17-Oct-2017 08:18 AM
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सरकार को प्रापर्टी की रजिस्ट्रियों से एक बड़ी आय होती है, लेकिन रेरा चेयरमैन अंटोनी डिसा के मनमानी पूर्ण रवैए के कारण प्रदेश में प्रापर्टी की रजिस्ट्रियों में बेतहासा कमी आई है। इससे सरकार का राजस्व लगातार घट रहा है। दरअसल, रेरा अपने उद्देश्यों से भटक रहा है। रेरा एक अधिनियम है जो घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने के लिए और अचल संपत्ति उद्योग में अच्छे निवेश को बढ़ावा देने के लिए बना है। इस अधिनियम को बिल्डरों, प्रमोटरों और रियल एस्टेट एजेंटों के खिलाफ शिकायतों में वृद्धि के बाद बनाया गया है। इन शिकायतों में मुख्य रूप से खरीददार के लिए घर कब्जे में देरी, समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भी प्रमोटरों का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार और कई तरह की समस्याएं हैं। कुल मिलाकर रेरा ग्राहकों के हितों का संरक्षण करने के लिए गठित हुआ है। लेकिन उसकी नीतियां सब पर भारी पड़ रही हैं।
अगस्त से पूर्व तक सरकार को बड़ी चपत देने के बाद अंटोनी डिसा ने बैंकों को पत्र लिखकर कहा है कि रेरा पंजीयन अवश्य जांचें। यदि उक्त प्रोजेक्ट का रेरा में पंजीयन नहीं है तो बैंक उसे कर्ज न दें। क्योंकि बगैर रेरा पंजीयन के वह प्रापर्टी या जमीन अवैध मानी जाएगी। रेरा के इसी नियम के चलते प्रदेश में हजारों लोन की फाइलें विभिन्न बैंकों में लंबित हैं। डिसा की मनमानी में कई ऐसे हाउसिंग प्रोजेक्ट भी फंसे हैं, जो सालों पहले पूर्ण हो चुके हैं। कई निवेशकों ने इनमें हिस्सेदारी ले रखी है। इन्होंने सालों से अपने हिस्से के फ्लैट को किराये पर दे रखा है। अब वे इन्हें बेचना भी चाहें तो नहीं बेच सकते। क्योंकि इनकी रजिस्ट्री किसी भी खरीदार को बिल्डर द्वारा पहली बार की जाना है, इसलिए सालों पुराने इन फ्लैट के लिए कर्ज, बिक्री आदि के लिए रेरा नंबर जरूरी होगा।
पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी की वजह से पहले ही व्यवसाय में मंदी चल रही है, ऐसे मेें प्रापर्टी के व्यवसाय में रेरा का अड़ंगा लगने से बिल्डरों के साथ उपभोक्ता भी परेशान हैं। रेरा चेयरमैन के थोपे जा रहे नियम और परेशानी बढ़ा रहे हैं। पहले रेरा चेयरमैन ने बिना रजिस्ट्रेशन वाले प्रोजेक्ट्स की रजिस्ट्रियों पर रोक लगवा दी थी। इससे सरकार को हजारों करोड़ रूपए की राजस्व हानि हुई थी। इस पर से किसी तरह रोक हटी तो बैंकों को रेरा चेयरमैन ने पत्र लिख कर ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट को लोन नहीं देने को कहा है जिनका रेरा में रजिस्ट्रेशन नहीं है। हालांकि होम लोन के लिए इस तरह की कोई कानूनी रोक नहीं है, लेकिन ज्यादातर बैंक बिना रेरा नंबर वाली प्रॉपर्टी के लिए लोन नहीं दे रहे हैं। जिस वजह से पंजीयन कार्यालय में काम लगभग ठप है। सिर्फ रेरा के दायरे से बाहर पुरानी प्रापर्टी की ही खरीदी-बिक्री हो रही है। रेरा चेयरमैन के डिसीजन से त्यौहारी सीजन में भी प्रॉपर्टी का कारोबार थम गया है। जहां पिछले वर्षों में दशहरा, दिवाली के समय भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर के रजिस्ट्रार कार्यालयों में रोजाना औसतन 10,000 से अधिक रजिस्ट्रियां होती थी, वहीं अब 1500 भी नहीं हो रही हैं। इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार को कितनी बड़ी राजस्व हानि हो रही है। ज्ञातव्य है की पूर्व में भी डिसा ऐसी ही मनमानी करके सराकर को हजारों करोड़ की चपत लगवा चुके हैं।
उधर, रेरा की लेटलतीफी के चलते इस त्योहारी सीजन में बिल्डर-डेवलपर्स अपने प्रोजेक्ट्स में बुकिंग नहीं कर पा रहे हैं, वहीं लोग भी अपना मनपंसद आशियाना खरीदने का सपना पूरा नहीं कर पा रहे हैं। त्यौहारी मौसम बिल्डर-डेवलपर्स के लिए सबसे अच्छा सीजन होता है।
रेरा में रजिस्ट्रेशन बिना प्रॉपर्टी बेचना अवैध : डिसा
रेरा में पंजीयन कराए बिना सम्पत्ति की रजिस्ट्री और बिक्री पर रोक लगाए जाने के रेरा के प्रावधान को लेकर वाणिज्य कर विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव के पत्र का अब रेरा अध्यक्ष अंटोनी डिसा ने जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि किसी अन्य अधिनियम में कोई असंगत प्रावधान है तो रेरा अधिनियम के प्रावधान मान्य होंगे। मंत्रालय में पहुंचा रेरा अध्यक्ष का जवाब इन दिनों चर्चा का केंद्र बन गया है। इसमें डिसा ने कहा है कि रेरा ने महानिरीक्षक पंजीयन और उनके अमले के पंजीयन करने के अधिकार पर कभी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया। लेकिन अवैध संव्यवहारों का पंजीयन करना अनुचित और विधि विरुद्ध है। रेरा में अपंजीकृत परियोजनाओं की बिक्री करना अवैध है। भू संपदा अधिनियम की धारा 88 का उल्लेख कर लिखे पीएस के पत्र के जवाब में उन्होंने धारा 89 का भी अध्ययन करने को कहा है। इसमें किसी अधिनियम के प्रावधानों में विसंगति की स्थिति में रेरा अधिनियम के प्रावधान मान्य किए जाने का स्पष्ट उल्लेख है।
-विकास दुबे