03-Oct-2017 08:51 AM
1234790
म्यांमार से खदेड़े जाने पर लाखों की संख्या में रोहिंग्या पड़ोसी देशों की सीमाओं में प्रवेश कर रहे हैं। म्यांमार के सभी पड़ोसी देश बांग्लादेश, इंडोनेशिया, थाइलैंड रोहिंग्या को शरण देने को तैयार नहीं है। म्यांमार के पड़ोसी देशों में भारत भी शामिल है। कुछ एजेंट भारत के पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर और असम में रोहिंग्या शरणार्थियों को बसाने में लगे हुए हैं। म्यांमार के सभी पड़ोसी देश रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा मानते हैं। भारत सरकार का भी मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं। इसके पीछे सरकार के कई ऐसे दावे हैं जिनको खारिज नहीं किया जा सकता।
रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। हलफनामें को सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन केंद्र सरकार 40 हजार रोहिंग्या को देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा मानती है। साथ ही केंद्र सरकार का मानना है कि रोहिंग्या के तार वैश्विक समस्या बन चुके आईएसआईएस और अन्य आतंकी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर होने के बावजूद देश में रोहिंग्या शरणार्थियों पर बहस और राजनीतिक वाद-विवाद जारी है।
दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और मेवात में आतंकियों से जुड़े रोहिंग्या पकड़े गए हैं। रेडिकल इस्लाम से इनका निकट संबंध माना जाता है। रोहिंग्या को आतंक का प्रशिक्षण देने वाला अलकायदा का आतंकी भी दिल्ली से गिरफ्तार किया गया है। 28 वर्षीय समियुन रहमान वैसे तो मूल रूप से बंग्लादेशी है, लेकिन उसने ब्रिटिश नागरिकता ले रखी थी। अलकायदा का यह आतंकी भर्ती और प्रशिक्षण देने का काम करता था। इसकी योजना दिल्ली, मणिपुर और मिजोरम में बेस बनाकर रोहिंग्या शरणार्थियों को अलकायदा में भर्ती करना था। रहमान अलकायदा के टॉप कमांडर से सीधे संपर्क में था और उनके निर्देश पर काम कर रहा था। अलकायदा आतंकी ने बताया कि उसने दिल्ली, बिहार, उत्तरी-पूर्वी कश्मीर और झारखंड के हजारीबाग में 12 रोहिंग्या शरणार्थियों के संपर्क में था।
सरकार का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई बड़े आतंकी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं। वैश्विक समस्या बन चुके आईएसआईएस के रोहिंग्या से संबंध होने की आशंका निराधार नहीं है। केंद्र सरकार के पास इसके लिए ठोस आधार है। म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या, म्यांमार में उन पर हुई कार्रवाई का बदला भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर ले सकते हैं। भारत के बौद्ध समुदाय को अपना निशाना बना सकते हैं। इसके अलावा रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई अन्य अलगाववादी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं।
आईएसआईएस के अलावा रोहिंग्या से संबंध पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई से होने की प्रबल आशंका जाहिर की गई है। पाकिस्तान रोहिंग्या शरणार्थियों को समर्थन देकर उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। पाकिस्तान हमेशा से ऐसे मौकों की तलाश में रहता है, जब उसे भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध करने का मौका मिले। रोहिंग्या शरणार्थियों के रूप में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ एक ऐसा हथियार मिल जाएगा, जिसका वो अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करेगा। रोहिंग्या शरणार्थी पाकिस्तान के मुस्लिम देश होने के कारण उनके प्रति निकटता का भाव रखते हैं। इसलिए पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर ने रोहिंग्या शरणार्थियों को समर्थन दिया है। पाकिस्तान भारत के साथ दुश्मनी निकालने के लिए उनको इस्तेमाल कर सकता है। केंद्र सरकार का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। इसके पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह दिया जा रहा है कि म्यांमार ने जब रोहिंग्या को अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मानकर इनको खदेडऩे का काम कर रही है तो रोहिंग्या शरणार्थी किसी और देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा क्यों नहीं बनेंगे। दरअसल म्यांमार सरकार रोहिंग्या को देश में आतंक फैलाने का दोषी मानती है। इसलिए म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या पर देश में आतंक और हिंसा फैलाने के आरोप में उनको खदेडऩे की कार्रवाई की है। ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान मूलत: बांग्लादेश के रहने वाले हैं और ये अनाधिकृत रूप से म्यांमार में रह रहे थे। 1962 से 2011 के सैनिक शासन के दौरान तो
रोहिंग्या पर सरकार का अंकुश रहा, लोकतंत्र का बदलाव आते रोहिंग्या मुसलमान आतंक फैलाने में जुट गए।
भले ही कागजों में रोहिंग्या की तादाद 40 हजार बतायी जा रही हो, लेकिन असल में इनकी संख्या लाखों में है। ऐसे में एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि सरकार अगर लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देती है तो उसे रोहिंग्या को बसाने के लिए और उनकी देखरेख के लिए उन पर करोड़ों-अरबों रुपया खर्च करना पड़ेगा।
विवादित रहा है रोहिंग्या का इतिहास
रोहिंग्या के इतिहास पर अगर नजर डालें तो तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाती है। रोहिंग्या मुसलमानों की जून 2012 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में स्थानीय बौद्धों के साथ जातीय हिंसा हुई। इस जातीय संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें मुसलमान और बौद्ध दोनों थे। इसके बाद रोहिंग्या ने अक्टूबर 2016 में 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी और कई पुलिस चौकियों पर हमले किए। छिटपुट घटनाएं लगातार होती रहीं, लेकिन इसी वर्ष 25 अगस्त को रखाइन प्रांत में रोहिंग्या घुसपैठियों ने दर्जनों पुलिस पोस्ट और एक आर्मी बेस पर हमला करके सरकार की सत्ता को ही चुनौती दे दी। इसी तरह यह समुदाय बराबर विवादित गतिविधियों में लिप्त रहा है।
वोट बैंक का जरिया न
बन जाएं रोहिंग्या
रोहिंग्या को लेकर एक और आशंका गहरा रही है। यह आशंका भी निराधार नहीं है। कुछ राजनीतिक दल और क्षेत्रीय पार्टियां रोहिंग्या को वोटबैंक के रूप में देख रही हैं। वोटबैंक की राजनीति के कारण क्षेत्रीय पार्टियां स्वयं अपने एजेंटों के माध्यम से अवैध शरणार्थियों को बसाने का काम करती हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर पहले से ही वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर की कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी रोहिंग्या को अपना वोटबैंक बनाकर राजनीति करने की मंशा रखती हैं। इसी कारण से ये पार्टियां रोहिंग्या शरणार्थियों का पुरजोर समर्थन कर रही हैं। मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति के कारण बांग्लादेशी शरणार्थियों को पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में बसाया गया। इसके कारण पश्चिम बंगाल, असम और बिहार की आबादी का समीकरण बिगड़ चुका है।
50 से अधिक मुस्लिम देशों का इंकार
दूसरी सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि रोहिंग्या शरणार्थी मुस्लिम बहुल हैं। उनकी तादाद का बड़ा हिस्सा मुसलमानों का है, हालांकि उनमें कुछ हिन्दू भी शामिल हैं, लेकिन मुस्लिम बहुल रोहिंग्या शरणार्थियों को 50 से ज्यादा मुस्लिम देशों ने शरण देने से मना कर दिया है। म्यांमार के पड़ोसी और मुस्लिम देश होने के बावजूद मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी इन्हे अपने यहां शरण नहीं देना चाहते। दरअसल ये देश भी इन रोहिंग्या को अपने लिए खतरा मानते हैं। बांग्लादेश ने भी अब रोहिंग्या को खतरा मान लिया है। बांग्लादेश के भीतर भी इस बात का विरोध किया जा रहा हैं। ये मुस्लिम देश भी रोहिंग्या शरणार्थियों को देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मान रहे हैं। अधिकतर मुस्लिम देश जिनका निर्माण धर्म के आधार पर हुआ है, वे देश अगर अपने मुसलमान भाइयों को शरण देने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में भारत सरकार को ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती जिसके चलते रोहिंग्या शरणार्थियों को देश में शरण दी जाए।
- माया राठी