलना में बेहद कम पैसे मिले। कई प्रभावित तो ऐसे भी हैं जिन्हें यह पैसे भी नहीं मिले और वे आज भी न्यायालयों और प्राधिकरणों के चक्कर काट रहे हैं। जमीन के बदले जमीन पाने वाले कुल साढ़े पांच हजार लोगों में से अधिकतर वे हैं जिन्हें गुजरात में जमीनें आवंटित की गईं। कुकरा गांव के रहने वाले मनोज सिंह सोलंकी भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं। उन्हें 1994 में गुजरात में पांच एकड़ जमीन आवंटित हुई थी, लेकिन इस आवंटन के 23 साल बाद भी मनोज वहां जाकर नहीं बसे हैं। वे बताते हैं, विस्थापन नीति के अनुसार हमें उपजाऊ और सिंचित जमीन मिलनी चाहिए थी। लेकिन वो जमीन न तो उपजाऊ थी और न ही सिंचित। उसमें खेती संभव नहीं थी। हम लोग सिर्फ खेती पर ही निर्भर हैं। वो भी नहीं कर पाएंगे तो कैसे रहेंगे। इसलिए गुजरात जाकर नहीं बस सके और आज भी यहीं रह रहे हैं।Ó मूल गांव से पहले पुनर्वास स्थल डूबने लगे हैं बड़वानी के कुकरा गांव वालों को इसी जिले में जहां बसाया गया है वह जगह कुकरा बसाहट कहलाती है। इस बसाहट की स्थिति ऐसी है कि यहां लगभग वैसा ही पानी भरने लगा है जैसा डूब क्षेत्र में आए कई गांवों में भर रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता राहुल यादव बताते हैं, फिलहाल बांध का जलस्तर 129.30 मीटर है जबकि बांध की कुल ऊंचाई 138 मीटर है, लेकिन अभी से ही कुकरा बसाहट जैसे पुनर्वास स्थलों में पानी भर जाने का खतरा मंडराने लगा है। ये निश्चित है कि अगर बांध का जलस्तर बढ़ेगा तो डूब क्षेत्र के कई गांवों से पहले ही ये कुकरा बसाहट पूरी तरह से बांध के बैक-वाटर में डूब जाएगी।Ó इस बसाहट में रहने वाली चंदू बेन बताती हैं, हर साल बरसात में हमारे घरों में पानी भर जाता है। -रजनीकांत पारे
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^