17-Oct-2017 08:27 AM
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बाबा रामदेव को उत्तराखंड में जड़ी बूटियों का एकाधिकार सौंपने की खबर के बाद प्रदेश में हड़कम्प मच गया है। गोपेश्वर से केदारनाथ की तरफ बढऩे पर बंजवाडा नाम का एक गांव पड़ता है। 45 वर्षीय रवींद्र सिंह इसी गांव के रहने वाले हैं। वे बीते कई सालों से जड़ी-बूटियों का कारोबार कर रहे हैं। वे मुख्यत: बड़ी इलाइची की पौध तैयार करते हैं और साल भर में 50 से 60 हजार पौधे बेचकर लगभग तीन-चार लाख रुपये कमा लेते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से रवींद्र अपने भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं। स्थानीय अखबारों के माध्यम से उन्हें मालूम चला है कि उत्तराखंड सरकार जल्द ही प्रदेश में जड़ी-बूटियों का क्रय मूल्य तय करने की जिम्मेदारी बाबा रामदेव के ट्रस्ट पतंजलिÓ को सौंपने वाली है।
पद्मश्री से सम्मानित गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और जड़ी-बूटियों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक आदित्य नारायण पुरोहित कहते हैं, जड़ी-बूटियों के दाम तय किये जाने में पतंजलि के किसी भी हस्तक्षेप को मैं बिलकुल गलत मानता हूं। एक व्यापारी को ये अधिकार कैसे दिए जा सकते हैं और अगर क्रय मूल्य तय करने में व्यापारियों को शामिल ही किया जाना है तो फिर सिर्फ बाबा रामदेव की पतंजलि को ही इसमें शामिल क्यों किया जाए। हिमालया या डाबर को क्यों नहीं? अगर पतंजलि को इस तरह के कोई भी अधिकार दिए जाते हैं तो साफ है कि सरकार उसके व्यक्तिगत हितों के लिए काम कर रही है।Ó
यह पहला मौका नहीं है जब उत्तराखंड सरकार पर बाबा रामदेव को इस तरह से लाभ पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं। तहलका पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार जब बाबा रामदेव को उत्तराखंड में फूड पार्क बनाने के लिए जमीनें दी गई थी तो यह शर्त भी रखी गई थी कि रामदेव हर साल उत्तराखंड से करोड़ों रुपये की जड़ी-बूटियां खरीदेंगे, लेकिन जमीनें मिलने के बाद बाबा रामदेव ने कभी इस शर्त को पूरा नहीं किया। वन विभाग के पूर्व डीएफओ भरत सिंह बताते हैं, मैंने कभी बाबा रामदेव को उत्तराखंड से जड़ी-बूटियां खरीदते नहीं देखा। पतंजलि ने जड़ी-बूटियों की नर्सरी के नाम पर धोखा ही किया है। उनकी नर्सरियों को मैंने खुद जाकर देखा है। उससे कई गुना बेहतर नर्सरी हमारे लोग बिना किसी मदद के चला रहे हैं।Ó
भारत सिंह सरकार के हालिया फैसले के बारे में कहते हैं, उत्तराखंड की लगभग सारी जड़ी-बूटियां वन विभाग की जमीनों पर होती हैं। इनसे राज्य को अच्छा-खासा राजस्व मिलता है। इसे अगर औने-पौने दामों पर पतंजलि को दे दिया जाएगा तो ये राज्य के राजस्व की सीधी लूट और यहां के लोगों का सीधा शोषण होगा। उत्तराखंड को हर्बल प्रदेश बनाने का दावा करने वाली सरकार जड़ी-बूटियों के विकास के लिए काम करने के बजाय पूरा प्रदेश ही बाबा रामदेव को बेच देना
चाहती है।Ó
उत्तराखंड को हर्बल प्रदेश बनाने का दावा भाजपा कई बार कर चुकी है, लेकिन प्रदेश में जड़ी-बूटी उत्पादन की जमीनी हकीकत देखें तो यह बहुत दूर की कौड़ी नजर आता है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में होने वाली जड़ी-बूटियों को अगर छोड़ दें तो उत्तराखंड में जड़ी-बूटियों की खेती बेहद दयनीय स्थिति में है। जबकि प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां इस तरह की खेती के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती हैं। जड़ी-बूटी शोध संस्थान इस दिशा में काम कर भी रहा है लेकिन सरकारी उदासीनता और संसाधनों की कमी के चलते जमीन पर इसका कोई खास असर नजर नहीं आता।
बाबा रामदेव का विरोध
बाबा रामदेव की भाजपा से नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं। सत्ताधारी पार्टी बाबा रामदेव के व्यक्तिगत हितों के लिए काम करती नजर आ रही हैं। जड़ी-बूटी शोध संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष सुदर्शन कठैत बताते हैं, भाजपा हमेशा बाबा रामदेव को निजी फायदा पहुंचाने के लिए काम करती रही है। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ऐसा कह सकता हूं। ये पिछली भाजपा सरकार की बात है। उस वक्त हमारी उगाई कुटकी बाजार में 700 रुपये किलो बिका करती थी। वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उस वक्त कृषि मंत्री हुआ करते थे। वे उस दौर में हमारे पास आए और उन्होंने मांग की कि हम लोग 300 रु. किलो के हिसाब से बाबा रामदेव को कुटकी बेचें। हमने इसका विरोध किया और बाबा रामदेव को बेचने से इनकार कर दिया, लेकिन अब तो रावत जी मुख्यमंत्री बन गए हैं। किसानों की न सही, जंगली जड़ी-बूटियां तो वे रामदेव को मनचाहे रेट पे बेचने की व्यवस्था आराम से कर ही सकते हैं।Ó
-अक्स ब्यूरो