30-May-2013 07:17 AM
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मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सत्ता विरोधी मतों में इजाफा होने की आशंका से जूझ रही है। पार्टी के भीतर इस बात को लेकर भारी चिंता है कि आगामी चुनाव में सत्ता विरोधी मत महत्वपूर्ण

भूमिका निभा सकते हैं। आंतरिक सर्वेक्षणों में यह तो पता चला है कि जनता में वर्तमान सरकार के प्रति आक्रोश है किंतु यह आक्रोश स्थानीय विधायकों के कारण है अथवा सरकारी नीतियों के कारण यह समझने का प्रयास किया जा रहा है। प्रारंभिक तौर पर पार्टी का एक धड़ा यह मान रहा है कि प्रदेश में लगभग 80 विधायकों के खिलाफ जनता की राय उतनी सकारात्मक नहीं है। पार्टी की बैठकों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इन विधायकों को आगाह कर दिया गया है कि वे दोबारा टिकिट की उम्मीद न करें। इस प्रकार पिछली बार पराजित होने वाले और इस बार कमजोर प्रदर्शन करने वाले 80 विधायकों के टिकिट काटने की तैयारी है। जो विधायक पिछली बार पराजित हो गए थे उनमें से उन्हें राहत दी जा सकती है जिनकी हार का कारण उमा भारती की जनशक्ति पार्टी थी। लेकिन जिन्हें करारी पराजय मिली थी उन्हें दोबारा टिकिट मिलना संभव नहीं है। इसी प्रकार जिन विधायकों का प्रदर्शन जनता की नजर में संतोषप्रद नहीं है उन्हें भी टिकिट से वंचित किया जा सकता है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने बताया है कि इन विधायकों के असंतुष्ट हो जाने की आशंका के मद्देनजर पार्टी ने उन्हें आश्वस्त किया हुआ है कि चुनाव जीतने की स्थिति में उन्हें संगठन में अथवा सरकार में भूमिका अवश्य दी जाएगी। पार्टी का मानना है कि लाल बत्ती के लालच में विधायक सीट छोडऩे का जोखिम उठा सकते हैं और इससे असंतोष भी नहीं होगा।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सरकार कितना भी अच्छा काम करे लगभग 10 वर्ष बाद सत्ता विरोधी रुझान देखने को मिलता ही हैं। गुजरात में भी यही देखने को आया था। मध्यप्रदेश में पिछली बार भी कुछ सीटें इसी वजह से पार्टी ने हारी थी। इसी कारण एंटी इनकम्बेंसी का प्रभाव कम करने के लिए टिकिट बदले जाएंगे और रणनीति में भी बदलाव किया जाएगा। इसी दृष्टि से इस बार उन नेताओं को चुनावी दायित्व सौंपा गया है जिन्हें या तो संगठन में कोई पद नहीं मिला था या वे किसी प्रकार का दायित्व नहीं संभाल रहे थे, जैसे रघुनंदन शर्मा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित कार्य देख रहे हैं। विक्रम वर्मा को चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। अनिल दवे समूचे चुनावी अभियान के प्रत्याशी बनाए गए हैं। सत्यनारायण जटिया को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। चिंता इस बात की है कि यदि एंटी इनकम्बेंसी का असर 20 से बढ़कर 40 प्रतिशत होता है तो पार्टी सीमा रेखा के नजदीक भी जा सकती है और ऐसी स्थिति में कड़ा मुकाबला होगा। पांच बार से गुजरात में सरकार भाजपा की ही रही है, लेकिन इसके बाद भी वहां लोकसभा चुनाव के समय एंटी इनकम्बेंसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। जनवरी माह से ही लगातार फीडबैक लिए जा रहे हैं। ब्लॉक और बूथ स्तर तक बैठकें हो गई हैं। कैडर आधारित पार्टी होने के कारण भाजपा कांग्रेस के मुकाबले लाभ में तो है किंतु अंतिम समय में भाजपा की आंतरिक राजनीति का प्रभाव चुनाव पर पड़ सकता है। इस दृष्टि से उमा भारती की भूमिका को नजरअंदाज करना भूल होगा। उमा भारती पहले ही इच्छा प्रकट कर चुकी है कि वे मध्यप्रदेश चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि उन्हें क्या दायित्व सौंपा जाएगा। यह राजनाथ सिंह के ऊपर निर्भर है कि वे मध्यप्रदेश में उमा भारती को किस तरह समायोजित करते हैं।
पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने संगठन की धीमी गति पर चेतावनी जताते हुए 31 मई तक शेष सभी जिलाध्यक्षों के नाम की घोषणा करने की बात कही है। लेकिन भीतरी खबर यह है कि अरविंद मेनन जिला अध्यक्षों के नाम घोषित करने को लेकर पशोपेश में हैं। युवा मोर्चा अध्यक्ष अमरदीप मौर्य भी कुछ स्पष्ट नहीं बता पा रहे हैं। समझा जाता है कि कुछ बड़े नेताओं की मनमर्जी के चलते इस काम में देरी हुई है। इस बीच राज्य सरकार की गरीबों को एक रुपए किलो गेहूं, दो रुपए किलो चावल और एक रुपए किलो नमक देने की अन्नपूर्णा योजना का जोर-शोर से प्रचार करने की बात कही जा रही है। भाजपा के मध्यप्रदेश प्रभारी अनंत कुमार इसे महत्वपूर्ण योजना बता रहे हैं और उन्होंने कहा है कि प्रदेश में एकता और सक्रियता की जरूरत है। इस बीच खबर यह भी है कि संगठन महामंत्री रामलाल ने भाजपा के कुछ बड़े नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात कर उन्हें फीलगुड के प्रति आगाह किया है। देखना है कि इसका असर चुनाव पर पड़ता है या नहीं।