02-Oct-2017 11:22 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति कारगर रही तो अक्टूबर में आरएसएस की अहम बैठक में सुरेश भैयाजी जोशी की जगह दत्तात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह बनाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2015 में ही संघ में एक गंभीर परिवर्तन की सुगबुगाहट हुई थी। सुगबुगाहट क्या उसे गंभीर कोशिश कहें तो भी ज्यादा गलत नहीं होगा। आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी और नरेंद्र मोदी के समर्थक समझे जाने वाले दत्तात्रेय होसबोले को संघ का सरकार्यवाह बनाने का प्रयास था, लेकिन यह प्रयास आखिरी मौके पर धराशायी हो गया और निवर्तमान सरकार्यवाह सुरेश राव जोशी (भैयाजी) को तीन साल का अगला कार्यकाल मिल गया।
यह सब क्यों और कैसे हुआ इस पर बात करने से पहले आरएसएस से जुड़ी कुछ मोटी-मोटी चीजें समझ लेते हैं। संघ में सबसे बड़ा पद सरसंघ चालक का होता है। यह पद वर्तमान में मोहन भागवत के पास है, लेकिन चूंकि सरसंघ चालक को आरएसएस के संविधान के हिसाब से मार्गदर्शक-पथप्रदर्शक का दर्जा मिला है इसलिए वे संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। ऐसे में उनके मार्गदर्शन में संघ का पूरा कामकाज सरकार्यवाह (महामंत्री) और उनके साथ चार सह-सरकार्यवाह (संयुक्त महामंत्री) ही देखते हैं और यही कारण था कि मार्च-2015 में दत्तात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह जैसी अहम जिम्मेदारी सौंपने का संघ के भीतर ही एक वर्ग ने विरोध किया था। इसकी वजह यह थी कि वे संघ प्रचारक बनने से पहले ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में सक्रिय थे। यानी वे भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की इस छात्र इकाई (एबीवीपी) में राजनीति करते थे। यही नहीं मूल रूप से कर्नाटक से ताल्लुक होसबोले एबीवीपी में ही आरएसएस की तरफ से दो दशक तक संगठन महामंत्री भी रह चुके हैं। इसके बाद पूरी तरह उन्होंने आरएसएस की गतिविधियों में अपने आप को लगा दिया।
बहरहाल अब जबकि भैयाजी का वर्तमान कार्यकाल फिर खत्म होने को है तो एक बार फिर होसबोले को सरकार्यवाह बनाने की कोशिशें शुरू की जा चुकी हैं और संघ के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो इस बार की कोशिशें पहले से ज्यादा गंभीर और सधी हुई हैं। बहुत उम्मीद है कि अक्टूबर के महीने में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में होने वाली संघ के केंद्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक में इस बाबत कोई फैसला भी ले लिया जाए और इसके बाद अगले साल मार्च में संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के दौरान इस फैसले पर अंतिम मुहर लगा दी जाए।
अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर दत्तात्रेय होसबोले के बारे में एक तथ्य इत्तेफाक से ज्यादा है। वह यह कि संघ में उनकी तरक्की का ग्राफ कमोबेश उन्हीं बीते चार साल में बढ़ा है जब भाजपा में नरेंद्र मोदी की पकड़ मजबूत हुई। इस साल उत्तर प्रदेश चुनाव में तो आलम यह रहा कि होसबोले मार्च-2016 में ही बोरिया-बिस्तर समेटकर पटना से लखनऊ आ जमे। यहां उन्होंने चुनाव प्रबंधन के लगभग हर पहलू में अहम भूमिका निभाई। उम्मीदवारों की पहचान से लेकर मतदान केंद्र प्रबंधन, जमीनी सर्वे और मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक पहुंचाने तक हर रणनीति में उनका दखल रहा। यही वजह है कि संघ और भाजपा में कई लोगों को लगता है कि होसबोले अगर आरएसएस के सरकार्यवाह बनते हैं तो यह प्रधानमंत्री मोदी के लिए बड़ा समर्थन होगा।
आरएसएस-भाजपा संबंध
अगर दत्तात्रेय होसबोले को आरएसएस का सरकार्यवाह बनाया जाता है तो निश्चित रूप से संघ-भाजपा संबंधों में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। इस अंतर संबंध को अब तक इस तरह समझा जाता है कि भाजपा का नियंत्रण भी आरएसएस उसी तरह से करता है जैसे अन्य अनुषांगिक संगठनों का। क्योंकि अन्य सभी संगठनों की ही तरह भाजपा की राष्ट्रीय से लेकर प्रदेश इकाई तक संघ प्रचारकों को बतौर संगठन महामंत्री तैनात किया जाता है। ये भाजपा सहित अन्य सभी संगठनों को करीब-करीब हर मसले पर आरएसएस की राय से अवगत कराते हैं। बल्कि यह कहें कि आरएसएस क्या चाहता है और क्या नहीं, यह संदेश संगठन महामंत्रियों के जरिए ही सभी संगठनों को भेजा जाता है तो गलत नहीं होगा और संघ परिवार के सभी संगठनों को अपने पितृ संगठन की राय को तवज्जो देनी ही पड़ती है।
-आर.के. बिन्नानी