03-Oct-2017 08:01 AM
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राज्यसभा चुनावों में अहमद पटेल को मिली रोमांचक जीत के बाद गुजरात में कांग्रेस खासी सक्रिय होती दिख रही है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मनीष दोशी बताते हैं कि अगले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस प्रदेश में कई बड़ी रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन करेगी। इसी चार सितंबर को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी अहमदाबाद पहुंचे थे। इस दौरान 125 से ज्यादा सीटें जीतने की बात कहते हुए उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि टिकट जमीन पर काम करने वालों को ही दिया जाएगा, बाहर से पार्टी में आने वालों को नहीं। इनके अलावा पार्टी द्वारा राज्य में महीने के आखिर में लगातार 12 दिनों तक कई अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इनमें अहमद पटेल समेत कई बड़े चेहरों के साथ राहुल गांधी एक बार फिर गुजरात आ सकते हैं।
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या ये रैलियां और भव्य आयोजन कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होंगे? प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार इस सवाल का जवाब न में देते हैं। कांग्रेस को नजदीक से जानने वाले कहते हैं, कांग्रेस आज भी प्रचार के पुराने ढर्रे पर चलना चाहती है। यह ढर्रा पार्टी कार्यकर्ताओं को तो प्रभावित कर सकता है, लेकिन जनता को रिझाने में असफल रहता है।Ó जानकारों की मानें तो अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी बूथ स्तर पर संगठन को मजबूती देने की मुहिम में जुटी हुई है। वहीं भाजपा को समर्थन देने वाले आरएसएस की जड़ें तो और गहराई तक समाई हैं। ऐसे में प्रदेश के राजनीतिकारों का कहना है कि कांग्रेस अब भी सिर्फ हवाई पुल तैयार कर रही है जिनका जमीन से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। जानकार कहते हैं, प्रदेश में कांग्रेस पदाधिकारियों का पूरा ध्यान इन रैलियों में आने वाले बड़े नेताओं की आवभगत में लगा हुआ है। जबकि इस समय ज्यादा जरूरत ग्राउंड लेवल पर युद्ध स्तर की कैंपेनिंग की है जिसे लेकर कांग्रेस कहीं से भी गंभीर नहीं दिख रही।Ó
गुजरात के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, अहमद पटेल की जीत के बाद लगा था कि प्रदेश में कांग्रेस को मजबूती मिलेगी, लेकिन पार्टी का रवैया देखकर फिलहाल इसकी संभावना कम नजर आती है।Ó वे आगे कहते हैं, करीब एक महीने का समय पार्टी और पदाधिकारियों ने जश्न मनाने और एक-दूसरे की वाहवाही में निकाल दिया। जबकि असली लड़ाई तो बाकी है।Ó
अहमद पटेल की जीत के बाद प्रदेश में वापसी करने का कांग्रेस के पास एक अच्छा मौका था, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए पार्टी इसके लिए तैयार नजर नहीं आती जबकि इस बार कांग्रेस को एक साथ दो मोर्चों पर लड़ाई लडऩी होगी। इनमें से एक तरफ प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा होगी और दूसरी तरफ कांग्रेस छोड़कर गए शंकर सिंह वाघेलाÓ एक सूत्र के शब्दों में वाघेला के भरोसे ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक साधारण से राज्यसभा चुनाव को इतनी हवा दी थी। बाद में वाघेला समूह के ही दो विधायकों की चूक की वजह से शाह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में वाघेला और उनके समर्थकों का भविष्य अधर में है और यह सिर्फ इसी बात पर टिका है कि वे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कितना ज्यादा नुकसान पहुंचा पाते हैं।Ó
समय कम, कांग्रेस का मैनेजमेंट कमजोर
शंकर सिंह वाघेला और उनके 14 समर्थक विधायकों के कांग्रेस छोड़कर जाने के बाद संभावनाएं जताई गई थीं कि पार्टी में नए चेहरों को मौका मिल सकता है। माना गया कि ये नए चेहरे विधानसभा चुनावों में ज्यादा जोश के साथ नयी रणनीतियां बनाकर संगठन को मजबूती देंगे, लेकिन अब ऐसा मुश्किल लग रहा है। अभी तक प्रदेश संगठन ने इस दिशा में किसी बड़ी जिम्मेदारी का बंटवारा नहीं किया है और वह अपना पूरा ध्यान रैलियों और जुलूसों पर लगाए हुए है। जब तक इन रैलियों का दौर खत्म होगा तब चुनावों में तकरीबन दो महीने से भी कम समय बचा होगा जो कि नए चेहरों को स्थापित करने के लिहाज से बहुत कम है।
-ऋतेन्द्र माथुर